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लोकसभा 2019 : भारतीय ईवीएम में सेंधमारी की संभावना न के बराबर

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ईवीएम हैकिंग का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। विपक्षी दल ईवीएम ट्रैकिंग और वीवीपैट पर्चियों के सौ फीसदी मिलान का मुद्दा जोरशोर से उठा रहे हैं। तो आइए जानते हैं...

लोकसभा 2019 : भारतीय ईवीएम में सेंधमारी की संभावना न के बराबर
हिटी,नई दिल्ली Wed, 22 May 2019 09:40 AM
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लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ईवीएम हैकिंग का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है। विपक्षी दल ईवीएम ट्रैकिंग और वीवीपैट पर्चियों के सौ फीसदी मिलान का मुद्दा जोरशोर से उठा रहे हैं। तो आइए जानते हैं भारतीय ईवीएम कैसे काम करती है और इस पर मतदान कितना सुरक्षित है-

दो हिस्सों में बंटी
1. बैलटिंग यूनिट
यह वोटिंग कंपार्टमेंट में रखी होती है। इसमें संबंधित सीट से चुनाव मैदान में उतरे सभी प्रत्याशियों के नाम और चुनाव चिह्न दिए होते हैं। मतदाता जिस प्रत्याशी को वोट देना चाहता है, उसे उसके नाम के सामने मौजूद नीला बटन दबाना पड़ता है।

2. कंट्रोल यूनिट
डिसप्ले, बैटरी, रिजल्ट और बैलट सेक्शन से लैस कंट्रोल यूनिट मतदान अधिकारी के पास रखी होती है। अधिकारी को हर मतदाता के मतदान करने के बाद बैलट बटन को दोबारा सक्रिय करना होता है, ताकि अगला वोटर अपना वोट डाल सके। 5 मीटर के तार से आपस में जुड़े होते हैं दोनों यूनिट

3. वीवीपैट
वोटर वेरीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट वास्तव में प्रिंटर की तरह होती है जो वोटर को उसके डाले गए वोट के बारे में विस्तृत जानकारी देती है।  

इसलिए मुश्किल हैकिंग
भारतीय ईवीएम स्वतंत्र रूप से काम करती है, जबकि ज्यादातर देशों में इंटरनेट पर आश्रित वोटिंग मशीनें इस्तेमाल की जाती हैं, जिनके हैक होने का खतरा रहता है
निर्माण के समय ईवीएम में प्रयुक्त माइक्रोचिप को सीलबंद कर दिया जाता है, ताकि उसकी प्रोग्रामिंग में बदला से नतीजों को प्रभावित करना असंभव हो 
खोलने की कोशिश करने पर भारतीय ईवीएम खुद बखुद निष्क्रीय हो जाती है, दोबारा शुरू करने पर हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर से हुई छेड़खानी की जानकारी देने में सक्षम

आगाज
1977 में पहली बार ईवीएम के इस्तेमाल की मांग उठी, 1980 में एमबी हनीफ ने पहली भारतीय ईवीएम ईजाद की
1998 में मध्य प्रदेश-राजस्थान के 5-5 और दिल्ली के 6 विधानसभा क्षेत्रों में वोटिंग के लिए इसका प्रयोग किया गया
2004 के बाद से देश में होने वाले हर चुनावों में मतदान ईवीएम के जरिये करवाया जा रहा

अस्तित्व
15 साल अधिकतम होती है ईवीएम की शेल्फ लाइफ

2001 तक निर्मित सभी ई-वोटिंग मशीनें प्रयोग से बाहर, उनकी चिप और कोड से लेकर सभी उपकरण नष्ट किए गए

अनोखी
3840 वोट अधिकतम डाले जा सकते हैं भारतीय ई-वोटिंग मशीनों में

1500 वोटर प्रति मतदान केंद्र के तय मानक से ढाई गुना है यह आंकड़ा

10 साल या उससे अधिक समय तक वोटिंग का रिकॉर्ड सहेजने में सक्षम

अद्भुत
64 उम्मीदवारों के खाते में पड़ने वाले वोटों का आंकड़ा जुटाने में सक्षम, प्रत्याशियों की संख्या 16 से ज्यादा होने पर दूसरी बैलटिंग यूनिट लगाई जाती है

6 विशेष एल्कालाइन बैटरी पर काम करती है ईवीएम, इसका प्रयोग उन जगहों में भी किया जाता है, जहां बिजली नहीं आती है

आदेश
2011 में सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को ईवीएम की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए वीवीपैट मशीनों के इस्तेमाल का निर्देश दिया
2012-2013 में आयोग ने वीवीपैट मशीनों से लैस ईवीएम बनाई, 2014 के लोकसभा चुनाव में कुछ सीटों पर हुआ प्रयोग

ऐसे होता है निर्माण
भारत में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बेंगलुरु) और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन (हैदराबाद) मिलकर ईवीएम बनाते हैं। दोनों उपक्रम खुद इसका सॉफ्टवेयर भी तैयार करते हैं। फिर उसे मशीन कोड में तब्दील कर अमेरिका या जापान भेजते हैं, जहां से ईवीएम की माइक्रोचिप बनकर आती है।  (स्रोत : इंटरनेट)

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