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लोकसभा चुनाव 2019 : राजनीति में बढ़ी दिलचस्पी,एक सीट पर 23 की दावेदारी

आप क्या बनोगे बड़े होकर...बच्चों से पूछा जाने वाला यह आम सवाल है। शायद ही कोई बच्चा हो जो ये कहे कि वो नेता बनना चाहता है लेकिन बड़े होकर नेता बनने वालों की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। सियासत में न...

लोकसभा चुनाव 2019 : राजनीति में बढ़ी दिलचस्पी,एक सीट पर 23 की दावेदारी
शिखा श्रीवास्तव,लखनऊ। Sat, 23 Mar 2019 11:16 AM
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आप क्या बनोगे बड़े होकर...बच्चों से पूछा जाने वाला यह आम सवाल है। शायद ही कोई बच्चा हो जो ये कहे कि वो नेता बनना चाहता है लेकिन बड़े होकर नेता बनने वालों की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। सियासत में न सिर्फ नेताओं की दूसरी-तीसरी पीढ़ी तो उतर ही रही है, और लोग भी टिकट पाने की चाह में पार्टियों के चक्कर काट रहे हैं। चुनाव दर चुनाव प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या बताती है कि राजनीति में लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है। 

1951 के चुनाव में एक सीट पर औसतन पांच प्रत्याशी खड़े होते थे तो पिछले लोकसभा चुनाव में एक सीट के मुकाबले औसतन 23 प्रत्याशी खड़े हुए यानी राजनीति लोगों के रुझान में शामिल हो रही है। हालांकि एक आम नौकरी से मुकाबला करे तो यह संख्या काफी कम है। मसलन एक शिक्षक की सीट होती है तो उस एक सीट पर 500 से 600  लोगों की दावेदारी तक होती है। 

बात राजनीति की हो तो प्रत्याशियों की संख्या बढ़ने के पीछे कई कारण होते हैं। जैसे  कुछ सीटें ऐसी होती हैं जहां प्रत्याशियों की संख्या वहां से कोई दिलचस्प व्यक्तित्व खड़ा होने के कारण बढ़ जाती हैं। मसलन बीते लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब वाराणसी से खड़े हुए तो यहां 42 प्रत्याशियों ने नामांकन करा लिया। ये बात अलग है ज्यादातर की जमानत जब्त हो गई।  जब सियासत कोई करवट लेती है या कोई सियासी भूचाल आता है तो भी प्रत्याशियों की संख्या अपनेआप ही बढ़ जाती है।

मसलन मंडल कमीशन के बाद 1991 के चुनाव में 1605 प्रत्याशी खड़े हुए। जनता के बीच उपजे आक्रोश और जनता की आवाज संसद में पहुंचाने के चलते प्रत्याशियों की संख्या बढ़ जाती है। वहीं 1992 में  बाबरी मस्जिद गिराई गई थी जिसका खासा आक्रोश जनता में था लिहाजा 1996 के लोकसभा चुनावों में प्रत्याशियों की संख्या बढ़ कर 3297 हो गई यानी एक सीट के मुकाबले 38 प्रत्याशी खड़े हुए। हालांकि ज्यादातर लोगों की जमानत जब्त ही हो जाती है। 

वीआईपी सीटों पर ज्यादा प्रत्याशियों का चलन
वहीं वीआईपी सीटों पर भी ज्यादा प्रत्याशियों के खड़े होने का चलन है। मसलन लखनऊ, गौतमबुद्ध नगर, अमेठी जैसी सीटों पर प्रत्याशियों  की संख्या ज्यादातर चुनावों में दो दर्जन से ज्यादा होती है। माना जाता है कि आप जीते न जीते, लेकिन मीडिया में चर्चा के चलते आप नेता के तौर पर अपना कॅरिअर शुरू कर सकते हैं। प्रत्याशियों की संख्या बढ़ने के पीछे छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार ही होते हैं।  पिछले कुछ सालों में निर्दलीय चुनाव लड़ने वालों की संख्या में भी खासी बढ़ोतरी हुई है। छोटे-छोटे दल भी चुनावों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

लोकसभा चुनाव    प्रत्याशियों की संख्या    
1951                         364    
1957                         292    
1962                          443    
1967                           507    
1971                           543
1977                           443    
1980                          1005    
1984                          1242    
1989                           1087
1991                           1605    
1996                           3297    
1998                           1037    
1999                          1208    
2004                          1138
2009                          1368
2014                          1876 

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