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नुक्कड़ पर चुनाव: माला में मूड़ी फंसाने की कला जिसने सीखी, वह नेता हो गया

राजनीतिक मंच पर दिग्गजों की मौजूदगी में मूड़ी में माला फंसा के फोटो खिंचवा लेना सबसे बड़ी कला है। माला में मूड़ी फंसाने का अभ्यास हो गया तो आम से आम आदमी को नेता बनते देर नहीं लगती।  सांसद नहीं...

नुक्कड़ पर चुनाव: माला में मूड़ी फंसाने की कला जिसने सीखी, वह नेता हो गया
पटना | चंदन द्विवेदीFri, 26 Apr 2019 09:10 AM
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राजनीतिक मंच पर दिग्गजों की मौजूदगी में मूड़ी में माला फंसा के फोटो खिंचवा लेना सबसे बड़ी कला है। माला में मूड़ी फंसाने का अभ्यास हो गया तो आम से आम आदमी को नेता बनते देर नहीं लगती। 

सांसद नहीं तो विधायकी का टिकट तो कंफर्म ही समझिए। देखते नहीं हो, एक ही माला में सबका फंसा हुआ मूड़ी वाला फोटो भी सब अखबार में छपता है। जनता को ऐसा ही फोटो देखते-देखते एक चेहरा याद हो जाता है। आर ब्लॉक चौराहे से बाएं रेलवे ट्रैक के पास चाय की दुकान पर मिला यह ज्ञान जगतारण के लिए सागर मंथन के बाद प्राप्त अमृत की तरह काम आया।

जगतारण पिछले दस साल से चल रहे इस अभियान में लगा रहा। रैलियों में मंच पर धक्का-मुक्की में कई बार गर्दन में मोच भी आई लेकिन जगतारण ने माला से मूड़ी निकलने नहीं दिया। अब संकल्पों के फलित होने का समय आ गया था। एक पार्टी से टिकट कंफर्म होते ही जगतारण की खुशी का ठिकाना नहीं है। चुनावी माला पहनके उसके चेहरे पर ऐसी निखार आई है कि ऐसी निखार महंगे से महंगे ब्यूटी क्रीम से भी एक दशक में नहीं आ पाती। कांफिडेंस ऐसा कि सामने में दिग्गज नेता भी सोचने को मजबूर हैं।

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जगतारण का माला प्रेम भी गजब है। वह हर काम माला पहने ही कर रहे ताकि अभ्यास बना रहे और कांफिडेंस में भी किसी तरह की कमी न आये। घर-परिवार के लोग कितना भी मना कर रहे पर गले की माला निकल ही नहीं रही। चुनावी प्रचार के दौरान जगतारण का राजनीतिक ज्ञान  विश्लेषकों के बीच चर्चा का विषय बना है। जगतारण अब अपने चेले चपाटियों को यह ज्ञान देते मिले-मल्ल युद्ध का नियम है कि कमजोर व्यक्ति भी पहलवानी से पहले जांघ पीट के इतना लाल कर ले कि सामने वाला मजबूत पहलवान भी अकबका जाए। जीत का आधा सूत्र कांफिडेंस में होता है, जिसका कांफिडेंस हाई होगा, वही जीतता भी है...।

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