उपलब्धियां याद कर लेंगे फैसले तो फायदे में रहेंगे, अध्ययन से खुलासा
कोरोना संक्रमण ने लोगों के दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली है। ‘वर्क फ्रॉम होम’ में काम के अत्यधिक बोझ ने भी तनाव का स्तर कई गुना बढ़ा दिया है। ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों को सही-गलत...

कोरोना संक्रमण ने लोगों के दिन का चैन और रातों की नींद छीन ली है। ‘वर्क फ्रॉम होम’ में काम के अत्यधिक बोझ ने भी तनाव का स्तर कई गुना बढ़ा दिया है। ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों को सही-गलत के बीच अंतर करने और त्वरित फैसले लेने की क्षमता में गिरावट की शिकायत सता रही है। ‘जर्नल ई-लाइफ’ में छपे एक अमेरिकी अध्ययन में ऐसे लोगों को अहम फैसले लेते समय पुरानी उपलब्धियों को याद करने की सलाह दी गई है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक उपलब्धियां न सिर्फ आत्मविश्वास का स्तर बढ़ाती हैं, बल्कि सूचनाओं का विश्लेषण कर सही निष्कर्ष तक पहुंचने की क्षमता में भी इजाफा करती हैं। उन्हें याद करने से स्ट्रेस हार्मोन ‘कॉर्टिसोल’ के स्तर में कमी भी आती है, जिससे व्यक्ति तनावमुक्त होकर काम में ज्यादा ध्यान लगा पाता है। उसकी उत्पादन क्षमता भी कई गुना बढ़ जाती है।
शोध दल की अगुवाई करने वाली प्रोफेसर सोनिया बिशप ने जरूरी काम करते समय पुरानी नाकामियों का ख्याल भूलकर भी मन में नहीं लाने की नसीहत दी। ऐसा करने से व्यक्ति फैसले लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, फिर चाहे वो सही दिशा में ही क्यों न सोच रहा हो।
यूसी बर्कले के शोधकर्ताओं ने तीन हजार वयस्कों की कठिन परिस्थितियों में त्वरित फैसले लेने की क्षमता आंकी। इनमें तनावपूर्ण नौकरी करने वाले पेशेवरों के अलावा डिप्रेशन और बेचैनी की समस्या से जूझ रहे मरीज भी शामिल थे।
सभी प्रतिभागियों को ऐसे प्रश्न सौंपे गए, जो उनके पूर्व के तजुर्बे पर आधारित थे। इस दौरान जवाब ढूंढते समय सकारात्मक अनुभवों को याद करने वाले प्रतिभागियों ने कम अवधि में ज्यादा बेहतर फैसले लिए। वहीं, पीछे मुड़कर नकारात्मक अनुभवों को देखने वाले प्रतिभागी काफी दुविधा में नजर आए। वे या तो फैसले लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाए या फिर इसमें काफी वक्त लिया। यही नहीं, उनकी ओर से लिए गए निर्णयों के सफल होने की गुंजाइश भी बेहद कम मिली।
‘वर्क फ्रॉम होम’ ने बढ़ाया तनाव
-59% कर्मचारियों ने ‘वर्क फ्रॉम होम’ में ऑफिस से कहीं ज्यादा काम करने की बात कही
-91% ने अतिरिक्त काम के बदले कोई भत्ता या छुट्टी नहीं दिए जाने पर नाखुशी जाहिर की
-87% का मानना है नियोक्ताओं को ‘वर्क फ्रॉम होम’ के लिए पारदर्शी नीति बनानी चाहिए
शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर असर
-56% में पीठ-कमर-कंधे में दर्द, 52% में अनिद्रा, 38% में सिरदर्द की समस्या पनपी
-54% घर में रहते हुए भी बीवी-बच्चों, अभिभावकों के साथ अच्छे पल बिताने को तरसे
-33% को लॉकडाउन के शुरुआती महीनों में छुट्टी नहीं मिलने से बेचैनी की शिकायत हुई
(स्रोत : योर एमिगोज फाउंडेशन का सर्वे)