लोकसभा चुनाव 2019: गंगा जमुनी तहजीब की अद्भुत मिसाल है लालगंज, जानिये यहां के बारे में
आजमगढ़ जिले में दो लोकसभा सीटें हैं। एक आजमगढ़ और दूसरी लालगंज। लालगंज का नाम आते ही जहन में दुर्वाषा धाम, पल्हना देवी का नाम तो आता ही है। गंगा जमुनी तहजीब की अदभुत मिसाल पेश करने वाले अयोध्या सिंह...
आजमगढ़ जिले में दो लोकसभा सीटें हैं। एक आजमगढ़ और दूसरी लालगंज। लालगंज का नाम आते ही जहन में दुर्वाषा धाम, पल्हना देवी का नाम तो आता ही है। गंगा जमुनी तहजीब की अदभुत मिसाल पेश करने वाले अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की जन्मस्थली निजामाबाद व मशहूर शायर कैफी आजमी की जन्म स्थली मेजवां फूलपुर का नाम सहसा दिमाग में आ जाता है। इसी निजामाबाद कस्बे की ब्लैक पाटरी पूरी दुनिया में अपने अद्वितीय व मनोरम कलाकारी के लिए जानी जाती है।
इसी निजामाबाद में ऐतिहासिक महत्व का गुरुद्वारा है जहां सिक्खों के गुरु नानक व गुरु तेग बहादुर जी से जुड़ी यादें आज भी उनके अनुयायियों को यहां खींच लाती हें। इसी क्षेत्र में आजमगढ़ को नई व नकारात्मक पहचान देने वाले क्षेत्र संजरपुर व सरायमीर भी हैं। पांच विधानसभा क्षेत्र अतरौलिया, लालगंज, दीदारगंज, निजामाबाद, फूलपुर पवई के मतदाता यहां से अपना जनप्रतिनिधि चुनते हैं। फिलहाल पांच में से दो-दो सीटों पर सपा, बसपा व एक सीट पर भाजपा के विधायक हैं। सांसद की सीट भाजपा के पास है।
एक जमाने में रामधन के पर्याय के रूप में जाना जाने वाला पूर्वांचल का यह महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र विकास के नाम पर अब भी पिछड़ा हुआ है। वर्तमान में लालगंज आजमगढ़ जिले की एक तहसील है। लगभग साठ फीसदी साक्षरता वाला यह क्षेत्र तीन ओर से वीआईपी संसदीय क्षेत्रों से घिरा हुआ है। एक तरफ पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बनारस व दूसरी ओर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ तो तीसरी ओर केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का गाजीपुर संसदीय क्षेत्र यहां की जनता की राजनीतिक चेतना को जागृत करता रहता है। यहां की एक तिहाई आबादी अनुसूचित जाति की है। लगातार यह सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित रही है। यहां के लोग मुख्य रूप से कृषि पर ही निर्भर हैं। लेकिन उद्योग शून्यता के चलते यहां का युवा परदेश में काम करने पर विवश है।
मार्टीनगंज के महुजा नेवादा की चीनी मिल सत्तर के दशक में ही बंद हो गई। यहां के सरायमीर, संजरपुर, निजामाबाद, फरिहा,फूलपुर, लालगंज, मार्टीनगंज, दीदारगंज जैसे क्षेत्र के बड़ी संख्या में युवा खाड़ी देशों में छोटे मोटे काम कर अपना भरण पोषण करते हैं। जिनकी खाड़ी देश जाने की व्यवस्था नहीं हो पाती है, वो पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे प्रांतों में रोजगार की तलाश में भटकते रहते हैं। रोजगार के साधन न के बराबर होने के चलते ही यहां की बड़ी आबादी पिछले कई दशकों से पलायन कर रही है। लेकिन अचरज की बात है कि न तो किसी ने इस पलायन को रोकने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने का प्रयास किया और न ही कभी यह समस्या यहां के चुनाव में मुद्दा ही बन पायी।
तीन दशकों तक युवा तुर्क रामधन का ही रहा वर्चस्व
पहली बार 1962 में अस्तित्व में आयी लालगंज सीट का नाम आते ही सभी की जुबान पर सहसा युवा तुर्क रामधन का नाम आ जाता है। पहली बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के विश्राम प्रसाद ने जीत हासिल की। उनके सामने थे रामधन। इस सीट पर सर्वाधिक बार विजय पताका फहराने वाले रामधन चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी थे। वह तीसरे नंबर पर रहे। 1967 में चुनाव हुआ तो रामधन कांग्रेस के टिकट पर पहली बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद इस सीट पर तीन दशक तक रामधन का ही कब्जा रहा। 1980 में सातवीं लोकसभा के चुनाव को छोड़ दिया जाए तो 1971 के चुनाव में तो इंदिरा लहर में रामधन ने जबरदस्त जीत हासिल की। इनके प्रतिद्वंदी शिवप्रसाद को 21% मत ही मिले थे। जनता लहर में लालगंज सीट पर रामधन ने रिकार्ड बनाया। 1977 के इस चुनाव में रामधन ने भारतीय लोकदल के प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस के उम्मीदवार को डेढ़ लाख से अधिक वोटों से हराया।
कब कौन रहा सांसद
वर्ष सांसद पार्टी
1962 विश्राम प्रसाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
1967 रामधन कांग्रेस
1971 रामधन कांग्रेस
1977 रामधन भारतीय लोकदल
1980 छांगुर जेएनपी(एस)
1985 रामधन कांग्रेस
1989 रामधन जनता दल
1991 रामधन जनता दल
1996 डा बलिराम बसपा
1998 दरोगा सरोज सपा
1999 डॉ. बलिराम बसपा
2004 दरोगा सरोज सपा
2009 डॉ. बलिराम बसपा
2014 नीलम सोनकर भाजपा
कुल मतदाता 1726680
महिला 805746
पुरुष 920894