Lok Sabha Elections 2019- भोजपुर में विकास बनाम जातिवाद की है लड़ाई
कोइलवर सोनपुल! आरा लोकसभा का प्रवेश द्वार। कभी भोजपुर (पुराना शाहाबाद) के इस मुख्य शहर की पहचान आरण्य देवी और बाबू वीर कुंवर सिंह की बहादुरी के किस्सों से होती थी। अब इसकी पहचान हर रोज हर समय मीलों...
कोइलवर सोनपुल! आरा लोकसभा का प्रवेश द्वार। कभी भोजपुर (पुराना शाहाबाद) के इस मुख्य शहर की पहचान आरण्य देवी और बाबू वीर कुंवर सिंह की बहादुरी के किस्सों से होती थी। अब इसकी पहचान हर रोज हर समय मीलों लगे रहने वाले जाम से है। आरा- छपरा पुल से गुजरने वाले हजारों ओवरलोड बालू ट्रकों से उड़ती धूल से फिजां में गर्दो गुबार छाया रहता है। अक्सर दुर्घटनाएं। पूरे इलाके में दहशत। लोगों में यह मुद्दा बन गया है। आश्चर्य नहीं कि अगली लोकसभा में यह मुद्दा प्रमुखता से उठे।
संघर्ष की धरती भोजपुर माले और रणवीर सेना के बीच लम्बे वर्गसंघर्ष की साक्षी रही है। इस लड़ाई में मास्टर जगदीश, रामनरेश राम और ब्रह्मेश्वर मुखिया जैसे कई चर्चित नाम आए। पूरे क्षेत्र में विकास सबको दिखाई दे रहा है। सवर्ण इलाकों में राष्ट्र प्राथमिकता में है। राजद और माले के आधार वोट वाले क्षेत्रों में भी मोदी के साथ ही भाजपा प्रत्याशी राजकुमार सिंह का भी काम दिख रहा है, मगर उनके लिए प्राथमिकता में पार्टी और महागठबंधन है। रणनीति के तहत विकास के मुकाबले पूरे लोकसभा क्षेत्र में बैकवर्ड - फारवर्ड की लड़ाई को एकबार फिर हवा दी जा रही है। पूरे इलाके में बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा बनकर उभर रहा है। कुल 11 उम्मीदवार हैं। आरके सिंह (भाजपा) और राजू यादव (माले) में सीधा मुकाबला है।
आरा जिला घर बाऽ, कौन बात के डर बाऽ, कहावत को चरितार्थ करते हुए इलाके के लोग खुल कर बोल रहे हैं। रिंग बांध के किनारे खड़े कोईलवर वार्ड 11 के मुनेश्वर राय सोन में बन रहा समांतर पुल दिखाते हैं, कहते हैं युद्धस्तर पर काम चल रहा है। तस्वीर का दूसरा रुख है कि बालू धंधेबाजों की कटाई से किस तरह नदी खोखली हो रही है। उठाव के लिए सैकड़ों ट्रक सोन के सीने को रौंद रहे हैं। नगर पंचायत के मुहाने पर पूरब तरफ तेजी से मकान बन रहे हैं।
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स्थानीय लोग इनको बाहरी लोगों की बसावट मानते हैं। संदेश विस क्षेत्र में ही वार्ड 14 यादव बहुल क्षेत्र है। वहां रिटायर्ड इंजीनियर जनक यादव और रघुनंदन प्रसाद को भी विकास दिखता है, मगर वोट तीन तारा (माले) को देने की बात कहते हैं। साफ कहते हैं कि राजद द्वारा समर्थन देने के कारण इस बार हम महागठबंधन उम्मीदवार के साथ हैं। राम अयोध्या प्रसाद बताते हैं कि इतिहास यह भी रहा है कि वर्ष 2009 में नए परिसीमन से आरा लोस से मनेर - पाली कटने के बाद यहां से राजद नहीं जीता। वैसे यहां भितरघात की बात भी चर्चा में हैं। पास ही रेलवे की जमीन पर मलाह, नोनिया और मुसहर टोली है- जो माले का कैडर माना जाता है। उनको विकास की रोशनी की जगह तीन तारा अधिक चमकीला लगता है। उनमें जोवटा में माले कार्यकर्ताओं पर हमले का आक्रोश है।
इलाके में सियासी सौदेबाजी की चर्चा आम है। पांच हजार से अधिक वोटर वाले खनगांव के सुनील यादव कहते हैं कि माले पाटलिपुत्र में राजद की मीसा भारती का समर्थन कर रहा है, बदले में राजद आरा में माले के राजू यादव को समर्थन दे रहा है। दोनों लोस क्षेत्र एक- दूसरे से सटे हैं। इसी गांव के रंजीत यादव कहते हैं कि जाति से नहीं, काम से मतलब है। अभी तक कोई आया नहीं। उम्मीदवार आकर बताएंगे कि क्षेत्र के लिए क्या करेंगा, तभी गांव वाले वोट देने का मन बनाएंगे।
बबुरा में अब चना नहीं होता
