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हिमालयन वियाग्रा कीड़ा जड़ी हुई 'रेड लिस्ट' में शामिल, कैंसर समेत कई गंभीर रोगों में है कारगर

उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली हिमालयन वियाग्रा कीड़ाजड़ी या यारशागुंबा अब खतरे में हैं। बीते 15 साल के अंदर इसकी उपलब्धता वाले क्षेत्रों में 30 फीसदी तक कमी आने के बाद अंतरराष्ट्रीय प्रकृति...

हिमालयन वियाग्रा कीड़ा जड़ी हुई 'रेड लिस्ट' में शामिल, कैंसर समेत कई गंभीर रोगों में है कारगर
कार्यालय संवाददाता, हल्द्वानीTue, 14 Jul 2020 09:29 AM
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उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली हिमालयन वियाग्रा कीड़ाजड़ी या यारशागुंबा अब खतरे में हैं। बीते 15 साल के अंदर इसकी उपलब्धता वाले क्षेत्रों में 30 फीसदी तक कमी आने के बाद अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने इसे ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया है। जानकार इसके पीछे इन क्षेत्रों में तेजी से बढ़े मानवीय दखल से लगातार दोहन को मान रहे हैं। ऐसे में अब इसके संरक्षण-संर्वधन के लिए राज्य सरकार की मदद से कार्ययोजना पर विचार चल रहा है।

कैंसर समेत कई गंभीर रोगों में कारगर कीड़ाजड़ी 3500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में मिलती है। यह भारत के अलावा नेपाल, चीन और भूटान में हिमालय और तिब्बत के पठारी इलाकों में मिलती है। उत्तराखंड में यह पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मिलती है। मई से जुलाई के बीच जब पहाड़ों पर बर्फ पिघलती है तो सरकार की ओर से अधिकृत 10-12 हजार स्थानीय ग्रामीण इसे निकालने वहां जाते हैं। 

करीब दो माह रुककर इसे इकट्ठा किया जाता है। वन अनुसंधान केंद्र ने जोशीमठ क्षेत्र में अपने हालिया शोध में पाया है कि कीड़ाजड़ी की उपलब्धता तेजी से घट रही है। बीते 15 वर्षों में इसकी उपलब्धता में 30 फीसदी तक गिरावट आ चुकी है। विशेषज्ञ उपलब्धता में गिरावट की वजह लगातार दोहन, जलवायु परिवर्तन को मान रहे हैं। इसके बाद आईयूसीएन ने खतरा जताते हुए इसे संकट ग्रस्त प्रजातियों में शामिल कर ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया है।

क्या है कीड़ाजड़ी
यह एक तरह का जंगली मशरूम है, जो एक खास कीड़े की इल्लियों यानी कैटरपिलर्स को मारकर उसके ऊपर पनपता है। इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस है। जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर यह उगता है, उसे हैपिलस फैब्रिकस कहते हैं। स्थानीय लोग इसे कीड़ाजड़ी कहते हैं, क्योंकि यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी है। चीन और तिब्बत में इसे यारशागुंबा भी कहा जाता है।

सिर्फ स्थानीय लोगों को निकालने का अधिकार
कीड़ाजड़ी निकालने का अधिकार संबंधित पर्वतीय इलाके के वन पंचायत क्षेत्र से जुड़े लोगों को होता है। भेषज संघ पिथौरागढ़ के अध्यक्ष पीतांबर पंत ने बताया कि पटवारी और फारेस्ट गार्ड की रिपोर्ट के आधार पर डीएफओ इसके लिए अनुमति जारी करते हैं। कीड़ाजड़ी निकालने के बाद लोग उसे भेषज संघ या वन विभाग में पंजीकृत ठेकेदारों को बेचते हैं। उत्तराखंड के तीन जिलों में इसके जरिए करीब सात-आठ हजार लोगों की आजीविका चलती है।

एशिया में 150 करोड़ का कारोबार
कीड़ाजड़ी की मांग भारत के साथ चीन, सिंगापुर और हांगकांग में खूब है। वहां से व्यापारी कीड़ाजड़ी लेने काठमांडू और कभी-कभी धारचूला तक आ पहुंचते हैं। एजेंट के माध्यम से विदेशी व्यापारियों को यह करीब 20 लाख रुपये प्रति किलो की दर से बिकती है। जानकारों के मुताबिक एशिया में हर साल कीड़ाजड़ी का करीब 150 करोड़ का कारोबार होता है।

कोरोना के कहर से ठंडा रहा कारोबार
कीड़ाजड़ी का सबसे बड़ा बाजार चीन है। कारोबार से जुड़े लोग बताते हैं कि पिथौरागढ़ से काठमांडू के रास्ते कीड़ाजड़ी बड़ी मात्रा में चीन भेजी जाती थी। वहां इसकी कीमत 20 लाख रुपये प्रति किलो तक है। मगर इस बार पहले कोरोना के चलते लॉकडाउन, फिर चीन के साथ तनातनी ने कीड़ाजड़ी का धंधा ठंडा कर दिया।

एक लाख में भी खरीदार नहीं 
पिथौरागढ़ जिले में वन विभाग में पंजीकृत ठेकेदार अब तक कीड़ाजड़ी 6-8 लाख रुपये प्रति किलो तक खरीद लेते थे। भेषज संघ अध्यक्ष पीतांबर पंत के मुताबिक इस बार इसे एक लाख रुपये में भी खरीदार नहीं मिल रहा है।

वन अनुसंधान केंद्र ने जोशीमठ क्षेत्र में इस संबंध शोध किया तो इसकी उपलब्धता बेहद कम पाई गई है। आईयूसीएन ने भी इसकी घटती उपलब्धता के आधार पर खतरे की चेतावनी जारी की है।
- संजीव चतुर्वेदी, मुख्य वन संरक्षक, वन अनुसंधान केन्द्र हल्द्वानी

आईयूसीएन के कीड़ाजड़ी को ‘रेड लिस्ट’ में डालने के सभी कारणों का अध्ययन किया जाएगा। इसके बाद सरकार के सामने इसे रखेंगे, जिससे इसके संरक्षण और संर्वधन को लेकर नीतिगत निर्णय हो सके।
- डॉ. पराग मुधकर धकाते, मुख्य वन संरक्षक, विशेष सचिव, मुख्यमंत्री

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