कोर्ट में आने की परेशानी सहमति से तलाक के लिए कूलिंग पीरियड माफ करने का आधार हो सकती है? क्या बोला MP हाईकोर्ट
क्या तलाक के केस में पक्षकारों (पति-पत्नी) को अदालत में उपस्थित होने में असुविधा आपसी सहमति से तलाक के लिए कूलिंग पीरियड माफ करने का आधार हो सकती है? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसको लेकर अपने फैसले में स्थिति पूरी तरह साफ कर दी है।
क्या तलाक के केस में पक्षकारों (पति-पत्नी) को अदालत में उपस्थित होने में असुविधा आपसी सहमति से तलाक के लिए कूलिंग पीरियड माफ करने का आधार हो सकती है? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसको लेकर अपने फैसले में स्थिति पूरी तरह साफ कर दी है।
हाईकोर्ट ने माना है कि पक्षकारों को अदालत के समक्ष उपस्थित होने में असुविधा आपसी सहमति से तलाक दिए जाने पर भी कूलिंग पीरियड को माफ करने का आधार नहीं हो सकती। दरअसल, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी (2) के तहत तलाक के केस में निर्धारित छह महीने की वैधानिक कूलिंग पीरियड पूरा करने का प्रावधान होता है।
लाइव लॉ के अनुसार, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से आपसी सहमति से अपने विवाह को रद्द करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि चूंकि दोनों पक्षों को अपने काम के सिलसिले में शहर से बाहर रहना पड़ता है, इसलिए उन्हें इस मामले में अदालत में उपस्थित होने में परेशानी हो रही है।
जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की बेंच ने कहा, “पक्षकारों को अदालत में उपस्थित होने में असुविधा कूलिंग पीरियड को माफ करने का आधार नहीं हो सकती। कूलिंग पीरियड का प्रावधान करने का मूल उद्देश्य अलग होने के निर्णय पर विचार करना है।”
याचिकाकर्ताओं ने जबलपुर फैमिली कोर्ट से तलाक आवेदन के पहले और दूसरे प्रस्ताव के बीच छह महीने की प्रतीक्षा अवधि को माफ करने का अनुरोध किया था। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने पर्याप्त आधारों की कमी का हवाला देते हुए अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इस फैसले से असंतुष्ट याचिकाकर्ता ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
याचिका में अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017) मामले का हवाला दिया गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी (2) के तहत निर्धारित छह महीने की कूलिंग पीरियड अनिवार्य नहीं है, बल्कि केवल निर्देशात्मक है।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि दोनों पक्ष 2017 से अलग-अलग रह रहे थे और गुजारा भत्ता और कस्टडी सहित सभी लंबित मुद्दों को सुलझा चुके थे, इसलिए वैधानिक अवधि को माफ कर दिया जाना चाहिए।
जस्टिस अहलूवालिया ने इस बात पर जोर देते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि कूलिंग पीरियड को माफ करने की शर्तें पूरी नहीं की गई हैं, जिसमें शामिल हैं- सभी मध्यस्थता और सुलह के प्रयास विफल हो गए होंगे, पक्षों ने गुजारा भत्ता और बच्चे की कस्टडी सहित सभी मुद्दों को ईमानदारी से सुलझा लिया होगा, वेटिंग पीरियड से पक्षों की पीड़ा और बढ़ेगी और पक्षों ने अपने जीवन में आगे बढ़ने का निर्णय ले लिया होगा।
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