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Hindi News लाइफस्टाइलInternational Mens Day 2019: खुद को स्ट्रांग दिखाने के चक्कर में डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं लड़के

International Mens Day 2019: खुद को स्ट्रांग दिखाने के चक्कर में डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं लड़के

International Mens Day 2019: एक आम जुमला है कि मर्द को दर्द नहीं होता। 1985 में अमिताभ बच्चन की फिल्म 'मर्द' से यह डायलॉग ज्यादा लोकप्रिय हुआ। समाज में पुरुषों की ऐसी छवि गढ़ी गई है कि मर्द...

International Mens Day 2019: खुद को स्ट्रांग दिखाने के चक्कर में डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं लड़के
हिन्दुस्तान ब्यूरो,नई दिल्लीTue, 19 Nov 2019 11:28 AM
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International Mens Day 2019: एक आम जुमला है कि मर्द को दर्द नहीं होता। 1985 में अमिताभ बच्चन की फिल्म 'मर्द' से यह डायलॉग ज्यादा लोकप्रिय हुआ। समाज में पुरुषों की ऐसी छवि गढ़ी गई है कि मर्द रोता नहीं, क्योंकि रोना तो लड़कियों का काम है। अपने आपको 'मर्द' साबित करने के चक्कर में पूरी दुनिया में पुरुष खुद को इस छवि से बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं और भयानक अवसाद के शिकार हैं। शारीरिक रूप से मजबूत दिखने के लिए स्टेरायड लेने की प्रवृत्ति भी युवा लड़कों में बढ़ी है। ऐसे पुरुषों को विश्व स्वास्थ्य संगठन की दो टूक सलाह है - रो लेंगे तो अच्छे से जी लेंगे।

देश में 26 फीसदी पुरुष खुदकुशी करते हैं, जबकि महिलाएं 16.4 प्रतिशत : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मानसिक स्वास्थ्य पर 2016 में रिपोर्ट जारी की। इसके हिसाब से भारत में हर दस हजार लोगों में से 25.8 प्रतिशत यानी 2580 पुरुष आत्महत्या करते हैं। इनका आयुवर्ग 15 से 29 साल है। प्रति 10 हजार में महिलाओं के खुदकुशी करने का प्रतिशत 16.4 है। इस रिपोर्ट में भारत को ऐसे देशों की श्रेणी में 22वां स्थान दिया गया है, जहां पुरुष अन्य के मुकाबले ज्यादा आत्महत्या करते हैं।  
दुनिया में भी जान देने वालों में पुरुष अधिक : विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार, हर 40 सेकंड में एक आत्महत्या होती है। पूरी दुनिया में हर साल 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं, जिसमें पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है।

भावनाएं जाहिर नहीं करने से कई तरह के मर्ज : भावनाएं साझा न करने के कारण पुरुषों में मानसिक अवसाद, सीजोफ्रेनिया, डिमेंशिया, अति सक्रियता जैसी बीमारियां हो जाती हैं। नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ ह्युमन बिहेवियर एंड एप्लाइड साइंसेज (इहबास) ने अध्ययन में पाया कि सीजोफ्रेनिया के 25 प्रतिशत मरीजों के खुदखुशी कर लेने का खतरा होता है।

क्या कहता है अध्ययन  
एक अध्ययन में माना गया है कि दुनियाभर का पितृसत्तात्मक समाज लड़कों या पुरुषों को ‘मजबूत’ बनाने के लिए अनुकूलित करता है। बचपन से ही लड़कों को बताया जाता है कि उन्हें लड़कियों की तरह रोना नहीं है, उन्हें अपने संघर्ष और दुख जाहिर नहीं करने हैं। जेंडर अध्ययन कहता है कि महिला और पुरुष को खास तरीके में ढालने की सामाजिक संरचना के कारण ही पुरुष आज मानसिक अवसाद में हैं।

महिलाएं 64 तो पुरुष मात्र 17 बार रोये
हॉलैंड के टिलबर्ग विश्वविद्यालय ने 37 देशों के पांच हजार लोगों के भावनात्मक रवैये पर अध्ययन किया। पाया गया कि सालभर में महिला 30 से 64 बार रोईं, जबकि पुरुषों के रोने के अवसर 6 से 17 ही थे। साथ ही पुरुषों के रोने की अवधि और आंसुओं की मात्रा भी महिलाओं से कम थी। शोध में निष्कर्ष निकला कि पुरुषों के रोने की आदत देशों के सामाजिक-आर्थिक पालन पोषण के तरीकों पर निर्भर थीं। यह भी पाया गया कि अमीर देशों में पुरुष खुलकर रोते हैं।

बेरोजगारी बढ़ने पर ज्यादा खुदकुशी : ब्रिटेन में पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर काम कर रही संस्था सीएएलएम का कहना है कि पुरुषों में बेरोजगारी बढ़ने पर आत्महत्या दर बढ़ती है। इस संस्था ने 2015 में किए अध्ययन में पाया कि हर एक प्रतिशत बेरोजगारी दर बढ़ने पर आत्महत्या करने की दर में 0.79% वृद्धि होती है।  अमेरिकी जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ कहता है कि खुदकुशी के लिए पुरुष बंदूक और फांसी जैसे तरीके अपनाते हैं, जबकि महिलाएं जहर खाने, नस काटने या नदी में डूबने जैसे तरीके अपनाती हैं।  

भारत, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने विशेष कदम उठाए 
1. भारत में 2017 में पहला कानून बना : मानसिक अवसाद की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए 2017 में भारत सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य कानून लागू किया। अभी इस ओर और अधिक जागरूकता लाए जाने की जरूरत है।
2. ऑस्ट्रेलिया में विशेष सहायता केंद्र : यहां हर दस हजार पुरुषों में 12.6 प्रतिशत पुरुष आत्महत्या कर रहे थे। इसके समाधान के लिए यहां आर यू ओके प्रोग्राम चलाया गया। इसके लिए अवसाद ग्रस्त पुरुषों की काउंसलिंग के लिए 24 घंटे चलने वाले क्राइसिस सेंटर खुले।
3. ब्रिटेन ने आत्महत्या रोधी मंत्रालय खोला : 2018 में ब्रिटेन ने आत्महत्या के मामलों की गंभीरता को देखते हुए देश में आत्महत्या रोधी मंत्री नियुक्त किया।
अभिभावक ध्यान दें  
- अपने बेटे से यह न कहें कि लड़के लड़कियों की तरह रोते नहीं
- किशोर होते बेटों के शारीरिक बदलावों पर खुलकर बात करें
- किशोर बेटों की गुस्सैल होती प्रवृत्ति को नजरअंदाज नहीं करें
- घर के काम में हाथ बंटाने को कहें ताकि बाहरी दुनिया में ऐसे काम करने में नहीं हिचकें
- महिलाएं यह न सोचें कि पति की जिम्मेदारी सिर्फ उनके दुख को सुनना है
- अगर घर का पुरुष सदस्य समस्या साझा न करे तो मनोवैज्ञानिक से सलाह दिलाएं।

मर्दाना छवि के लिए स्टेरायड न लें युवा : सलमान खान
अपने गठीले शरीर के लिए प्रसिद्ध अभिनेता सलमान खान ने कहा है कि युवा मर्दाना छवि बनाने के लिए कोई जल्दीबाजी वाला कदम न उठाएं। युवा स्टेरायड से दूर रहें, क्योंकि यह जानलेवा है।

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