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पिटाई करने से बेहद बुरे बनते हैं बच्चे, 69 शोध के बाद वैज्ञानिकों ने किया दावा

शैतानी करने पर बच्चों को पिटाई का डर दिखाया जाता है पर यह तरीका न सिर्फ बच्चों के अंदर बुरी आदतों को मजबूत बनाता है, बल्कि उनके विकास में भी बाधक बन जाता है। अमेरिका, चीन, ब्रिटेन समेत नौ देशों में...

पिटाई करने से बेहद बुरे बनते हैं बच्चे, 69 शोध के बाद वैज्ञानिकों ने किया दावा
हिन्दुस्तान ब्यूरो , नई दिल्लीWed, 30 Jun 2021 10:21 AM
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शैतानी करने पर बच्चों को पिटाई का डर दिखाया जाता है पर यह तरीका न सिर्फ बच्चों के अंदर बुरी आदतों को मजबूत बनाता है, बल्कि उनके विकास में भी बाधक बन जाता है। अमेरिका, चीन, ब्रिटेन समेत नौ देशों में किए गए 69 वैज्ञानिक अध्ययनों की एक समीक्षा के आधार पर यह कहा गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिटाई से बच्चों का व्यवहार और ज्यादा खराब हो जाता है। यह समीक्षा प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका द लांसेट में प्रकाशित हुई है। 

इस समीक्षा के वरिष्ठ लेखक और टेक्सास विश्वविद्यालय के मानव विकास व परिवार विज्ञान के प्रो. एलिजाबेथ गेर्शंफ का कहना है कि माता-पिता अपने बच्चों को मारते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उनके व्यवहार में सुधार होगा। पर दुर्भाग्य से इस तरह की पिटाई अथवा शारीरिक दंड बच्चों के व्यवहार में सुधार नहीं करता है, बल्कि इसे और भी खराब बना देता है। इस शोध में वैज्ञानिकों ने बच्चों पर शारीरिक हिंसा की श्रेणी में आने वाले तरीकों को अलग करके उन तरीकों के बच्चों पर असर का अध्ययन किया जो आमतौर पर अभिभावक अपनाते हैं। यह समीक्षा अमेरिका, कनाडा, चीन, कोलंबिया, ग्रीस, जापान, स्विट्जरलैंड, तुर्की, ब्रिटेन में किए गए 69 वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर की गई।

पिटाई खाने के बाद ज्यादा प्रतिक्रिया देते हैं बच्चे-
इस समीक्षा के दौरान 69 में से 19 स्वतंत्र शोधों में पाया गया कि बच्चों को दिया जाने वाला शारीरिक दंड समय के साथ उनके व्यवहार में बड़ी समस्याएं पैदा करते हैं। उनके व्यक्तित्व की आक्रामकता बढ़ जाती है, उनके असामाजिक व्यवहार में वृद्धि होती है और स्कूल में उनका व्यवहार बेहद नकारात्मक होता चला जाता है। समीक्षा में पाया गया कि शारीरिक रूप से दंडित किए जाने वाले बच्चे जिस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं, उसमें लिंग, नस्ल या जातीयता से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे किसी भी सामाजिक वर्ग से आते हों पर दंड के खिलाफ उनकी प्रतिक्रिया काफी हद तक एकसमान होती है। 

नई पीढ़ी के अभिभावक कम मार लगाते 
अध्ययन से यह भी पता लगा कि बच्चों को मारने की प्रवृत्ति में कुछ बदलाव उस पीढ़ी में देखा जा रहा है जो 1981 से 1994 तक पैदा हुई और अब अभिभावक की भूमिका अदा कर रही है। इस पीढ़ी के अभिभावक अपने से पहले की पीढ़ी के अभिभावकों के मुकाबले अपने बच्चों को कम पीटते हैं। एक शोध के अनुसार, 1993 में अभिभावक बच्चों को 50 प्रतिशत ज्यादा थप्पड़ अथवा नितंब पर मारते थे जो 2017 में जाकर 35 प्रतिशत हो गया। 

अधिकांश देशों में पिटाई वैध 
यूनिसेफ के मुताबिक, सबसे चिंता की बात यह है कि दुनिया में 2 से 4 वर्ष की आयु के लगभग 63% बच्चे या या लगभग 25 करोड़ बच्चे, ऐसे देशों में रहते हैं जहां का कानून अभिभावकों को उनकी पिटाई की अनुमति देते हैं। यही वजह है कि आम अभिभावक इस प्रवृत्ति से बाहर ही नहीं आ पाता कि बच्चों को पीटे बिना भी उनके व्यवहार में सुधार लाया जा सकता है।

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