एक परिवार-एक टिकट फॉर्मूला, जानिए दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के ‘परिवारवाद’ पर कितना असर
कांग्रेस अपने ऊपर लगने वाले परिवारवाद के ठप्पे को खत्म करने के लिए जिस राह पर चलने की कोशिश कर रही है, उससे मध्य प्रदेश के कई दिग्गज नेताओं के परिवार के सदस्यों को घर बैठना पड़ सकता है।
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कांग्रेस अपने ऊपर लगने वाले परिवारवाद के ठप्पे को खत्म करने के लिए जिस राह पर चलने की कोशिश कर रही है, उससे मध्य प्रदेश के कई नेताओं के परिवार के सदस्यों को घर बैठना पड़ सकता है। मध्य प्रदेश में परिवारवाद के नाम पर दिग्गज नेताओं के नाम सबसे ऊपर आते हैं। इन नेताओं ने पिछले एक दशक में अपने लोगों को आगे बढ़ाकर चुनावी राजनीति का हिस्सा बनाया। आज उन्हें स्थापित करने के लिए काम कर रहे हैं।
गौरतलब है कि राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस का आज से नव संकल्प चिंतन शिविर शुरू हुआ है। इसमें पहले दिन ही चुनाव का ऐसा फाॅर्मूला दे दिया गया, जिससे कई बड़े नेताओं की चिंता बढ़ गई है। एक परिवार एक टिकट के फाॅर्मूले को अगर विधानसभा चुनाव 2023 व लोकसभा चुनाव 2024 में अपनाया गया तो मध्य प्रदेश के कई कांग्रेस नेताओं को झटका लगेगा। सबसे बड़ा झटका पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को लगेगा। अभी वे राज्यसभा सदस्य हैं और भाई लक्ष्मण सिंह व पुत्र जयवर्धन सिंह विधायक हैं। लक्ष्मण सिंह के पुत्र भी सक्रिय राजनीति में हैं। ऐसे में एक ही परिवार के चार लोग टिकट की दावेदारी करते हैं तो नए फाॅर्मूले से दिग्विजय सिंह के परिवार के तीन सदस्यों को घर बैठना पड़ सकता है।
कमलनाथ का परिवार भी फाॅर्मूले के घेरे में
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का परिवार भी इस फाॅर्मूले के घेरे में आ सकता है क्योंकि अभी उनके पुत्र नकुलनाथ सांसद हैं। वे खुद विधायक हैं। उनकी पत्नी भी लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं। ऐसे में कमलनाथ के परिवार के सदस्यों में से एक को टिकट दिए जाने के हालात बने तो नकुलनाथ की संभावनाएं खत्म हो सकती हैं। नेता प्रतिपक्ष और सात बार के विधायक डॉ. गोविंद सिंह को भी अपने भांजे राहुल सिंह को टिकट दिलाने के लिए अपना टिकट छोड़ना पड़ सकता है।
एक परिवार एक टिकट में अरुण व भूरिया पर असर
पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव के भाई सचिन यादव अभी विधायक हैं। अरुण यादव भी खंडवा लोकसभा उपचुनाव के लिए टिकट पाने का प्रयास कर रहे थे। आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अब उन्हें नए फाॅर्मूले में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के सामने भी यही परेशानी आ सकती है क्योंकि उनके पुत्र विक्रांत भूरिया भी चुनाव लड़ चुके हैं और अभी वे भी चुनाव लड़ने को इच्छुक हैं। कांतिलाल भूरिया अभी विधायक हैं और उन्होंने भी चुनाव से दूरी बनाने का कोई इरादा जताया नहीं है। महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष विभा पटेल व पूर्व मंत्री राजकुमार पटेल के सामने भी यही समस्या आ सकती है। यह दोनों ही चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी करते रहे हैं।