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अब पूरे साल लीजिए दशहरी-आम्रपाली जैसे आमों का मजा, आइस्क्रीम भी रहेगी उपलब्ध

देश में अब दशहरी , आम्रपाली , मल्लिका और तोतापरी आम का मजा सालों भर लिया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों ने तरह-तरह के आम के गूदे के प्रसंस्करण अकर उसे संरक्षित करने की तकनीक का विकास और उससे सालों भर...

अब पूरे साल लीजिए दशहरी-आम्रपाली जैसे आमों का मजा, आइस्क्रीम भी रहेगी उपलब्ध
लाइव हिन्दुस्तान टीम ,नई दिल्ली Thu, 23 Jul 2020 02:13 PM
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देश में अब दशहरी , आम्रपाली , मल्लिका और तोतापरी आम का मजा सालों भर लिया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिकों ने तरह-तरह के आम के गूदे के प्रसंस्करण अकर उसे संरक्षित करने की तकनीक का विकास और उससे सालों भर आइक्रीम तथा कई अन्य उत्पादों के निमार्ण की प्रौद्योगिकी का विकास कर लिया है। ये आइक्रीम बीटा कैरोटीन से भरपूर है जो लोगों में विटामिन ए की आपूर्ति करता है। बीटा-कैरोटीन पौधों और फलों में पाया जाने वाला एक लाल,  नारंगी और पीला रंग है। गहरे लाल, नारंगी और पीले  रंग वाले फल और सब्जियों से हमें बीटा-कैरोटीन प्राप्त होता है। गाजर,  पालक, टमाटर, सलाद पत्ता, शकरकंदी, ब्रोकली, सीताफल, खरबूजा, पपीता, आम,  मटर, गोभी, लाल-पीली शिमला मिर्च, खुबानी आदि। इनमें मौजूद फाइटोकेमिकल्स (पौधों से प्राप्त रासायनिक पदार्थ) श्लेष्मा  संश्लेषक झिल्ली (म्यूकोस मैम्बरैन) का गठन करके खाद्य पदाथोर्ं में रंग  उत्पादित करता है। यह खाद्य पदाथोर्ं में प्राकृतिक रूप से मौजूद वसा में  घुलनशील सक्रिय यौगिक है।  बीटा-कैरोटीन अपने आप में कोई पोषक तत्व  नहीं है, लेकिन यह रेटिनॉल में बदल कर हमारे शरीर में विटामिन ए की आपूर्ति  करता है, जो आंखों के कई प्रकार के रोग, कैंसर, हृदय संबंधी असाध्य रोगों  के निवारण में सक्षम है।केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ ने आम के गूदे के प्रसंस्करण , उसे संरक्षित करने तथा उससे आइसक्रीम बनाने की तकनीक का विकास किया है। इस तकनीक से एक साल तक गुदों को संरक्षित किया जा सकता है । आम्रपाली आम के गूदे से तैयार सौ ग्राम की आइसक्रीम में 3.51 मिली ग्राम बीटा कैरोटीन पाया गया है जबकि दशहरी में यह 3.11 मिलीग्राम तथा तोतापरी में यह 1.86 मिली ग्राम है । 
संस्थान के निदेशक शैलेंद्र राजन और प्रधान वैज्ञानिक मनीष मिश्र के अनुसार इससे पहले केवल अल्फोन्सो आम के गूदे से तैयार आइक्रीम उपलब्ध थी । दशहरी , लंगड़ा , चौसा और आम्रपाली जैसी किस्मों के गूदे के प्रसंस्करण की तकनीक नहीं थी जिसके कारण आइसक्रीम जैसे उत्पाद तैयार नहीं हो पा रहे थे । फलो के पक कर तैयार होने पर उसके मूल्य कम हो जाते हैं और छोटे फलों की अच्छी कीमत भी किसानों को नहीं मिल पाती है । आम के सीजन के बाद जब उसके गूदे के उत्पाद तैयार होंगे तो किसानों को अच्छा मूल्य मिलेगा और लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे ।         
दशहरी आम से आइक्रीम बनाने का कारोबार शुरू भी हो गया है। आम से पहले स्क्वैश , टॉफी , आम पापड़ आदि का निमार्ण किया जाता था । आम के गूदे को संरक्षित किये जाने से पेय का भी निमार्ण किया जा सकता है । वैज्ञानिकों का मानना है कि तुड़ाई से परिवहन और बिक्री के दौरान करीब 18 से 2० प्रतिशत आम नष्ट हो जाते हैं ।

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