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लोकसभा चुनाव फ्लैशबैक: बुलेट से बैलेट लूटे जाने का दौर भी देख चुका है पूर्णिया

बिहार राज्य में एक दौर था जब चुनाव में दबंग बैलेट को अपने पक्ष में करने के लिए बुलेट का इस्तेमाल पूरे जोर शोर से करते थे। जिसको जहां मौका मिलता था, अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए बूथ ही लूट लिया करते...

लोकसभा चुनाव फ्लैशबैक: बुलेट से बैलेट लूटे जाने का दौर भी देख चुका है पूर्णिया
पूर्णिया | आदित्य आनंदThu, 28 Mar 2019 01:52 PM
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बिहार राज्य में एक दौर था जब चुनाव में दबंग बैलेट को अपने पक्ष में करने के लिए बुलेट का इस्तेमाल पूरे जोर शोर से करते थे। जिसको जहां मौका मिलता था, अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए बूथ ही लूट लिया करते थे। 

बूथ कैप्चरिंग की शुरूआत 1985 में
पूर्णिया में 1952 से लोकसभा व विधानसभा चुनाव में लगातार मतदान कर रहे बुर्जग समाज के अध्यक्ष भोलानाथ आलोक कहते हैं कि उस समय डरा-धमका कर बंदूक की नोक पर मतदान करवाया जाता था। उस समय वोट बैलेट पेपर पर दिया जाता था। बूथ कैप्चरिंग की शुरूआत 1985 में हुई थी। रूपौली विधानसभा में एक प्रत्याशी के द्वारा सबसे पहले बूथ लूटा गया था। इस चुनाव में मतदाताओं को बूथ पर जाने से रोक दिया गया था। इसके बाद प्रत्याशी के लोग बूथ पर जाकर जबरन बैलेट पेपर पर ठप्पा लगा आए। इसके बाद से तो चुनाव में बूथ लूटने की बातें आम हो गईं। जिस प्रत्याशी का जोर चलता था, बूथ कब्जा लेते थे।

पूरे बिहार में चर्चा का विषय बन गयी
पूर्णिया के ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से वोट-लूट का दौर चला। रूपौली विधानसभा क्षेत्र के निवासी महेश पासवान ने बताया पहले बूथ लूट को अंजाम देने के अपराधी हल्की मारपीट किया करते थे। लेकिन, 1994 के लोकसभा चुनाव में बूथ कैपचरिंग की बात पूरे बिहार में चर्चा का विषय बन गयी। इस चुनाव में अत्याधुनिक हथियार का इस्तेमाल हुआ। गांव ही नहीं मुख्यालय में भी जबरन घुसकर बूथ लूट लिया करते थे। धमदाहा व रुपौली विधानसभा क्षेत्रों में तो बूथ कैप्चरिंग की किस्से सुनाए जाते थे। विरोध करने पर लोगों पर जानलेवा हमला तक हुआ। ऐसे कई मामले न्यायालय में चल रहे हैं। अलग-अलग जाति विशेष के क्षेत्रों में चुनाव रक्तरंजित होता रहा।

होमगार्ड के जवानों के भरोसे बूथ 
धमदाहा विस क्षेत्र के निवासी मणिकांत झा बताते हैं कि उस दौर में बूथों पर सुरक्षा का भी अभाव रहता था। होमगार्ड के जवानों के भरोसे बूथ छोड़ दिया जाता था। ठीक-ठाक सड़क वाले बूथों पर जीप और बाइक से गुंडे जाकर लूट लिया करते थे। खराब सड़कों व दियारा इलाके में घोड़ों का इस्तेमाल किया जाता था। इसमें अत्याधुनिक हथियार का भी इस्तेमाल किया गया। यह सिलसिला करीब 1998 के लोकसभा चुनाव तक चला। बूथ लूट के दौरान कई लोगों को जान से भी हाथ धोना पर गया। आलम यह था कि जनता अपने मन का उम्मीदवार नहीं चुन सकती थी।

अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती
बहरहाल दौर बदला, प्रत्याशी बदले, सरकारें भी बदलीं। गुंडाराज खत्म होने लगा। बूथ लूट न हो इसके लिए संवदनशील व अति संवेदनशील बूथें तैयार की गई। अति संवेदनशील बूथों पर अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की गयी। अब बुलेट के सहारे बैलेट बचाई जाने लगी। लोग अपने मत को लेकर जागरूक होने लगे। पुलिस प्रशासन की सख्ती बढ़ गयी। आगामी लोकसभा को लेकर जिले में 1090 बूथों को संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। 486 बूथों को अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। इस अति संवेदनशील बूथों में अर्द्धसैनिक बलों की टुकड़िया तैनात की जाएंगी, ताकि शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव संपन्न हो सके। 

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