बबुरा में अब चना नहीं होता। वहां के छोटेलाल सिंह बताते हैं, पिछली बार श्रीभगवान सिंह कुशवाहा राजद से लड़े थे। इस बार जदयू में हैं और समाज का वोट एनडीए में ट्रांसफर कराने में जुटे हैं। रालोसपा के उपेन्द्र भी महागठबंधन के लिए कुशवाहा वोट मांग रहे हैं। माले के कैडर से भी यह समाज जुड़ा है। गंगा, सोन और सरयू के संगम पर बसा बिशुनपुर पंचायत। सिरिसियां के विदेशी सिंह कहते हैं, नदी किनारे रहकर भी खेत प्यासे हैं। नहर नहीं है, सिंचाई के लिए पटवन ही सहारा है। बिजली आई, तो स्टेट ट्यूबवेल भी चालू हों। सामने फोरलेन पर ट्रकों की लम्बी कतार। विजय पांडेय कहते हैं, जान जोखिम में रहता है। कई बार दो-दो तीन-तीन दिन जाम। जाम में फंस कई मरीजों ने दम तोड़ दिया। दूसरे राज्य के ट्रक यहां आने बंद हो गए। वोट चाहिए तो सरकार और प्रशासन को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए।
नदी किनारे के गांवों में आर्सेनिक का असर
सुदूर गांव एकवना घाट के पास मंदिर पर जमे सुरेन्द्र सिंह, महेन्द्र सिंह, केशवबाबा मसानी, मनन पासवान आदि इलाके में पानी का मुद्दा उठाते हैं। नदी किनारे के गांवों में आर्सेनिक का असर है। लोग पानी खरीद कर पीते हैं। कहते हैं कि 200 साल पुराना नथुनी साह और 100 साल पुराना रामजस सिंह का इनार इस्तेमाल में नहीं आने से खराब हो गया है। बाकी सब काम हुआ तो शुद्ध जल भी हो। आरा शहर के पकड़ी चौक पर 82 साल के बुजुर्ग राजकुमार राय कहते हैं- अब लोग बेझिझक बोल रहे हैं। यह बड़ा बदलाव है। मुख्य टिकट निरीक्षक से रिटायर श्री राय कहते हैं कि पिछली बार जिस उम्मीद पर वोट पड़े थे, वह ब्रांड बन गया है। जोगटा के संजय मंडल और 81 वर्षीय परसुराम सिंह कहते हैं, केन्द्र की नीतियों से महंगाई बेतहाशा बढ़ गई है। वहीं, बैठे निर्मलजी को आरा से चलीं नई ट्रेनों और प्लेटफार्म के विस्तार में विकास दिखता है। बिहियां बाजार में जनार्दन तिवारी को जीएसटी से बड़ा बदलाव दिखता है। वहां विकास के मुद्दे पर उनमें और भतीजे भोला राय में मतभेद भी दिखता है।
लहर में युवाओं ने कर दिया था वोट
यह जगदीशपुर का भव्य किलाफोर्ट है। शाम को शहर के लोग इस रमणीक स्थल पर जुटे हैं। एक कोने में बैठे आफताब व कलीमुद्दीन का मानना है कि पिछली बार ‘लहर’ में यादव व मुस्लिम युवाओं ने भी वोट कर दिया था। इस बार ऐसा नहीं है। लिहाजा यह वोट घटेगा। तीन तलाक पर केंद्र के रुख का भाजपा को लाभ नहीं मिलने वाला, उल्टे नुकसान होगा। युवक शाहीद, अफरोज व समीर भी आ जाते हैं। इनको लगता है कि आरक्षण छीना जा रहा है। यह शाहपुर का पासवान बहुल गांव बिलौटी है। रात के नौ बजे हैं। वार्ड 11 में एक जगह चारपाई पर कुछ युवक बैठे हैं। वहां मुन्ना पासवान का सुर जुदा है। जल्द कारण का भी खुलासा होता है। गांव का एक फारवर्ड जो महागठबंधन का सपोर्टर है, उससे इनकी नहीं बनती। वहां खड़े मनीष, राजू, दुर्गेश व अंकित बताते हैं कि मामला मान-सम्मान से जुड़ा है। हम तो तीन तारा में ही अपना सम्मान देखते हैं। पासवान के बारे में साफ कहते हैं, वह हमारे नेता नहीं हैं। बेरोजगारी दूर हो। युवाओं को काम चाहिए।
सात विस में छह पर राजद विधायक
आरा अनवर आलम (राजद), संदेश अरुण यादव (राजद), बड़हरा सरोज यादव (राजद), जगदीशपुर रामबिशुन सिंह (राजद), शाहपुर राहुल तिवारी (राजद), अगियांव (सुरक्षित) प्रभुनाथ राम (जदयू) व तरारी सुदामा प्रसाद (माले)
जदयू इस बार भाजपा के साथ
पिछली बार भाजपा के आरके सिंह को लगभग 3.91 लाख, राजद के श्रीभगवान कुशवाहा को 2.55 लाख, माले के राजू यादव को 99 हजार और जदयू की मीना सिंह को 75 हजार मत मिले थे। इस बार श्रीभगवान कुशवाहा जदयू में हैं और आरके सिंह के लिए वोट मांग रहे हैं। वहीं, माले को राजद का समर्थन है।
अधिक यादव वोटर, इसके बाद राजपूत
जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो (अनुमानत:) यादव 3.5 लाख, राजपूत 2.75 लाख, ब्राह्मण, भूमिहार, कुशवाहा और मुस्लिम 1.5-1.5 लाख, वैश्य दो लाख, दलित तीन लाख और अतिपिछड़ा- 2.5 लाख हैं।