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हिमालयन घुरल पर अनुसंधान कर रहा चिड़ियाघर प्रशासन

ल्ली चिड़ियाघर ने हिमालयन घुरल पर अनुसंधान शुरू कर दिया है। हाल ही में घुरल के तीन बच्चों ने जन्म लिया है। चिड़ियाघर प्रशासन तीनों के रहन-सहन की गतिविधियों, व्यवहार और उनकी चहल-कदमी पर अनुसंधान और...

हिमालयन घुरल पर अनुसंधान कर रहा चिड़ियाघर प्रशासन
कार्यालय संवाददाता ,नई दिल्ली Fri, 19 Jun 2020 06:33 AM
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ल्ली चिड़ियाघर ने हिमालयन घुरल पर अनुसंधान शुरू कर दिया है। हाल ही में घुरल के तीन बच्चों ने जन्म लिया है। चिड़ियाघर प्रशासन तीनों के रहन-सहन की गतिविधियों, व्यवहार और उनकी चहल-कदमी पर अनुसंधान और निगरानी कर रहा है। चिड़ियाघर में ऐसा पहली बार है कि घुरल के बच्चों की गतिविधियों पर निगरानी की जा रही हो। चिड़ियाघर के निदेशक रमेश कुमार पांडेय ने बताया कि कुछ समय पहले घुरल के तीन बच्चे पैदा हुए हैं। तीनों को बाड़े, कराल और नाइट सेल में रखकर देखा जाएगा कि व्यवहार और रहन-सहन में क्या परिवर्तन होता है, क्योंकि बाड़े, कराल, नाइट सेल का आकार अलग होता है। बकरी की तरह दिखते हैं : चिड़ियाघर को सबसे पहले घुरल बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा और कपूरथाला की रानी से उपहार में मिले थे। यह विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में आते हैं। यह पूर्वोत्तर और पश्चिम हिमालयन क्षेत्र में पाए जाते हैं। पहाड़ की प्रजाति का गर्म क्षेत्र में प्रजनन करना अपने में अनूठा है। घुरल बकरी की तरह दिखाई देते हैं। चिड़ियाघर का उद्देश्य शिक्षा और वन्यजीवों की जानकारी देने के अलावा इस प्रजाति के व्यवहार पर भी शोध करना है। घुरल की औसतन आयु 13 से 15 वर्ष के बीच होती है। बच्चों ने जन्म लिया है हाल ही में घुरल के। चिड़ियाघर प्रशासन इनकी गतिविधियों की निगरानी कर रहा है।
रात के समय कराल में रखने पर जोर चिड़ियाघर के निदेशक ने बताया कि वन्यजीवों को रात के समय सेल में रखने की जगह कराल में रखने पर जोर दिया जा रहा है। खासतौर पर अगर वह गंभीर हालत में नहीं हैं। कराल में रहने से वन्यजीव खुद को ज्यादा आराम महसूस कर रहे हैं। संगाई हिरणों सहित कई मामलों में उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले हैं। हिमालयन भालू के लिए अस्थायी तौर पर कराल बनाया जा रहा है।इनके स्वास्थ्य की बेहतर समझ के लिए जानवरों के पैथोलॉजिकल टेस्ट तेज किए गए हैं। वहीं, जयपुर से आए भेड़िये के जोड़े को प्रजनन के लिए बाड़े में छोड़ा गया है।
-बाड़े में छोड़ने पर रहन-सहन में बदलाव निदेशक ने बताया कि वन्यजीवों को बाड़े में सुबह सात बजे छोड़ने से उनकी दिनचर्या में बदलाव हुआ है। वन्यजीवों की चहल-कदमी बढ़ी है। खुद को काफी फुर्तीला महसूस कर रहे हैं। इसकी झलक हाथी के बाड़े में देखने को मिलती है।

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