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बच्चों में होने वाले कैंसर से जुड़े इन भ्रमों को सच मानते हैं लोग, जानिए क्या है सच्चाई

Myths and Fact: बच्चों और बड़ों में होने वाले कैंसर अलग-अलग होते हैं। कैंसर के प्रकार और उपचार के लिए दी गयी प्रतिक्रिया और ईलाज दर के स्तर पर इनमें अंतर होता है। उदाहरण के तौर पर, बड़ों में सबसे...

बच्चों में होने वाले कैंसर से जुड़े इन भ्रमों को सच मानते हैं लोग, जानिए क्या है सच्चाई
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीWed, 16 Feb 2022 01:50 PM
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Myths and Fact: बच्चों और बड़ों में होने वाले कैंसर अलग-अलग होते हैं। कैंसर के प्रकार और उपचार के लिए दी गयी प्रतिक्रिया और ईलाज दर के स्तर पर इनमें अंतर होता है। उदाहरण के तौर पर, बड़ों में सबसे ज्यादा होने वाले कैंसर में स्तन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, मुंह का कैंसर और फेफड़े का कैंसर शुमार हैं। वहीं बच्चों में ल्यूकेमिया, ब्रेन एवं स्पाइनल कॉर्ड ट्यूमर, न्यूरोब्लास्टोमा, विल्म्स ट्यूमर, लिंफोमा और रेटिनोब्लास्टोमा के मामले पाए जाते हैं। बच्चों में कैंसर बहुत तेजी से फैलता है, लेकिन यदि सही समय पर पता चल जाए और सही इलाज मिले तो कीमोथेरेपी से नतीजे अच्छे मिलते हैं और इलाज दर भी अच्छी होती है। दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एवं रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) की निदेशक बाल चिकित्सा हेमाटोलॉजी एवं ऑन्कोलॉजी और आरजीसीआईआरसी नीति बाग की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. गौरी कपूर से जानें बच्चों में होने वाले कैंसर से संबंधित कुछ फेमस भ्रम और उनकी असल हकीकत। 

बच्चों में होने वाले कैंसर से जुड़े भ्रम और तथ्य-

भ्रम : बच्चों में होने वाला ब्लड कैंसर लाइलाज है।
सचः बच्चों में होने वाला ब्लड कैंसर बड़ों से बहुत अलग होता है। बच्चों में ज्यादातर एक्यूट लिंफोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (एएलएल) ब्लड कैंसर होता है और इलाज की आधुनिक पद्धतियों के माध्यम से एएलएल के 80 प्रतिशत मामले इलाज के योग्य होते हैं। जल्दी पता लग जाने और विशेषज्ञता प्राप्त अस्पताल में इलाज करवाने से, इलाज सफल रहने की उम्मीद बढ़ जाती है। 

भ्रम : बच्चों में होने वाले कैंसर आनुवंशिक होते हैं।
सच : कैंसर डीएनए में बदलाव के कारण होते है, लेकिन बच्चों में होने वाले 90 प्रतिशत से ज्यादा कैंसर के मामले आनुवंशिक नहीं होते हैं और इसलिए ये कैंसर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में नहीं पहुंचते हैं।

बच्चों में होने वाले कैंसर के लक्षण
बच्चों में होने वाले कैंसर के लक्षण अन्य बाल रोगों का आभास करा सकते हैं। बच्चों में होने वाले कैंसर के लक्षणों में लंबे समय तक बिना कारण बुखार होना, अकारण ही पीलापन और कमजोरी होना, आसानी से कहीं भी खरोंच लगना और खून आना, शरीर पर कहीं गांठ, सूजन या दर्द होना, सिरदर्द के साथ अक्सर उल्टी होना और दृष्टि में अचानक बदलाव होना आदि शामिल हैं।

बच्चों में कैंसर के मामले और इलाज की स्थिति
बच्चों में कैंसर के मामले बहुत कम ही देखे जाते हैं। दुनियाभर में कैंसर के कुल मामलों में बच्चों को होने वाला कैंसर करीब 3 प्रतिशत है। हर वर्ष दुनियाभर में बच्चों में कैंसर के करीब तीन लाख मामले सामने आते हैं और इनमें से भारत में करीब 50,000 मामले सामन आते हैं।

