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नवरात्रि स्पेशल: बच्चों और दिव्यांगों का आर्थिक सहारा बनीं ये 2 महिलाएं

नवरात्र के नौवें दिन सिद्धिदात्री देवी की पूजा होती है। ये सौंदर्य व आर्थिक समृद्धि की प्रतीक हैं। हमारे समाज में ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने अपनी क्षमताओं का उपयोग समाज व अपनी सशक्तिकरण के लिए किया...

नवरात्रि स्पेशल: बच्चों और दिव्यांगों का आर्थिक सहारा बनीं ये 2 महिलाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीMon, 07 Oct 2019 08:28 AM
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नवरात्र के नौवें दिन सिद्धिदात्री देवी की पूजा होती है। ये सौंदर्य व आर्थिक समृद्धि की प्रतीक हैं। हमारे समाज में ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्होंने अपनी क्षमताओं का उपयोग समाज व अपनी सशक्तिकरण के लिए किया है। इन महिलाओं ने समाजहित में जो ढाना उसे सिद्ध कर लिया। आइए इनके बारे में जानते हैं ...  

भाषा मुखर्जी : 'ब्यूटी विद पर्पज' का संदेश दे रहीं भारतवंशी मिस इंग्लैंड -
कोलकाता। मिस इंग्लैंड-2019 का खिताब जीत चुकीं भाषा मुखर्जी का दिल भारत के लिए धड़कता है। भारतीय मूल की भाषा ने अपनी ख्याति का प्रयोग कोलकाता की झुग्गियों के लिए चंदा इकट्ठा करने में किया। उन्होंने 17.48 लाख रुपये इकट्ठा करके दान किया है। वह इस काम को ‘ब्यूटी विद पर्पज’ नाम देती हैं। जिसके पास कोई भी खूबी हो, उसका इस्तेमाल उसे समाज के विकास में करना चाहिए।  

23 वर्षीय मुखर्जी का बचपन कोलकाता में बीता। वह अगले महीने होने वाली मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भाग ले रही हैं। इसकी तैयारी के लिए वह शुक्रवार को लंदन में थीं, जहां होप फाउंडेशन संस्था के कार्यक्रम में पहुंचकर उन्होंने चंदा इकट्ठा किया। यह चंदा कार्यक्रम के टिकटों की बिक्री, दान के जरिये इकट्ठा किया गया। जब वह नौ साल की थीं तो उनका परिवार इंग्लैंड चला गया था। कोलकाता के 14 गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए होगा जिनकी पढ़ाई का जिम्मा संस्था उठा रही है।  

उपासना मकाती : दिव्यांगों के लिए फैशन पत्रिका शुरू की   
मुंबई। निजी कंपनी के पब्लिक रिलेशन विभाग में काम कर रहीं उपासना मकाती अच्छी-भली नौकरी होने पर भी असंतुष्ट थीं। हर दिन उनकी बेचैनी बढ़ती जाती, वे सोचती रहती कि आखिर उनकी मंजिल क्या है। इसी सोच में वे फैशन पत्रिका पढ़ रही थीं। उन्होंने खुद से सवाल किया कि क्या दृष्टि बाधित लोगों के लिए ऐसी कोई फैशन पत्रिका उपलब्ध है? इंटरनेट सर्च व दूसरे स्त्रोतों से जो जानकारी मिली, उससे वह बहुत निराश हुईं क्योंकि दिव्यांगों के लिए ऐसी कोई सामग्री उपलब्ध नहीं थी। 

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