जिंदगी खूबसूरत बनाने के लिए खो जाएं विचारों के खुले आसमान में
पहाड़ की तरह शरीर, वायु की तरह सांस, आकाश की तरह दिमाग- यह पंक्ति तिब्बतियों की ध्यान-साधना में कही जाती है। इसका अर्थ है कि शरीर पहाड़ की तरह स्थिर रहे, सांस वायु के समान ऊपर-नीचे तरंगित होती रहे और...
पहाड़ की तरह शरीर, वायु की तरह सांस, आकाश की तरह दिमाग- यह पंक्ति तिब्बतियों की ध्यान-साधना में कही जाती है। इसका अर्थ है कि शरीर पहाड़ की तरह स्थिर रहे, सांस वायु के समान ऊपर-नीचे तरंगित होती रहे और मन आसमान की तरह तमाम विचारों के लिए खुला हो। लिओ बबॉटा जेन हैबिट्स के संस्थापक हैं, जो कि कैलिफोर्निया में रहते हैं। जेन हैबिट्स पर कई किताबें आ चुकी हैं। आइए जानते हैं कि वो क्या कहते हैं...
ध्यान की ऐसी तमाम परंपराएं हमारे आसपास मौजूद हैं, जो हमारे अहं को बाहर निकालती हैं और हमें जागरूक बनाती हैं। मैं इसी तरह की एक साधना आज आपके साथ साझा करना चाहता हूं, क्योंकि यह आपके लिए एक ऐसा अनुभव हो सकता है, जो आपने अब तक हासिल नहीं किया होगा। क्या होता है, जब आप अपनी चेतना को इसलिए विस्तार देते हैं, ताकि इसकी व्यापक प्रकृति को देख सकें? ऐसी सूरत में आप खुद में बदलाव महसूस करते हैं। इस आत्मकेंद्रित दुनिया में आप ज्यादा देर तक उलझे नहीं रहते, और आजाद हो जाते हैं।
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दूसरों के व्यवहार का विश्लेषण करने पर आप भी उस निराशाजनक कहानी का हिस्सा बन जाते हैं। तो, आपको इस दुनिया की छोटी सोच से मुक्त हो जाना चाहिए, अहंकार छोड़ देना चाहिए और खुले आसमान की विशालता में अपना मन- मस्तिष्क खोल देना चाहिए। ऐसा करने पर अचानक ही आपको महसूस होगा कि आप कहीं अधिक खुल गए हैं, संकीर्णता खत्म हो गई है और कहीं अधिक सुकून आपको मिल रहा है। एक बात और। इस ध्यान में वक्त को ठीक उसी तरह महसूस कर सकते हैं, जिस तरह का वह होता है। आप किसी दूसरे इंसान के प्रति आलोचनात्मक नहीं होते। यह एक विशुद्ध अनुभव है, जो वाकई में बहुत खूबसूरत है।
अंतहीन क्षितिज की उड़ान
इस ध्यान साधना की शुरुआत आरामदायक, लेकिन बिल्कुल सीधा बैठकर करें। अपनी आंखें खुली रखें। अपने शरीर और सांस को जागृत अवस्था में रखें। बस यह सोचें कि उन्हें जगाना है। इसके एक मिनट के बाद अपने आस-पास की तमाम आवाजों को सुनने की कोशिश करें। उसके गुण-दोष को परखे बिना उसे सुनें। यह मत सोचें कि क्या या किसके लिए कहा जा रहा है? बस इस पर ध्यान दें कि किस तरह तमाम स्वरों की व्यापकता आप महसूस कर सकते हैं। आपको उनके बारे में कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। बस आप उन स्वरों का अनुभव करें। उनके उभरने और फिर धीरे-धीरे खत्म हो जाने को पढ़ने की कोशिश करें। इसके बाद, अपने आस-पास की सभी दृष्टि संवेदनाओं के प्रति भी बिना किसी पूर्वाग्रह के खुद को जागरूक करें।
