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मुट्ठी भर यादें: जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं का पुलिंदा

रस्किन बॉन्ड एक ऐसे लेखक हैं जो रोजमर्रा की उबाऊ जिंदगी में भी हास्य और रस खोजकर निकाल लेते हैं । उनके पास हर घटना और हर बात में पाठकों के लिए भी कुछ रुचिकर जरूर होता है। उनकी कहानियां एक खास किस्म...

मुट्ठी भर यादें: जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं का पुलिंदा
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीMon, 20 May 2019 02:03 PM
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रस्किन बॉन्ड एक ऐसे लेखक हैं जो रोजमर्रा की उबाऊ जिंदगी में भी हास्य और रस खोजकर निकाल लेते हैं । उनके पास हर घटना और हर बात में पाठकों के लिए भी कुछ रुचिकर जरूर होता है। उनकी कहानियां एक खास किस्म की होती हैं  और उसे कहने की शैली भी अलहदा होती है। उनकी कहानियां उनके जीवन, जन्मभूमि और अनुभवों से गहरे जुड़ी होती हैं। उपन्यास ‘मुट्ठी भर यादें’ उनका ही जीवन वृतांत सुनाती है। कहानी उस समय की है जब वे 21 साल के युवा थे लेकिन लिखी गई तब जब वे 60 के हो चुके थे। उपन्यास पढ़ते वक्त यह उनकी जिंदगी की असल कहानी प्रतीत हो सकती है लेकिन कहानी में कही गई प्रत्येक घटना के साथ लेखक की कल्पनाशीलता के समावेश से इंकार नहीं किया जा सकता। जैसा कि लेखक ने स्वयं कहा कि इसमें कुछ पात्र जरूर उनकी असल जिंदगी से प्रेरित हैं लेकिन इसे उनकी आत्मकथा न माना जाए।

इक्कीस साल का एक युवक लेखक बनना चाहता है। उसके कुछ दोस्त और नाममात्र के रिश्तेदार भी हैं। हालांकि वे उसके काम में किसी भी तरह का सहयोग नहीं करते बल्कि उसे भटकाने का काम जरूर कर देते हैं। हां! सीताराम कभी-कभी लेखक की उलझनों को सुलझाने का प्रयास करता है। लेखक और सीताराम में कोई समानता नहीं है फिर भी लेखक को उसमें एक अच्छा मित्र नजर आता है। अपनी उम्र के तमाम लड़कों की तरह लेखक की नजर भी महारानी की बेटी इंदु पर है। इंदु लेखक की हमउम्र है और खूबसूरत भी। लेकिन पाठक को घोर आश्चर्य और थोड़ा मजा भी आता है, जब लेखक महारानी के मोहपाश में फंस कर अपना कुंवारापन खो बैठता है।

उपन्यास लेखक के जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं का पुलिंदा है, जिसे क्रमवार तरीके से लिखकर उपन्यास की शक्ल प्रदान की गई है।  इसे उनके लेखन् शैली का कमाल भी कहा जा सकता है कि साधारण सी बात को वे गुदगुदाने वाले अंदाज में लिखते हैं।

‘‘मिर्च के पकौड़े ने जल्दी ही महारानी की स्वादेंद्रियों पर धावा बोल दिया।
‘‘पानी, पानी।’’ वे चिल्लाईं और बाथरूम का दरवाजा खुला देख, पानी के नल की ओर भागी।’’

प्रकृति से अथाह प्रेम उनकी हर कहानी में दिखता है। यहां भी यह प्रेम दिखाना वे नहीं भूले हैं-
‘‘आम और लीची के पेड़ धुल कर निखर गए थे। साल और शीशम हवा के झांकों से झूम रहे थे। पीपल के पत्ते नाच रहे थे। बरगद की जड़ों ने जी भर कर पानी पिया। नीम से मदमाती गंध आने लगी।’’

लेखक अपनी बात कहते हुए कभी गंभीर नहीं होते बल्कि गंभीर बात को भी वे हल्के -फुल्के अंदाज में कह जाते हैं। इस उपन्यास में वे अधिकतर एक अल्हड़ युवा के रूप में दिखे हैं लेकिन कभी-कभी संवेदनशील भी हो जाते हैं।
‘‘जब तक  हमारे आस-पास नन्ही खरपतवार उगी हुई है, तब तक इंसान और प्रकृति के लिए उम्मीद भी जिंदा रहेगी।’’

मूल रूप से यह लेखक के अंग्रेजी उपन्यास ‘ए हैंडफुल ऑफ नट्स’ से हिंदी में अनुदित  है। लेकिन अनुवादक ने अनुवाद के बाद इसमें उपस्थिति हास्य रस और बातचीत की आत्मा को मरने नहीं दिया। कुल मिलाकर रस्किन बॉन्ड को हिंदी में पढ़ने वाले पाठकों के लिए एक और तोहफा है यह किताब।

समीक्षा- सरस्वती रमेश 
किताब - मुट्ठी भर यादें
लेखक- रस्किन बॉन्ड
अनुवाद- रचना भोला ‘यामिनी’
प्रकाशक --राजपाल एन्ड सन्ज़
कीमत-140/-

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