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मुंगेर लोकसभा सीट: परिसीमन के बाद यहां बदलती चली गई राजनीति की धारा

मुंगेर लोकसभा क्षेत्र का भूगोल बदलने के साथ-साथ राजनीति की धारा भी बदलती रही है, यहां के चुनाव संग्राम में जातीय धुरी शुरू से हावी रही है। जातीय संघर्ष की आग में भी यह क्षेत्र वर्षों से तपता रहा...

मुंगेर लोकसभा सीट: परिसीमन के बाद यहां बदलती चली गई राजनीति की धारा
मुंगेर | नगर संवाददाताSat, 27 Apr 2019 12:22 PM
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मुंगेर लोकसभा क्षेत्र का भूगोल बदलने के साथ-साथ राजनीति की धारा भी बदलती रही है, यहां के चुनाव संग्राम में जातीय धुरी शुरू से हावी रही है। जातीय संघर्ष की आग में भी यह क्षेत्र वर्षों से तपता रहा है।

मुंगेर जिले से काटकर अन्य जिले को बनाने के बाद 1991 के लोकसभा चुनाव से 2004 के संसदीय चुनाव तक के नतीजों पर नजर डालें तो यहां यदुवंशी (यादव) और कुशवंशी (कुशवाहा) समाज के प्रतिनिधि ही काबिज होते रहे हैं। 2008 में नये सिरे से हुए परिसीमन के बाद से यहां हुए दोनों विगत लोकसभा चुनावों में ब्रह्मर्षि (भूमिहार) समाज के प्रतिनिधि काबिज हुए हैं। इनमें 2009 में जदयू के टिकट पर राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने जीत दर्ज की, जबकि 2014 के आम चुनाव में वीणा देवी ने मोदी लहर पर सवार होकर यहां पहली बार लोजपा का परचम लहराया। वैसे 2009 में ब्रह्मर्षि व कुशवंशी, तो 2014 में ब्रह्मर्षि उम्मीदवारों के बीच ही मुख्य मुकाबला हुआ था।

2019 के मौजूदा लोकसभा चुनाव में फिर यहां ब्रह्मर्षि उम्मीदवारों के बीच ही मुख्य मुकाबले की तस्वीर बनती नजर आ रही है। एनडीए की ओर से जदयू के टिकट पर राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को लगातार तीसरी बार चुनावी अखाड़े में उतारा गया है, तो महागठबंधन के प्रमुख धड़े क्रांगेस ने अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को अपने खाते से यह सीट दी है। लिहाजा ड्राइविंग सीट पर सवार दोनों उम्मीदवारों को अपने-अपने समाज का भले ही भरपूर समर्थन मिलने के आसार हैं, लेकिन जीत-हार में अन्य वर्गों की भूमिका कम महत्वपूर्ण नहीं है। विकास व राष्ट्रवाद व संविधान बचाने समेत विभिन्न मुद्दों के अलावा एक बार फिर सामाजिक समीकरणों को साधने के प्रयास भी किए जा रहे ।

मुंगेर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का इतिहास 
मुंगेर लोकसभा क्षेत्र का अपना इतिहास रहा है। 1976 में बेगूसराय, 1988 में खगड़िया और 1991 में जमुई जिला को मुंगेर से काट कर नया जिला बनाया गया। इसके बाद से मुंगेर जिले का राजनीतिक समीकरण ही बदल गया। 1991 से 2004 तक इन सीटों पर पिछड़ों का ही कब्जा रहा। 1991, 1996 और 1999 में ब्रह्मानंद मंडल,1998 में विजय कुमार विजय और 2004 में जयप्रकाश नारायण यादव सांसद चुने गए। 2008 के परिसीमन के बाद मुंगेर लोकसभा को तीन जिलों में जोड़ दिया गया। इसके बाद इन लोकसभा क्षेत्रों पर भूमिहार का ही कब्जा रहा। सबसे बड़ी बात यह है कि, मुंगेर के राजनीतिक इतिहास में परिसीमन से पूर्व एक बार भी भूमिहार कास्ट के लोग मुंगेर से सांसद नहीं चुने गए थे। 

1964 एवं 1967 रहा अपवाद 
मुंगेर लोकसभा सीट पर काबिज होने वाले दल व उम्मीदवार बदलते रहे हैं, लेकिन 1964 व1967 के अपवाद को छोड़ दें। तो जीत दर्ज करने वाले सांसद यदुवंशी, कुशवंशी या रघुवंशी ही रहे हैं। 1952 के पहले चुनाव से लेकर 1962 तक रघुवंशी समाज के बनारसी प्रसाद सिंह कांग्रेस के टिकट पर लगातार तीन बार चुनाव जीतने में सफल रहे। इसके बाद 1971,1980 व 1984 में यदुवंशी समाज के देवेन्द्रर प्रसाद यादव कांग्रेस के टिकट पर लगातार दो चुनावों में जीत दर्ज की। 1977 में रघुवंशी समाज के श्रीकृष्ण सिंह और 1989 में धनराज सिंह मुंगेर से सांसद चुने गए। 

सात पर सीसीए व 989 पर 107 धारा 
हवेली खड़गपुर। हवेली खड़गपुर के 11 पंचायतों में होने वाले लोकसभा चुनाव में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सात  लोगों पर सीसीए व 989 लोगों पर धारा 107 की कार्रवाई के लिए प्रस्ताव मुख्यालय भेजा गया है।
       
डीएसपी पोलस्त कुमार ने बताया कि शामपुर थानाक्षेत्र के चार लोगों पर सीसीए व 596 लोगों पर 107, हवेली खड़गपुर थानाक्षेत्र से तीन लोगों के विरुद्ध सीसीए के अलावे धारा 107 के लिए 393 लोगों के विरुद्ध प्रस्ताव भेजा गया है। 

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