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लोकसभा चुनाव: 'ऐसा' होने पर BJP के लिए बदल जाएंगे यूपी-बिहार में समीकरण, घट सकती है ताकत

एनडीए में बड़े दलों के साथ छोटे दलों के अलग होने से अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में उसका कुनबा छोटा हो सकता है। बीते साढ़े चार साल में एनडीए के कुनबे से आधा दर्जन बड़े व छोटे दलों ने नाता तोड़ा है।...

लोकसभा चुनाव: 'ऐसा' होने पर BJP के लिए बदल जाएंगे यूपी-बिहार में समीकरण, घट सकती है ताकत
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता Sun, 18 Nov 2018 10:27 AM
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एनडीए में बड़े दलों के साथ छोटे दलों के अलग होने से अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में उसका कुनबा छोटा हो सकता है। बीते साढ़े चार साल में एनडीए के कुनबे से आधा दर्जन बड़े व छोटे दलों ने नाता तोड़ा है। हालांकि कुछ दल जुड़े भी हैं। इस दौरान तेलुगुदेशम व पीडीपी जैसे दो मजबूत दल बाहर गए हैं, जबकि जद (यू) जैसा प्रमुख दल साथ आया है। दो अन्य प्रमुख दल शिवसेना व रालोसपा बाहर जाने की कगार पर हैं।

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साल 2014 में भाजपा के अपने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आया एनडीए से सबसे पहले नाता तोड़ने वालों में कुलदीप विश्नोई की हरियाणा जनहित कांग्रेस थी। इसके बाद समय समय पर कई दल उससे दूर होते चले गए। इस साल एनडीए से तेलुगुदेशम व पीडीपी ने नाता तोड़ा है जो कि आंध्र प्रदेश व जम्मू कश्मीर के सबसे बड़े दल हैं। इसके पहले महाराष्ट्र में राजू शेट्टी की स्वाभिमानी पक्ष व बिहार के जीतनराम मांझी के हिस्दुस्तान मोर्चा ने भी नाता तोड़ लिया था। पिछले दिनों हुए नागालैंड के विधानसभा चुनाव में नागा पीपुल्स फ्रंट से उसका नाता टूटा तो अभी हो रहे मिजोरम के चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट से उसकी दूरी बनी है।

बिहार व उत्तर प्रदेश के समीकरण बदलेंगे

बिहार में पक्ष व विपक्ष में बराबरी के गठबंधन आमने सामने होने के आसार हैं जिसमें यह तो तय है कि भाजपा की अपनी ताकत घटेगी। क्योंकि इस बार उसके जितने सांसद हैं, वह उससे भी कम पर चुनाव लड़ेगी। उत्तर प्रदेश में स्थिति अभी साफ नहीं है लेकिन पिछले उपचुनाव में जिस तरह से भाजपा विरोधियों ने एकजुटता दिखाई वह गठबंधन की शक्ल ले सकती है। जम्मू कश्मीर में भी स्थितियां भाजपा के अनकूल नहीं हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा अपनी ताकत बढ़ाने के लिए सहयोगी भी बदल रही है। वहां उसे जरूर लाभ मिल सकता है। 

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एनडीए में संसद में ताकत वाले 14 दल 

कहने को तो एनडीए में चालीस से अधिक विभिन्न राज्यों के दल व संगठन शामिल हैं, लेकिन संसद में जिनके पास ताकत है, ऐसे दलों की संख्या महज 14 है। इनके अलावा एनडीए में जिन दलों के साथ भाजपा के रिश्ते टूट के कगार पर हैं उनमें महाराष्ट्र की उसकी सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना, बिहार की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी व उत्तर प्रदेश की सुहेलदेव भारत समाज पार्टी शामिल हैं। 

कई राज्यों में भाजपा के खिलाफ हो सकते हैं मजबूत गठबंधन

भाजपा के लिए चिंता की बात यह भी है कि कई राज्यों में उसके खिलाफ मजबूत गठबंधन हो सकते हैं जिससे उसके अपने और एनडीए के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। कर्नाटक में कांग्रेस व जद (एस) के गठबंघन का खामियाजा वह उठा चुकी है और लोकसभा में भी उसे झटका लग सकता है। इसी तरह से आंध्र प्रदेश में करीब आ रहे तेलुगुदेशम व कांग्रेस से उसकी संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं। तमिलनाडु में भाजपा के साथ अभी तक राज्य का कोई भी बड़ा दल नहीं है, जबकि द्रमुक कांग्रेस के साथ है। तेलंगाना, ओडिशा व पश्चिम बंगाल के मजबूत क्षत्रपों से भाजपा को अकेले ही जूझना पड़ेगा। महाराष्ट्र में शिवसेना अगर भाजपा से अलग होकर लड़ने की घोषणा पर अमल करती है, तो वहां भी भाजपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 

पांच राज्यों के नतीजों का इंतजार

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे भी भावी चुनावी गठबंधनों की दिशा व दशा तय करेंगे। भाजपा की सफलता पर उसे कुछ और सहयोगी मिल सकते हैं, वहीं झटका लगने पर एनडीए को और झटका लग सकता है। बिहार की उसकी सहयोगी रालोसपा व उत्तर प्रदेश की सुहेलदेव भारत समाज पार्टी इसी का इंतजार कर रहे हैं।

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