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बढ़ती नाराजगी, बदलता व्यवहार, MP में भाजपा और कांग्रेस की नैया कैसे होगी पार?

बीते साल दिसंबर में आंतरिक सर्वे के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठकों का दौर शुरू कर दिया था। आंतरिक सर्वे में पाया गया था कि करीब 40 प्रतिशत विधायकों का प्रदर्शन खराब रहा है।

बढ़ती नाराजगी, बदलता व्यवहार, MP में भाजपा और कांग्रेस की नैया कैसे होगी पार?
Nisarg Dixitलाइव हिन्दुस्तान,भोपालTue, 31 Jan 2023 12:29 PM
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मध्य प्रदेश में चुनावी मैदान तैयार हो रहा है। नवंबर 2023 में राज्य में चुनाव हो सकते हैं। साल 2018 विधानसभा चुनाव के बाद से ही एमपी की सियासी जमीन पर उथल-पुथल रही है। इनमें भारतीय जनता पार्टी की नजदीकी हार और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी पर प्रहार चर्चा में रहे। हालांकि, अब साल की शुरुआत के साथ पार्टी के मौजूदा नेताओं के व्यवहार पर भी दिग्गजों की नजरें हैं। जानकार बताते हैं कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दल आंतरिक खींचतान से अछूते नहीं हैं।

जानकारों का मानना है कि मध्य प्रदेश में इस वक्त किसी पार्टी के पास चर्चा के लिए ठोस मुद्दे नहीं हैं। ऐसे में दोनों ही दल एक-दूसरे के सियासी कदमों को बारीकी से देख रहे हैं और अपनी रणनीतियां तैयार कर रहे हैं।

कांग्रेस के सामने 'दिग्गज' चुनौतियां
जानकार बताते हैं कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सामने गुटबाजी ही सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। कहा जा रहा है कि पार्टी के भीतर ही कई गुट बने हुए हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और दिग्गज नेता अरुण यादव के साथ भी उनकी खींचतान की अटकलें लगती रही हैं। बीते साल दिसंबर में ही अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कमलनाथ की गैरमौजूदगी ने सवाल खड़े कर दिए थे। इसके अलावा एमपी में होर्डिंग विवाद भी तेज है, जहां कहा जाता है कि कमलनाथ के अलावा किसी वरिष्ठ नेता की तस्वीर शामिल नहीं है। हालांकि, कुछ होर्डिंग्स में प्रदेश स्तर के प्रवक्ता नजर आते हैं।

वार्ड स्तर पर कमजोरी
जमीनी स्तर पर देखें, तो कांग्रेस ने ग्वालियर जैसे सीटों पर करीब 6 दशकों बाद मेयर का चुनाव जीता। हालांकि, ऐसी जीत पार्टी को वार्ड स्तर में नसीब नहीं हुई। इधर, भाजपा भी कांग्रेस का आदिवासी वोट बैंक अपने हिस्से में लाने की तैयारी कर रही है।

इंटरनल सर्वे ने दोनों दलों की बढ़ाई चिंता
राज्य में एक आंतरिक सर्वे भी चर्चा में रहा, जिसमें अनुमान लगाया जा रहा था कि 2023 में कांग्रेस के खाते में केवल 54 सीटें ही आ रही हैं। हालांकि, कमलनाथ ने ऐसे किसी सर्वे से इनकार कर दिया था और खबरों को गुमराह करने वाला बताया था।

गुटबाजी से जूझते दोनों दल
फिलहाल, दोनों ही दल आंतरिक मतभेदों की बात से इनकार कर रहे हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि यह पार्टियों के लिए चुनौती बन सकता है। दिग्विजय सिंह के भाई और कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह ने आंतरिक सर्वे से मिले संकेतों के हवाले से कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा दिए थे, जिसमें कहा गया था कि पार्टी के 40 प्रतिशत से ज्यादा विधायकों का प्रदर्शन खराब है।

राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कांग्रेस नेताओं में मतभेदों की खबरें आई और कई विधायकों ने पार्टी व्हिप के खिलाफ जाकर द्रौपदी मुर्मू के लिए मतदान किया था।

इधर, भाजपा में पूर्व मंत्री दीपक जोशी की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए पत्र ने चर्चाएं तेज कर दी थीं। उन्होंने अपने गृह जिले देवास में प्रधानमंत्री आवास योजना में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की गतिविधियों पर भी सियासी जानकार नजर रखे हुए हैं।

टिकट का संकट
अटकलें हैं कि अगर केंद्रीय मंत्री सिंधिया के साथ आए नेताओं को टिकट देने के लिए भाजपा नेताओं के टिकट कटे, तो पार्टी में बगावत हो सकती है। साल 2021 में दमोह में उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार राहुल लोधी की हार को चेतावनी के तौर पर माना जा रहा है।

भाजपा का आंतरिक सर्वे 
बीते साल दिसंबर में आंतरिक सर्वे जारी होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठकों का दौर शुरू कर दिया था। आंतरिक सर्वे में पाया गया था कि करीब 40 प्रतिशत विधायकों का प्रदर्शन खराब रहा है। कहा जा रहा है कि बैठकों को विधायकों के लिए चेतावनी के तौर पर भी देखा गया था।

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