अपने आसपास की तमाम रोशनियों पर ध्यान लगाएं। आकार, रंग और बनावट को देखें। तमाम दृष्टि संवेदनाओं में खुद को डुबो दें। इस खुलेपन में अपनी जागृत ग्रंथि को शामिल करें, जो आस-पास की तमाम संवेदनाओं को खुद में समेटे है। अपने शरीर की संवेदनाओं का बंधन तोड़ दें; शरीर के बाहर की संवेदनाओं का भी। और फिर उन सबको समेटने की कोशिश करें। अपने भीतर और बाहर की संवेदनाओं में फर्क न करें। संवेदनाओं का एक विशाल सागर बन जाने दें। जब आप जागृत अवस्था के इस विशाल खुले आकाश में भ्रमण करते हैं, तो आपके सामने विचारों के बादल उभर सकते हैं। इनमें उलझने की बजाय, मन-मस्तिष्क को आस-पास विचर रहे विचारों के तमाम बादलों को गौर से देखने-समझने के लिए प्रेरित करें। आकाश की तरह किसी एक में शामिल हुए बिना सब पर ध्यान टिकाएं। अपने मस्तिष्क की विशाल प्रकृति पर ध्यान दें। यह आपके दिमाग की प्राथमिक अवस्था होती है। बौद्ध इसे ही आपकी ‘बुद्ध प्रकृति' या नैसर्गिक अच्छाई कहते हैं। यह प्रकृति उन्मुक्त होती है। इस पर किसी का बंधन नहीं होता, अभिमान नहीं होता। यह संकीर्ण भी नहीं होती। यह विशुद्ध जागृत अवस्था होती है।
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रोजमर्रा के जीवन में इसे उतारें
अगर इससे आपको मनमाफिक ध्यान की प्राप्ति नहीं होती, तो चिंता न करें। इसे पाने के लिए थोड़े अभ्यास की जरूरत है। मगर हां, जरूरी यह है कि आप इसमें खो जाएं। खुद पर तनाव न हावी होने दें। इसे जबर्दस्ती पाने का प्रयास न करें। बस अपने मन-मस्तिष्क को स्थिर करने की कोशिश करें। हर दिन सुबह इसका अभ्यास करें।
इसे आप तब भी आजमा सकते हैं, जब आप टहल रहे हों। टहलने के समय अपने मस्तिष्क को एक विशाल खुले आकाश की तरह खोल दें। इसका अभ्यास शुरू करते ही आप अपना अहंकार छोड़ देते हैं और वर्तमान पल को महसूस करने लगते हैं। बर्तन धोते समय, नहाते वक्त या चाय पीते समय भी इसे किया जा सकता है। इस विशाल खुले मन-मस्तिष्क को तब भी बरकरार रखा जा सकता है, जब आप किसी से बातचीत कर रहे हों या कोई अन्य काम कर रहे हों या फिर दुनिया की उलझनों में डूबे हों। हां, इसके लिए अभ्यास की जरूरत होती है।
जब आप इस ध्यान-साधना को साध लेते हैं या इस पर पूरा नियंत्रण हासिल कर लेते हैं, तो यह आपको इतना सक्षम बना देती है कि आप किसी भी पल तमाम जंजाल से मुक्त हो सकते हैं। हो सकता है कि कभी किसी वक्त कोई विचार आप पर हावी हो जाए या कोई स्थिति आप पर भारी पड़ जाए, पर वह विचार या स्थिति उतनी बोझिल नहीं होती। आपको अचानक ही उन विचारों पर नए नजरिए से चिंतन का मौका मिल जाता है। वे आपसे दूर हटने लगते हैं और आप उस स्थिति में उचित प्रतिक्रिया दे पाते हैं। उस वक्त आप किसी के साथ भी रह सकते हैं और किसी से गहरे जुड़ सकते हैं। आपको महसूस होता है कि सामने वाला भी खुली प्रकृति का है। सच कहूं, तो आप दोनों तब समान रूप से असीमित नीले आसमान का हिस्सा बन जाते हैं।