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विदेशी होरियारों की देसी होली

इठलाते फागुन के दौरान जब बरसाने में लाठियां चिटकनी शुरू हो जाएं और नंदगांव के कन्हैया राधिकाओं से खुशी-खुशी पिटकर आने लगें, तो समझ लो हवाओं में मौज घुलने का वक्त आ गया है। राजनीति के मौसम में देश...

विदेशी होरियारों की देसी होली
स्वाति शर्माTue, 19 Mar 2019 01:47 AM
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इठलाते फागुन के दौरान जब बरसाने में लाठियां चिटकनी शुरू हो जाएं और नंदगांव के कन्हैया राधिकाओं से खुशी-खुशी पिटकर आने लगें, तो समझ लो हवाओं में मौज घुलने का वक्त आ गया है। राजनीति के मौसम में देश कैसे भी रंग में रंगे, लेकिन चैत्र की परेवा से सिर से पांव तक सतरंगी बना देती है। ये रंग विदेशियों को भी खूब लुभाते हैं। कुछ इस अनोखे पर्व को अपने ही देश में वहां रह रहे भारतीयों संग मना लेते हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी होते हैं, जो इसके रंग में रंगने की चाहत में भारत तक खिंचे चले आते हैं। मन में जोश और उमंग तो भरपूर होता है, लेकिन तैयारी कुछ अधूरी रह जाती है, क्योंकि विदेशी सलीकों से इतर देसी होली उनकी कल्पना से परे ही होती है। इसका अहसास हर किसी को अलग-अलग अंदाज में हुआ। अपने इन्हीं खट्टे -मीठे अनुभवों और अहसास को कुछ विदेशी सैलानियों ने ब्लॉग के जरिए लोगों से साझा किया।

होली की भोर, रंगों ने तोड़ी थी नींद
परदेस के किसी अंजान शहर में जाने पर उस जगह और माहौल को समझने के लिए किसी को भी थोड़ा वक्त लगेगा। लेकिन ये वक्त लंदन की लूसी प्लमर को पुष्कर पहुंचने पर नहीं मिल पाया था। साल था 2016 और दिन था होली का। बस स्टैंड पर यात्रियों को उतारने के लिए रुकी ही थी। रातभर के सफर की थकान और नींद ने आंखों का साथ अभी नहीं छोड़ा था। उसे दूर करती आंखें मलती लूसी ने बस से नीचे कदम रखा और इससे पहले कि वो कुछ देख-समझ पातीं, उनके चेहरे पर कुछ आ गिरा, जो आंखों और मुंह में चला गया। वो खुद को संभालतीं और इसे साफ करतीं, इससे पहले ही ढोल की तेज आवाज उनके कानों में गूंजने लगी। किसी ने आवाज लगाई - ‘हैप्पी होली’... और मामला साफ हो गया। अब लूसी को इस जोरदार स्वागत का कारण समझ आ चुका था। पहले तो कुछ वक्त तक वह असहज बनी रहीं, लेकिन कुछ लोगों के दोस्ताना और सभ्य व्यवहार से उनमें सहजता आई और वो भी रंग गईं होली के रंग में।

कान्हा की नगरी में देखी होली की धूम
पंजाब में घूमने के दौरान यूएस के डेव होली मनाने की बेहतरीन जगह तलाश रहे थे। उनके दोस्त बेक्का और जूलियन, जिन्हें भारत के बारे में उनसे ज्यादा जानकारी थी, ने उन्हें मथुरा चलने की सलाह दी। असल होली को जीने के लिए 12 घंटे का सफर तय कर वो यहां तक आ तो गए, लेकिन पहले से कोई तैयारी नहीं होने के कारण उन्हें ठहरने की समस्या हुई। मथुरा की सड़कों पर घूमते-घूमते उन्हें रंगी हुई भीड़ ने खुद-ब-खुद अपनी टोली में शामिल कर लिया। रंगों की बौछार, नाच-गाने और खास मेहमानवाजी के बीच उन्होंने एक सेलेब्रिटी जैसा महसूस किया। साथ ही एक राष्ट्रीय समाचार चैनल ने भी उन्हें अपनी कवरेज का हिस्सा बना लिया।

न बोलना मना है
लूसी ने बताया कि वो रंग खेलने के लिए तैयार नहीं थीं, अचानक कुछ बच्चों की टोली उन पर रंग फेंकने दौड़ी। बचने के लिए उन्हें भी भागना पड़ा। बच्चों ने इसे खेल ही समझा और उनकी न को अनसुना करते हुए उन्हें अच्छी तरह से रंग दिया। न्यू इंग्लैंड निवासी हेदर मार्टिन ने अपना अनुभव साझा किया कि होली में न कहने को होलियारे एक चुनौती के तौर पर लेते हैं और मनमाने तरीके से रंगने लगते हैं। अपने होटल की छत से ये नजारे देखने के बाद हेदर ने होलियारों के बीच न जाने और होटल के दूसरे सैलानियों के साथ ही होली खेलने का फैसला किया। लॉरा ग्रायर अपने ब्लॉग में लिखती हैं,‘बिना आकलनों में उलझे होली मनाओ, भीड़ का हिस्सा हो जाओ।’

रंग छुड़ाना बच्चों का खेल नहीं
रंग उतारने में क्या हाल होता है, यह बात भारतीय तो भली-भांति जानते हैं और इसकी तैयारी के साथ ही होली के मैदान में उतरते हैं। लेकिन फिरंगियों को इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं होता। होली की मौज में झूमने के बाद जब रंग छुड़ाने की बारी आती है, तो उन्हें नानी याद आ जाती है। यूके की मारिलिन वार्ड बीते चार सालों से होली मनाने भारत आती हैं। पहले साल उन्हें होली के रंग को साफ करने में एक हफ्ते की कड़ी मेहनत लगी थी। हालांकि अब वह हर बार रंग खेलने से पहले तेल लगाने का नुस्खा अपनाती हैं। वहीं यूएस के डेव और उनकी टोली होली खेलने के बाद कई घंटों तक बाथरूम में मशक्कत करते रहे। चेहरा तो साफ हो गया था, लेकिन होली की याद के तौर पर वो रंगी एड़ियां और बाल लेकर लौटे थे।

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