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Hindi News मध्य प्रदेशओझा ने गर्म सलाखों से 50 से ज्यादा बार दागा, ढाई माह की बच्ची की मौत, कब्र से निकाला गया शव

ओझा ने गर्म सलाखों से 50 से ज्यादा बार दागा, ढाई माह की बच्ची की मौत, कब्र से निकाला गया शव

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में एक हैरान कर देने वाली घटना सामने आई है। बताया जाता है कि एक ओझा ने झाड़ फूंक के नाम पर ढाई महीने की मासून को 50 से ज्यादा बार दागा जिससे उसकी मौत हो गई।

ओझा ने गर्म सलाखों से 50 से ज्यादा बार दागा, ढाई माह की बच्ची की मौत, कब्र से निकाला गया शव
Krishna Singhभाषा,शहडोलSat, 04 Feb 2023 06:33 PM

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मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में एक ओझा द्वारा उपचार के नाम पर 50 से अधिक बार गर्म लोहे की छड़ से दागे जाने के चलते ढाई माह की बच्ची की मौत होने के मामले में प्रशासन ने जांच के लिए बालिका का शव कब्र से खोदकर बाहर निकलवाया है। जिला कलेक्टर वंदना वैद्य ने कहा कि बच्ची के शव को शुक्रवार को कब्र से निकाला गया और शनिवार को पोस्टमार्टम किया जाएगा।    

जिला कलेक्टर वंदना वैद्य ने बताया कि प्रारंभिक जांच में पता चला है कि बच्ची की मौत निमोनिया के कारण हुई, लेकिन मौत के असली कारणों का पता पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद चल पाएगा। आदिवासी बहुल जिले के सिंहपुर थाना क्षेत्र के कठौतिया की रहने वाली बच्ची की मां ने कहा कि परिवार वाले पहले बीमार बेटी को झोलाछाप डॉक्टर के पास ले गए लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। 

बाद में परिवार ने एक महिला से संपर्क किया, जिसने बच्ची के इलाज के लिए 51 बार गर्म लोहे की छड़ से उसके शरीर को दागा। मां ने कहा कि बच्ची की हालत बिगड़ने पर उसे जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां से उसे शहडोल मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। बुधवार को इलाज के दौरान बच्ची की मौत हो गयी।इसके बाद परिजनों ने बच्ची के शव को दफना दिया।

घटना के बारे में जानकारी मिलने के बाद प्रशासन ने शव को कब्र से बाहर निकालने का फैसला लिया। बच्ची के शव को कब्र से बाहर निकला गया है। शव के पोस्टमार्टम के बाद उसे परिजनों को सौंप दिया जाएगा। आदिवासी बहुल शहडोल जिले में ओझाओं की 'दगना कुप्रथा' के पहले भी गंभीर मामले सामने आ चुके हैं। 

आदिवासी लोगों में जन्म के समय कुपोषित बच्चों को लेकर एक अंधविश्वास है। इसमें मासूमों को ओझाओं से गर्म सलाखों से दगवाने का वहम है। लोगों में वहम है कि दगना प्रथा से बच्चों का कुपोषम ठीक हो जाएगा। यह प्रथा इतनी दर्दनाक होती है कि अक्सर बच्चे जान गंवा देते हैं। माताओं को सही पोषक नहीं मिलने से 'कुपोषित बच्चों' का जम्न होता है। ऐसे बच्चों के इलाज के लिए कुपोषण केंद्र बनाए गए हैं, लेकिन अंधविश्वास के चलते लोग वहां नहीं जाते हैं।  

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