
माता सती के खून की दो बूंद से प्रकट हुईं दो देवी, दिनभर में बदलती हैं तीन रूप
संक्षेप: Shardiya Navratri 2025: नवरात्रि के 9 दिनों में देवी दुर्गा की भक्ति की धूम रहेगी। भक्त मां की पूजा, अर्चना के साथ ही मंदिरों में मत्था टेकने भी जाएंगे। 52 शक्तिपीठों में नवरात्रि के वक्त खास पूजा करने और नियम का विधान है। जहां दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं।
माता सती के अंग जिन स्थानों पर गिरे वो जगह शक्तिपीठ बोली गईं। और इन शक्तिपीठों पर आज भी पूजा-अर्चना की जाती है। लोगों के बीच इन मंदिरों के प्रति गहरी आस्था है। माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है देवास का मंदिर। जहां मान्यतानुसार देवी सती का कोई अंग नहीं बल्कि रक्त की दो बूंद गिरी थी। जिसकी वजह से इसे जागृत अवस्था में माना जाता है। रक्त की दो बूंद से बनीं दो देवियां तुलजा भवानी और चामुंडा देवी का स्वरूप मानी जाती हैं।
दिनभर में तीन बार बदलती हैं स्वरूप
इस मंदिर के पुजारी के मुताबिक देवी दिनभर में तीन रूप बदलती हैं। सुबह के समय बाल्यरूप में, दिन में युवा अवस्था में और रात में वृद्धावस्था में इनके दर्शन होते हैं।
इस मंदिर की मूर्ति से जुड़ी है कहानी
यहां के कुछ पुजारियों का कहना है कि दोनों देवियों के बीच बड़ी मां और छोटी मां के रूप में जानी जाती हैं और दोनों के बीच बहन का रिश्ता है। एक बार दोनों में किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद से नाराज होकर दोनों ही माताएं अपना स्थान छोड़कर जाने लगीं। बड़ी मां पाताल में समाने लगीं और छोटी मां अपने स्थान से उठ खड़ी हो गईं और टेकरी छोड़कर जाने लगीं। माताओं को कुपित देख माताओं के गण (माना जाता है कि बजरंगबली माता का ध्वज लेकर आगे और भेरू बाबा मां का कवच बन दोनों माताओं के पीछे चलते हैं) हनुमानजी और भेरू बाबा ने उनसे क्रोध शांत कर रुकने की विनती की। इस समय तक बड़ी मां का आधा धड़ पाताल में समा चुका था। वे वैसी ही स्थिति में टेकरी में रुक गईं। वहीं छोटी माता टेकरी से नीचे उतर रही थीं। वे मार्ग अवरुद्ध होने से और भी कुपित हो गईं और जिस अवस्था में नीचे उतर रही थीं, उसी अवस्था में टेकरी पर रुक गईं। इस तरह आज भी माताएं अपने इन्हीं स्वरूपों में विराजमान हैं।
कहां पर बना है ये मंदिर
मध्य प्रदेश के देवास जिले में ये शक्तिपीठ विराजित है। जिसे रक्तपीठ के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर तक पहुचंने के लिए तीन रास्ते हैं। शहर देवास के बिल्कुल बीचोबीच ये मंदिर बना हुआ है। लगभग 300 फीट की ऊंचाई पर बने इस मंदिर तक गाड़ी या पैदल पहुंचा जा सकता है। वहीं परेड ग्राउंड से होकर सीढ़ी और रोप वे का रास्ता भी मंदिर तक पहुंचाता है।

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