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Hindi News मध्य प्रदेशक्या शर्तों के उल्लंघन पर जमानत स्वतः रद्द हो सकती है? हाई कोर्ट का क्या जवाब

क्या शर्तों के उल्लंघन पर जमानत स्वतः रद्द हो सकती है? हाई कोर्ट का क्या जवाब

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट एकल पीठ के आदेश को वापस लेने की याचिका पर विचार कर रही थी। आदेश में कहा गया था कि पुलिस के सामने उपस्थित होने में विफल रहने पर आरोपी की जमानत स्वतः रद्द हो जाएगी।

क्या शर्तों के उल्लंघन पर जमानत स्वतः रद्द हो सकती है? हाई कोर्ट का क्या जवाब
Subodh Mishraलाइव हिन्दुस्तान,जबलपुरSun, 11 Aug 2024 10:04 AM
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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि हाई कोर्ट यह आदेश नहीं दे सकता कि जमानत आदेश में शर्तों के उल्लंघन के लिए किसी आरोपी व्यक्ति की जमानत स्वतः रद्द हो जाएगी। हाई कोर्ट के जस्टिस विशाल धगट ने कहा कि जमानत रद्द करने से व्यक्ति के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं। इसलिए, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाला ऐसा कोई भी आदेश सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद पारित किया जाना चाहिए।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि सुनवाई का उचित अवसर भारत के संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है। यदि जमानत आदेश स्वत: रद्द हो जाता है तो अभियुक्त को प्राकृतिक न्याय का बहुमूल्य अधिकार नहीं मिल पाता है। चूंकि जमानत आदेश का स्वत: रद्द होना आरोपी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, इसलिए ऐसी शर्त को जमानत आदेश का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता है। जस्टिस धगट मार्च 2022 में हाई कोर्ट के एक अन्य एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को संशोधित करने के लिए एक आवेदन पर विचार कर रहे थे।

2022 के आदेश में एकल पीठ ने पुलिस को एक आरोपी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया था। पीठ ने माना था कि पुलिस के सामने उपस्थिति दर्ज करने में विफल रहने पर आरोपी की जमानत स्वतः रद्द हो जाती है, जो हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित जमानत की शर्त थी। नवंबर 2021 में आरोपी को ट्रायल कोर्ट के समक्ष 10 लाख रुपये जमा करने और हर महीने की 15 तारीख को पुलिस के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की शर्त के साथ हाई कोर्ट द्वारा जमानत दी गई थी। यह भी कहा गया कि यदि वह एक भी उपस्थिति दर्ज कराने में असफल रहा तो जमानत स्वतः रद्द हो जाएगी। जनवरी और फरवरी 2022 में दो तारीखों पर आरोपी पुलिस के सामने पेश होने में विफल रहा। उसने 2021 के आदेश में निर्धारित जमानत शर्तों में संशोधन के लिए आवेदन किया। हालांकि, मार्च 2022 में कोर्ट ने संशोधन याचिका खारिज कर दी और पुलिस को आरोपी शख्स को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। 

इसके बाद उसने जमानत रद्द होने के आदेश को वापस लेने के लिए एक और आवेदन दायर किया। आरोपी व्यक्ति ने कोर्ट को बताया कि वह उत्तर प्रदेश के वाराणसी का रहने वाला है। उसे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए यात्रा करने में चार दिन लगते हैं। राज्य ने उसके आवेदन का विरोध किया और तर्क दिया कि हाई कोर्ट के पास जमानत देते समय शर्तें लगाने की शक्ति है। कोर्ट ने कहा कि अदालत के आदेश की समीक्षा करने या उसमें बदलाव करने पर रोक है। हालांकि यह भी कहा गया कि ऐसे अपवाद भी हैं जब कोर्ट अपने द्वारा पारित किसी फैसले या आदेश पर दोबारा विचार कर सकता है।

फैसले में कहा गया है कि कोर्ट को आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 362 के तहत अपने ही आदेश की समीक्षा करने या बदलने से रोक दिया गया है। यह धारा बी.एन.एस.एस. 2023 की समकक्ष धारा 403 है। दोनों धाराएं समरूप हैं। किसी निर्णय को वापस लेते समय कोर्ट को अपना दिमाग लगाना होगा और मामले के तथ्यों को देखना होगा। इसलिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 362 या बी.एन.एस.एस. 2023 की नई धारा 403 के तहत रोक प्रभावी होगी, लेकिन कुछ अपवाद भी हैं जब कोर्ट फैसले को वापस ले सकता है या पुनर्विचार कर सकता है। मौलिक अधिकारों का उल्लंघन उन अपवादों में से एक है।

वर्तमान मामले में पाया गया कि यह आरोपी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट ने रजिस्ट्री से जमानत शर्तों में संशोधन की मांग करने वाले उनके आवेदन को बहाल करने और सूचीबद्ध करने के लिए भी कहा।