लोकसभा चुनाव 2019 : राजनीति में बढ़ी दिलचस्पी,एक सीट पर 23 की दावेदारी
आप क्या बनोगे बड़े होकर...बच्चों से पूछा जाने वाला यह आम सवाल है। शायद ही कोई बच्चा हो जो ये कहे कि वो नेता बनना चाहता है लेकिन बड़े होकर नेता बनने वालों की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। सियासत में न...
आप क्या बनोगे बड़े होकर...बच्चों से पूछा जाने वाला यह आम सवाल है। शायद ही कोई बच्चा हो जो ये कहे कि वो नेता बनना चाहता है लेकिन बड़े होकर नेता बनने वालों की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। सियासत में न सिर्फ नेताओं की दूसरी-तीसरी पीढ़ी तो उतर ही रही है, और लोग भी टिकट पाने की चाह में पार्टियों के चक्कर काट रहे हैं। चुनाव दर चुनाव प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या बताती है कि राजनीति में लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है।
1951 के चुनाव में एक सीट पर औसतन पांच प्रत्याशी खड़े होते थे तो पिछले लोकसभा चुनाव में एक सीट के मुकाबले औसतन 23 प्रत्याशी खड़े हुए यानी राजनीति लोगों के रुझान में शामिल हो रही है। हालांकि एक आम नौकरी से मुकाबला करे तो यह संख्या काफी कम है। मसलन एक शिक्षक की सीट होती है तो उस एक सीट पर 500 से 600 लोगों की दावेदारी तक होती है।
बात राजनीति की हो तो प्रत्याशियों की संख्या बढ़ने के पीछे कई कारण होते हैं। जैसे कुछ सीटें ऐसी होती हैं जहां प्रत्याशियों की संख्या वहां से कोई दिलचस्प व्यक्तित्व खड़ा होने के कारण बढ़ जाती हैं। मसलन बीते लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब वाराणसी से खड़े हुए तो यहां 42 प्रत्याशियों ने नामांकन करा लिया। ये बात अलग है ज्यादातर की जमानत जब्त हो गई। जब सियासत कोई करवट लेती है या कोई सियासी भूचाल आता है तो भी प्रत्याशियों की संख्या अपनेआप ही बढ़ जाती है।
मसलन मंडल कमीशन के बाद 1991 के चुनाव में 1605 प्रत्याशी खड़े हुए। जनता के बीच उपजे आक्रोश और जनता की आवाज संसद में पहुंचाने के चलते प्रत्याशियों की संख्या बढ़ जाती है। वहीं 1992 में बाबरी मस्जिद गिराई गई थी जिसका खासा आक्रोश जनता में था लिहाजा 1996 के लोकसभा चुनावों में प्रत्याशियों की संख्या बढ़ कर 3297 हो गई यानी एक सीट के मुकाबले 38 प्रत्याशी खड़े हुए। हालांकि ज्यादातर लोगों की जमानत जब्त ही हो जाती है।
वीआईपी सीटों पर ज्यादा प्रत्याशियों का चलन
वहीं वीआईपी सीटों पर भी ज्यादा प्रत्याशियों के खड़े होने का चलन है। मसलन लखनऊ, गौतमबुद्ध नगर, अमेठी जैसी सीटों पर प्रत्याशियों की संख्या ज्यादातर चुनावों में दो दर्जन से ज्यादा होती है। माना जाता है कि आप जीते न जीते, लेकिन मीडिया में चर्चा के चलते आप नेता के तौर पर अपना कॅरिअर शुरू कर सकते हैं। प्रत्याशियों की संख्या बढ़ने के पीछे छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार ही होते हैं। पिछले कुछ सालों में निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों की संख्या में भी खासी बढ़ोतरी हुई है। छोटे-छोटे दल भी चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
लोकसभा चुनाव प्रत्याशियों की संख्या
1951 364
1957 292
1962 443
1967 507
1971 543
1977 443
1980 1005
1984 1242
1989 1087
1991 1605
1996 3297
1998 1037
1999 1208
2004 1138
2009 1368
2014 1876