बच्चों में कैंसर के कारण क्या लंबे समय तक कुछ साइड इफेक्ट बने रहते हैं?
बच्चों में होने वाले कैंसर फैलते तेजी से हैं, लेकिन इलाज का इन पर असर भी बेहतर होता है। आमतौर पर माना जाता है कि इलाज के पांच साल बाद कैंसर दोबारा होने की आशंका बहुत कम हो जाती है। इसके बाद कुछ मामलों में दोबारा परेशानी हो सकती है, लेकिन ऐसा बहुत कम ही होता है। इलाज के दौरान बच्चे बढ़ रहे होते हैं और उनके अंगों का विकास हो रहा होता है। संभव है कि इलाज के कारण किसी अंग के विकास में कुछ बाधा उत्पन्न हो जाए, लेकिन इसका पता तुरंत नहीं लग पाता है। कुछ साल बाद ऐसी कोई बात देखने को मिल सकती है। इसे लेट इफेक्ट कहते हैं।

लेट इफेक्ट के बारे में जानने के लिए हर साल जांच, स्क्रीनिंग और मॉनिटरिंग जरूरी है। कभी-कभी ऐसे लेट इफेक्ट 30 साल या 40 साल बाद भी दिख सकते हैं। लेकिन ऐसा देखा गया है कि 30 वर्ष की अवस्था होने पर लगभग 40 फीसदी मामलों में लेट इफेक्टस होते हैं। इन लेट इफेक्टस का निदान जल्दी किया जा सकता है, जैसे कि सुनने की क्षमता कम होने पर हियरिंग एड की मदद से इस समस्या से निपटा जा सकता है। एंडोक्राइन सिस्टम पर दुष्प्रभाव की स्थिति में हार्मोन ट्रीटमेंट दिया जा सकता है, जिससे बच्चे की ग्रोथ ठीक रहे। 

बावजूद इसके कुछ ऐसे साइड इफेक्ट भी होते हैं, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, ब्रेन ट्यूमर से ग्रस्त बच्चे के इलाज के बाद उसे चलने में या कुछ चीजों को समझने में परेशानी हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है कि इलाज के दौरान ट्यूमर के आसपास के कुछ हिस्सों पर भी असर पड़ने की आशंका रहती है।

बच्चों में होने वाले कैंसर और मानसिक स्वास्थ्य पर असर-
यह सच है कि बच्चों में कैंसर का इलाज लंबा चलता है और बहुत गंभीर भी होता है। इसमें बार-बार अस्पताल आने, अस्पताल में भर्ती होने, इंजेक्शन लगवाने की जरूरत होती है और इससे बच्चे के साथ उसके परिवार पर भी दबाव होता है। कई मोर्चे पर इससे निपटने की जरूरत है।

अस्पताल में बच्चों के लिए सही माहौल होना चाहिए, जिससे उनका ध्यान बीमारी से हटा रहे और वे खुश रहें। साथ ही, इंजेक्शन लगाने या ब्लड टेस्ट के दौरान जहां तक संभव हो दर्दरहित प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। बच्चों के लिए काउंसलर की व्यवस्था भी होनी चाहिए। उन्हें बच्चे से बात करनी चाहिए और उसके डर व बेचैनी को दूर करना चाहिए। अभिभावकों के लिए भी काउंसलर होना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अभिभावकों का मन शांत रहता है तो बच्चे भी शांत रहते हैं। आरजीसीआईआरसी में हमने इसके लिए प्लेरूम अध्यापिका की नियुक्ति भी की है। वह स्कूल की जरूरत को समझती हैं और देखती हैं कि बच्चे किस कक्षा में पढ़ते हैं और इलाज के दौरान कितना समय लगना है। इससे बच्चों की पढ़ाई जारी रखने में मदद मिलती है।

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