दिग्विजय की एक गलती और MP में मजबूत हो गई BJP, 1998 से कमजोर होती गई कांग्रेस
किताब के मुताबिक 'जैसे-जैसे दिग्विजय सिंह मजबूते होते गए, संगठन पर सभी का ध्यान कम हो गया था। चूंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सरकार के पिछलग्गू हो गए थे, इसलिए पूरा संगठनात्मक ढांचा चरमरा गया।

दिवाली का त्योहार और महज एक सप्ताह में विधानसभा चुनाव। मध्य प्रदेश का उत्साह सातवें आसमान पर है। राज्य में दशकों की परंपरा जारी है और मुकाबला एकबार फिर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में सीधा नजर आ रहा है। बहरहाल, एमपी को भाजपा का गढ़ कहा जाता है, लेकिन अगर इतिहास के पन्नों में देखें, तो भगवा दल को राज्य में मजबूत करने में कांग्रेस और खासतौर से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की बड़ी भूमिका मानी जाती है।
कहां से बदला माहौल
2003 में भाजपा की एमपी शासन में एंट्री हुई थी। इससे पहले 1998 में कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह दूसरी बार कांग्रेस सरकार सुनिश्चित कर चुके थे। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक दीपक तिवारी अपनी किताब 'राजनीतिनामा मध्यप्रदेश (2003-2018) भाजपा युग' में लिखते हैं कि 1998 में दिग्विजय की दूसरी जीत के साथ ही राज्य में कांग्रेस संगठन के समाप्त होने की शुरुआत हो गई थी।
अंदरूनी कलह कांग्रेस को ले डूबी
किताब के मुताबिक, 'जैसे-जैसे दिग्विजय सिंह मजबूते होते गए, संगठन पर सभी का ध्यान कम हो गया था। चूंकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सरकार के पिछलग्गू हो गए थे, इसलिए पूरा संगठनात्मक ढांचा चरमरा गया।' आगे बताया गया कि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राज्य में नगरीय निकाय चुनाव होने थे और इनके टिकटों को लेकर 'कांग्रेस में गुटबाजी के कारण बहुत खींचतान हुई।'
दिग्विजय सिंह के फॉर्मूले ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा
तिवारी अपनी किताब में बताते हैं कि कांग्रेस में खींचतान के बीच दिग्विजय सिंह ने 'फ्री फॉल ऑल' का फॉर्मूला अपनाया था। किताब के अनुसार, 'यानि पार्टी ने किसी को टिकट नहीं दिया और कहा कि जिसको भी चुनाव लड़ना है लड़ ले। इससे कांग्रेस कार्यकर्ता एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने लगे।'
यहां से मजबूत हुई भाजपा
कहा जाता है कि इसी फैसले के बाद भाजपा के मजबूत होने की शुरुआत हो गई थी। तिवारी लिखते हैं, 'ऐसा करने से भाजपा के हजारों कार्यकर्ता पार्षद और नगरीय निकायों में पहली बार प्रतिनिधि बन गे। भाजपा को इतने विस्तृत रूप में अपनी जड़ें जमाने का मौका पहली बार मिला था। इसके बाद कांग्रेस पार्टी कभी कोई बड़ा चुनाव मध्य प्रदेश में नहीं जीत पाई।'
समाप्त हुए कांग्रेस के कार्यकर्ता!
किताब के अनुसार, 'गुटबाजी के चक्कर में फ्री फॉर ऑल करना कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल थी। यह भूल इतनी भारी पड़ी कि पार्टी में कार्यकर्ता समाप्त हो गए, केवल नेता बचे। जिलों में जितने कार्यकर्ता बचे वे गुटीय नेताओं के समर्थक बनकर रह गए। बची खुची पार्टी की ताकत नेताओं के समर्थकों को जिला अध्यक्ष नियुक्त कर समाप्त कर दी गई। नतीजा यह हुआ कि जब प्रदेश स्तर के नेता जिलों में जाते तो केवल उनके ही समर्थक कार्यक्रमों में आते।'
2018 में बदली हवा और कांग्रेस ने भाजपा से छीन ली गद्दी
2005 से एमपी में सीएम के तौर पर अविजित पारी खेल रहे शिवराज सिंह चौहान 2018 में आउट हो गए। एक ओर जहां लंबे समय के बाद 114 सीटों पर जीत के साथ कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की। वहीं, भाजपा को लंबे शासन के बावजूत 109 सीटों पर जीत के साथ मुंह की खानी पड़ी। हालांकि, 2020 आते-आते माहौल फिर बदला और महज डेढ़ साल में कमलनाथ की अगुवाई वाली सरकार गिर गई। इधर, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा में शामिल होकर चौहान को दोबारा गद्दी पर काबिज करा दिया।
