
सरकारी नौकरी जाने के डर से टीचर ने जंगल में दफनाया बच्चा, मध्य प्रदेश में चौंकाने वाली घटना
संक्षेप: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक सरकारी शिक्षक बबलू डंडोलिया और उनकी पत्नी ने सरकारी नौकरी जाने के डर से अपने तीन दिन के नवजात बेटे को जंगल में पत्थरों के नीचे जिंदा दफना दिया, लेकिन ग्रामीणों ने बच्चे के रोने की आवाज सुनकर उसे बचा लिया।
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। जहां सरकारी नौकरी जाने के डर से एक स्कूल शिक्षक और उसकी पत्नी ने अपने तीन दिन के नवजात बेटे को जंगल में जिंदा दफना दिया। लेकिन, नियति को कुछ और ही मंजूर था। गांव वालों ने बच्चे की रोने की आवाज सुनी और उसे पत्थरों के नीचे से निकालकर अस्पताल पहुंचाया, जहां वह अब सुरक्षित है।

क्या है पूरा मामला?
यह चौंकाने वाला वाकया छिंदवाड़ा के धनोरा क्षेत्र के नंदनवाड़ी गांव में 26 सितंबर को हुआ। 38 साल के बबलू डंडोलिया, जो एक सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और उनकी 28 साल की पत्नी राजकुमारी ने अपने चौथे बच्चे को जंगल में छोड़ दिया। इस दंपती के पहले से तीन बच्चे हैं- 11 साल और 7 साल की दो बेटियां और 4 साल का एक बेटा। मंगलवार को दोनों की गिरफ्तारी के बाद यह मामला सुर्खियों में आया।
दो बच्चों की नीति बनी वजह?
मध्य प्रदेश में लागू दो बच्चों की नीति के तहत सरकारी कर्मचारी के दो से ज्यादा बच्चे होने पर नौकरी पर खतरा मंडराता है। पुलिस के मुताबिक, बबलू और राजकुमारी ने अपने तीसरे बच्चे को रिकॉर्ड में छिपा लिया था, लेकिन चौथे बच्चे के जन्म के बाद उन्हें डर था कि यह बात सामने आते ही बबलू की नौकरी चली जाएगी। धनोरा थाने के प्रभारी लखनलाल अहिरवार ने बताया, '23 सितंबर को राजकुमारी ने एक बेटे को जन्म दिया। तीन दिन बाद, दंपती ने बच्चे को मोटरसाइकिल पर जंगल ले जाकर पत्थरों के नीचे दफना दिया।'
बच्चे की जान कैसे बची?
जंगल में पत्थरों के नीचे दबे नवजात की रोने की आवाज कुछ ग्रामीणों के कानों तक पहुंची। उन्होंने तुरंत बच्चे को निकाला और अस्पताल पहुंचाया। बच्चे के जिंदा होने की खबर ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी। शुरुआत में दंपती पर बच्चे को त्यागने का मामला दर्ज हुआ, लेकिन एक वीडियो सामने आने के बाद, जिसमें बच्चा पत्थरों के नीचे दबा दिखा, पुलिस ने हत्या के प्रयास का केस दर्ज किया।
मध्य प्रदेश में शिशु त्याग के मामले में अव्वल
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश लगातार चौथे साल शिशु त्याग के मामलों में देश में पहले स्थान पर है। इस घटना ने न केवल इस समस्या की गंभीरता को उजागर किया, बल्कि सरकारी नीतियों के सामाजिक प्रभाव पर भी सवाल खड़े किए हैं।





