‘वर्क फ्रॉम होम’ से ऊब चुके हैं? काम के अतिरिक्त बोझ और महीनों से एक जैसे माहौल में रहने की मजबूरी के चलते उत्पादक क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है? अगर हां तो हफ्ते-दस दिन में एक ‘मेंटल हेल्थ डे’ लेना शुरू कर दें। अमेरिका के मशहूर मनोविज्ञान चिकित्सक मार्क लोविन ने अपने हालिया अध्ययन के आधार पर यह सलाह दी है।
लोविन के मुताबिक ‘मेंटल हेल्थ डे’ मस्तिष्क को ‘रिबूट’ करने का बेहतरीन जरिया है। दरअसल, इनसान जब लंबे समय तक एक ही तरह का काम करता रहता है तो उसके दिमाग का कुछ हिस्सा बुरी तरह से थक जाता है। उसमें दोबारा ऊर्जा फूंकने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से ब्रेक लेना और नई चीजों पर ध्यान केंद्रित करना बेहद जरूरी है। लोविन ने कहा कि ‘मेंटल हेल्थ डे’ आत्ममंथन का मौका देता है। लोग रोजमर्रा की समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के उपाय तलाश पाते हैं, जो खोई रचनात्मकता को लौटाने व उत्पादक क्षमता बढ़ाने में कारगर है।
इन छह उपायों से मिलेगा फायदा
1.सोशल मीडिया से दूरी
-लोविन ने ‘मेंटल हेल्थ डे’ पर सोशल मीडिया से पूरी तरह से दूरी बनाए रखने की सलाह दी। इसके लिए व्हॉट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे ऐप के आइकन को एक फोल्डर में छिपा दें, ताकि फोन चलाते समय उन पर नजर पड़े तो अकाउंट खंगालने की तलब न महसूस हो। लोविन ने स्पष्ट किया कि ‘मेंटल हेल्थ डे’ का इस्तेमाल व्यक्तिगत जीवन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए होना चाहिए। देश-दुनिया की हलचल जानने की उत्सुकता मानसिक सुकून हासिल करने के प्रयास में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
2.दो छुट्टी लेने में बुराई नहीं
-लोविन कहते हैं, कई बार एक दिन का आराम काफी नहीं होता। मस्तिष्क को पूरी तरह से तरोताजा करने के लिए ज्यादा समय की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में महीने में एक बार अतिरिक्त छुट्टी जरूर लें। कोशिश करें कि यह छुट्टी साप्ताहिक अवकाश के साथ मिले। इस दिन ऑफिस का जिक्र अपनी जुबान पर न आने दें। परिवार के साथ अच्छे पल बिताने, कॉमेडी फिल्म-शो देखने और कुकिंग-पेंटिंग-बागवानी जैसे रचनात्मक कार्यों में मन लगाने की कोशिश करें। मानसिक थकान मिटाने के लिए ‘पावर नैप’ भी लेते रहें।
3.स्क्रीन के इस्तेमाल का समय तय करें
-बकौल लोविन, ‘मेंटल हेल्थ डे’ का मतलब सिर्फ ऑफिस के काम या सोशल मीडिया ही नहीं, बल्कि स्क्रीन के इस्तेमाल से भी ब्रेक लेना है। इसलिए छुट्टी वाले दिन फोन और कंप्यूटर के इस्तेमाल की अवधि निर्धारित कर उसे सख्ती से अमल में लाएं। दिन-रात टीवी देखने, गेम खेलने या इंटरनेट का इस्तेमाल करने में मशगूल रहने के बजाय आंखों को आराम दें। जरूरी संवाद के लिए सोशल मीडिया या ईमेल के बजाय फोन कॉल-एसएमएस का सहारा लें। दोस्तों से कुछ बड़ी घटना घटने पर फोन कर सूचना देने को कहें।
4.प्रकृति के साथ समय गुजारें
- 2014 में प्रकाशित हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन में पेड़-पौधों के बीच समय गुजारने वाले लोगों में बेचैनी, उदासी और जीवन से नाउम्मीदी का भाव कम मिला था। लिहाजा लोविन छुट्टी वाले दिन पार्क में चहलकदमी के लिए समय निकालने की सलाह देते हैं, ताकि व्यक्ति पेड़-पौधों-फूलों की खूबसूरती को निहारने, चिड़चिड़यों की चहचहाहट सुनने और ताजी हवा का एहसास लेने की खुशी महसूस कर सके।
5.ऑफिस सेटअप में बदलाव करें
-लोविन कहते हैं, कई बार इनसान अपने आसपास एक ही तरह की चीजों को देखकर बोर हो जाता है। उसे लगता है कि जिंदगी में कुछ नया या रोमांचक नहीं हो रहा। अगर आप भी इसी तरह की सोच से घिरे हुए हैं तो घर की साज-सज्जा में बदलाव करें। ऑफिस सेटअप को भी नया लुक देना फायदेमंद है। इसके लिए पैसे खर्च करना भी जरूरी नहीं। घर में पहले से मौजूद चीजों को ही बस इधर-उधर खिसकाना काफी है।
6.दोस्तों से मिलते-जुलते रहें
-कोरोना संक्रमण ने सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल को आम जिंदगी की जरूरत बना दिया है। पर इसका यह मतलब नहीं कि आप अपने दोस्तों-रिश्तेदारों या पड़ोसियों से पूरी तरह से कट जाएं। अकेलेपन का एहसास दूर भगाने और सामाजिक सुरक्षा का भाव जगाने के लिए पार्क में दोस्तों के साथ महफिल जमाएं। आपस में छह फीट की दूरी बनाते हुए पुरानी यादों को ताजा करने और हंसने-खिलखिलाने के बहाने ढूंढें।
‘वर्क फ्रॉम होम’ से परेशान लोग
-59% कर्मचारियों ने ‘वर्क फ्रॉम होम’ में ऑफिस से कहीं ज्यादा काम करने की बात कही
-91% ने अतिरिक्त काम के बदले कोई भत्ता या छुट्टी नहीं दिए जाने पर नाखुशी जाहिर की
-87% का मानना है नियोक्ताओं को ‘वर्क फ्रॉम होम’ के लिए पारदर्शी नीति बनानी चाहिए
शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर असर
-56% में पीठ-कमर-कंधे में दर्द, 52% में अनिद्रा, 38% में सिरदर्द की समस्या पनपी
-54% घर में रहते हुए भी बीवी-बच्चों, अभिभावकों के साथ अच्छे पल बिताने को तरसे
-33% को लॉकडाउन के शुरुआती महीनों में छुट्टी नहीं मिलने से बेचैनी की शिकायत हुई
(स्रोत : योर एमिगोज फाउंडेशन का सर्वे)
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