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Covid-19:कोरोना वैक्सीन के लिए मार दी जाएंगी पांच लाख शार्क

वन्य जीव विशेषज्ञों ने कोरोना वैक्सीन को लेकर चौंकाने वाला दावा करते हुए चिंता जाहिर की है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए पांच लाख शार्क मार दी जाएंगी। विशेषज्ञों के अनुसार,...

Covid-19:कोरोना वैक्सीन के लिए मार दी जाएंगी पांच लाख शार्क
एजेंसी,बर्कलेTue, 29 Sep 2020 09:07 PM
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वन्य जीव विशेषज्ञों ने कोरोना वैक्सीन को लेकर चौंकाने वाला दावा करते हुए चिंता जाहिर की है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए पांच लाख शार्क मार दी जाएंगी। विशेषज्ञों के अनुसार, कोरोना वैक्सीन मानव जाति के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन इससे शार्क मछली के जीवन पर खतरा मंडराता दिख रहा है। इनका प्रजनन पहले ही कम होता है। 

शार्क मछलियों के संरक्षण के लिए काम कर रही अमेरिका के कैलिफोर्निया की शार्क अलाइज संस्था का कहना है कि कोविड-19 की वैक्सीन निर्माण में एक पदार्थ स्क्वालीन का इस्तेमाल किया जाता है। स्क्वालीन प्राकृतिक तौर पर शार्क के लीवर में तेल की तरह बनता है। इस प्राकृतिक तेल का इस्तेमाल दवा में सहायक के तौर पर होता है। ये मजबूत इम्यूनिटी पैदाकर वैक्सीन के प्रभाव का बढ़ा देता है। 

एक खुराक के लिए ढाई लाख शार्क मारी जाएंगी-
शार्क अलाइज का कहना है कि अगर दुनियाभर के लोगों को कोरोना वैक्सीन की एक खुराक की जरूरत पड़ती है तो ढाई लाख शार्क को मारना पड़ सकता है, लेकिन अगर दो खुराक की जरूरत पड़ी तो पांच लाख शार्क को मारना होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि स्क्वालीन के लिए हम इतनी शार्क को नहीं मार सकते। हमें नहीं पता कि महामारी कितने समय तक है और कितनी बड़ी होगी।    

तीन हजार शार्क से मिलता है एक टन स्क्वालीन-
ब्रिटिश फार्मा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन अभी फ्लू की वैक्सीन बनाने में शार्क के स्क्वालीन का इस्तेमाल कर रही है। कंपनी को एक टन स्क्वालीन निकालने के लिए करीब तीन हजार शार्क की जरूरत होती है। कंपनी अगले साल मई में कोरोना वैक्सीन में संभावित इस्तेमाल के लिए स्क्वालीन का एक अरब डोज बनाने की तैयारी में है। 

हर साल 30 लाख शार्क मारी जाती हैं-
एक आकलन के अनुसार, स्क्वालीन के लिए प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख शार्क को मार दिया जाता है। उनके तेल का इस्तेमाल कॉस्मेटिक उत्पादों और मशीनों के तेल में भी किया जाता है। 

चिंता : शार्क की आबादी में भारी कमी आएगी- 
वन्य जीव विशेषज्ञों की चिंता है कि अचानक से स्क्वालीन की मांग बढ़ने का असर शार्क की आबादी पर पड़ेगा। इससे शार्क की संख्या में भारी कमी आ सकती है। शार्क अलाइज की संस्थापक स्टेफनी ब्रेंडिल का कहना है कि किसी चीज के लिए जंगली जीव को मारना टिकाऊ उपाय नहीं होगा, खासकर तब जब इसका प्रजनन बड़े पैमाने पर नहीं होता हो। हम हर साल ज्यादा से ज्यादा शार्क को मारते रहे तो इनके अस्तित्व पर संकट आ जाएगा। 

सुझाव : वैकल्पिक उपाय पर समानांतर काम हो- 
शार्क की आबादी पर मंडराते खतरे से बचने के लिए वैज्ञानिक स्क्वालीन का वैकल्पिक परीक्षण कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने खमीर,  गन्ने से सिंथेटिक वर्जन तैयार किया है। ब्रेंडिल का कहना है कि वह वैक्सीन की प्रक्रिया को धीमा नहीं करना चाहतीं बल्कि चाहती हैं कि समानांतर सिंथेटिक स्क्वालीन के साथ वैक्सीन का परीक्षण किया जाए। 
   
पौधों में भी होता है स्क्वालीन-
विशेषज्ञों के अनुसार, स्क्वालीन यौगिक की रासायनिक संरचना शार्क और गैर-पशु विकल्पों में समान है, जिसका अर्थ है कि टीके में इसकी प्रभावशीलता इसके स्रोत की परवाह किए बिना समान होनी चाहिए। सभी पौधों में जैव रासायनिक मध्यवर्ती के रूप में स्क्वालीन का उत्पादन होता है, और इसे खमीर, गन्ना और जैतून के तेल सहित गैर-पशु आधारित स्रोतों से उत्पादित किया जा सकता है।
    
142 टीकों पर परीक्षण जारी-:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार नैदानिक ​​मूल्यांकन में कोविड-19 के लिए 40 वैक्सीन दावेदार और प्री-क्लीनिकल मूल्यांकन में 142 टीके हैं। शार्क अलाइज का कहना है कि इन टीकों में से 17 में स्क्वालीन आधारित हैं और इनमें से पांच टीके पूरी तरह शार्क-स्क्वालीन पर आधारित हैं। 

इनमें भी काम आता है शार्क का तेल- 
शार्क के तेल का प्रयोग कई बीमारियों, स्थितियों और लक्षणों के उपचार, नियंत्रण, रोकथाम और सुधार के लिए किया जाता है। दावे के अनुसार, कैंसर, रक्त कैंसर, फ्लू, सामान्य जुखाम, अधिश्वेत रक्तता, एक्स-रे विकिरण बीमारी, स्वाइन फ्लू, सफेद कोशिका की कम संख्या आदि की दवाओं और उपचार में इसका इस्तेमाल होता है।

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