मायने रखती हैं आपकी जरूरतें भी
हद तय करना अपनी देखभाल करने का एक तरीका है। हद दूसरों की भी तय की जाती है और अपनी भी। अपनी परवाह करने का मतलब यह कतई नहीं होता कि आप स्वार्थी या बेपरवाह हैं। अपनी बीस साल की उम्र के शुरुआती दिनों...
हद तय करना अपनी देखभाल करने का एक तरीका है। हद दूसरों की भी तय की जाती है और अपनी भी। अपनी परवाह करने का मतलब यह कतई नहीं होता कि आप स्वार्थी या बेपरवाह हैं।
अपनी बीस साल की उम्र के शुरुआती दिनों में मैं हजारों लोगों की सियासी रैली में माइक पर चिल्ला सकती थी, लेकिन बार में अजनबियों से पेय लेने से इनकार नहीं कर सकती थी। मैं उत्सुक दर्शकों के लिए संगीत पेश कर सकती थी, लेकिन दोस्तों की किसी बात से आहत होने पर उनसे इसके बारे में कुछ नहीं कह सकती थी। मैं कोई व्यवसाय शुरू कर सकती थी, वकालत कर सकती थी और फेसबुक पर बेहद निजी कविता साझा कर सकती थी, पर टकराव के पलों में अपने लिए नहीं बोल सकती थी। .
उस समय, मुझे इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि अपनी हदें तय करना और बोलना लाखों लोगों के लिए एक अहम मुद्दा था। मुझे यह समझ में नहीं आया था कि हदें तय करने में मेरी अक्षमता शायद मेरे बचपन की उपेक्षित भावनात्मक जरूरतों के इकट्ठा होने से उपजी थी। .
मुझे बस यह लगा कि मैं पर्याप्त प्रयास नहीं कर रही हूं। हदें तय करने में नाकाम रहने को लेकर मैंने अपना निर्मम मूल्यांकन किया। बीती बातों का विश्लेषण करते हुए डायरी के कई पन्ने रंग डाले। .
उन पर विचार करते हुए मैंने समझा कि मैं भ्रम में घिरी हुई थी। मैं उन लोगों जैसी थी जो उपचार के लिए आगे की ओर देखते हैं, आत्म-उन्नति का रास्ता बताने वाली किताबें पढ़ते हैं और शामें दोस्तों के साथ गप्पें करते हुए बिताते हैं। मैंने खुद को समझना पसंद किया। आप सोच सकते हैं कि तब, मैं लोगों को खुश रखने की अपनी आदत को समझने की अक्षमता से पूरी तरह झुलसी हुई थी। .
अधिकतर समय, मित्रों, परिवार, प्रेमियों, और सहकर्मियों को न कहने का विचार मेरे दिमाग में नहीं आया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि मैं कितनी असहज या असुरक्षित महसूस करती थी। मैंने आक्रामक व्यक्ति को खुश किया और बाद में खुद पीड़ित और नाराज महसूस किया।.
मेरे विचार से, जो चीज मैं अब जानती हूं वह मुझे तब भी मालूम था। अपनी हद तय करना आसान नहीं है। यह किसी के परिवार, समाज, मान्यताओं और सबसे अहम बात कि खुद के साथ खुद के संबंध से जुड़ा जटिल मसला है। हद तय करना, आत्म-प्रकाश और परिश्रमपूर्ण अभ्यास की व्यापक यात्रा का निर्णायक कदम है। अगर इस बात को मैं सालों पहले समझ लेती, तो मैं खुद को आश्वस्त कर पाती कि मैं कमजोर और मूढ़ नहीं हूं और मैं अपना सबसे सर्वोत्तम कर रही हूं। .
हम खुद को सुरक्षित रखने के लिए सीमाएं तय करते हैं। अपनी जरूरतों, इच्छाओं, मूल्यों और नजरिये की गहरी समझ विकसित करना हमें अपनी पहचान का बोध कराता है। यह पहचान सच बोलने की हमारी प्रतिबद्धता से हमें विचलित नहीं होने देता। जब मुझे यह नहीं पता होगा कि मैं कौन हूं या मैं क्या चाहती हूं, तब दूसरों के लिए मुझे परिभाषित करना आसान हो जाएगा। तब दूसरों का इंतजार करना पड़ेगा कि वे मेरे लिए बोलें। मुझे अपनी कीमत पर दूसरों की जरूरतों को प्राथमिकता देनी होगी और अपने लिए दूसरों से समर्थन की अपेक्षा करनी होगी। ये स्थितियां काफी निराशाजनक हैं, जिनमें मैं अक्सर खुद को अपनी ही छाया की तरह महसूस करती थी। .
आखिरकार, सबसे पहले मैंने पहचान का बोध विकसित किया। जल्द ही मैंने समझने लगी कि अपने जीवन के मकसद के लिए मैं किसी और से उम्मीद नहीं कर सकती। चाहे वह अभिभावक हों, मित्र हों, सहकर्मी हों या प्रेमी हो। मैंने यह भी तय किया कि मेरे लिए सफलता के पैमाने बाहर से नहीं आएंगे।
अपनी बुनियादी जरूरतों को पहचानें
अपनी बुनियादी जरूरतों को पहचान कर आप वास्तव में यह जानेंगे कि आपको अपने लिए क्या करना है। इससे आप दूसरों पर निर्भर होने से मुक्त होंगे।
जीवन जितना लंबा सफर
अपनी सच्चाइयों को व्यवहार में उतारना एक दिन की बात नहीं है। यह जीवनभर चलने वाली यात्रा है, कारण समय के साथ आपकी सच्चाई का रूप भी बदल जाता है। यहां सच का मतलब रिश्तों, जरूरतों, पहचान आदि से है। इस यात्रा में आवेग चाहिए तो धैर्य भी। हां, इसमें अपने प्रति अपना प्यार और दूसरों का प्यार भी चाहिए।.
रिश्तों को लेकर स्पष्ट रहें
दबाव में किसी रिश्ते को स्वीकार करना आपके लिए बोझ बन जाता है। यह वास्तव में एक औपचारिकता का निर्वाह करने जैसा होता है, जो कभी आपको खुशी नहीं देगा। इसलिए यहां अपनी हदें तय करने का मसला महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर आप अपनी सीमाएं तय करते हैं तब आप अपने रिश्तों में ईमानदार रहते हैं। .
अपनी मूल पहचान को बाहर लाएं
समाज में व्यक्ति की एक पहचान उसके प्रति दूसरे लोगों के नजरिये से बनती है। जबकि उसकी असल पहचान वह होती है, जो वह खुद अपने बारे में महसूस करता है। बुनियादी जरूरतों को जानने के बाद ही आप अपनी असल पहचान कर सकते हैं। इसके लिए इन सवालों का जवाब दें।
नजरिया : आप अपने भविष्य में कैसा दिखना चाहते हैं?
पहचान : आप कौन हैं और क्या भूमिका निभाना चाहते हैं ?
मूल्य : कौन से नैतिक मूल्य आपसे ज्यादा मेल खाते हैं?
कौशल : आपके पास क्या योग्यताएं हैं?
इच्छा : आपकी क्या लालसाएं और इच्छाएं हैं?
हेली मैगी- लेखक व सर्टिफाइड कोच। जीवन को अधिकतम संभावनाओं, संपन्नता और सुदंरतापूर्वक जीने में यकीन रखती हैं।