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Hindi News मध्य प्रदेशशिक्षित पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार है या नहीं, हाई कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला

शिक्षित पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार है या नहीं, हाई कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पत्नी के भरण-पोषण के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। दरअसल, एक पति ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी।

शिक्षित पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार है या नहीं, हाई कोर्ट ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला
Subodh Mishraलाइव हिन्दुस्तान,इंदौरThu, 08 Aug 2024 12:44 PM
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पत्नी के भरण-पोषण के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि शिक्षित होने के कारण पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता। दरअसल, एक पति ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की थी। 

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस बिनोद कुमार द्विवेदी की अध्यक्षता में इंदौर स्थित मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की बेंच ने माना है कि शिक्षित होना किसी व्यक्ति को भरण-पोषण प्राप्त करने से अयोग्य नहीं ठहराता है। दरअसल, राहुल पटेल नाम के व्यक्ति ने मध्य प्रदेश के नीमच के पारिवारिक न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19(4) के तहत पुनरीक्षण की मांग की थी।

पारिवारिक न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि याचिकाकर्ता अपनी पत्नी हेमलता मालवीय को भरण-पोषण के रूप में 9000 रुपये प्रति माह का भुगतान करे। दंपति ने 19 नवंबर 2011 को हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार विवाह किया था। दोनों अलग-अलग रह रहे हैं। पत्नी ने भरण-पोषण के लिए सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन दायर किया था। 

पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19(4) पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को चुनौती देने के लिए पुनरीक्षण याचिका की अनुमति देती है। इसमें आवेदक को यह साबित करना होता है कि पारिवारिक न्यायालय का मूल आदेश अवैधता, अनियमितता या अनुचितता से प्रभावित था। पटेल की पुनरीक्षण याचिका इस दावे पर आधारित थी कि प्रतिवादी की शैक्षणिक योग्यता को देखते हुए भरण-पोषण का आदेश अनुचित था।

पुनरीक्षण याचिका पर दलीलें सुनने के बाद अदालत ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह दर्शाता है कि इसमें विचार करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं था। जस्टिस द्विवेदी ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षित होना किसी व्यक्ति को भरण-पोषण प्राप्त करने से अयोग्य नहीं बनाता है। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पति या पत्नी, जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना उन्हें भरण-पोषण प्रदान किया जाए।

जस्टिस द्विवेदी ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय का आदेश भरण-पोषण को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप था। पटेल की 80000 रुपये की पर्याप्त मासिक आय और मालवीय के रोजगार की कमी को देखते हुए 9000 रुपये प्रति माह की राशि उचित मानी गई।