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कोरोना के कारण फीका पड़ा बकरीद का रंग, छलका बकरा विक्रेताओं का दर्द

उत्तर प्रदेश के बरेली से दो हफ्ते पहले दिल्ली के जामा मस्जिद के करीब स्थित प्रसिद्ध बकरा मंडी में बकरे बेचने आए शकील खान को बकरीद से एक हफ्ते पहले भी कोई खरीदार नहीं मिला है। खान अपने मालिक के बकरे...

कोरोना के कारण फीका पड़ा बकरीद का रंग, छलका बकरा विक्रेताओं का दर्द
एजेंसी ,नई दिल्ली Sat, 25 Jul 2020 01:17 PM
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उत्तर प्रदेश के बरेली से दो हफ्ते पहले दिल्ली के जामा मस्जिद के करीब स्थित प्रसिद्ध बकरा मंडी में बकरे बेचने आए शकील खान को बकरीद से एक हफ्ते पहले भी कोई खरीदार नहीं मिला है। खान अपने मालिक के बकरे बेचने आया है और खाने पीने के लिए मालिक से मिले पैसे भी खत्म होने वाले हैं। 22 साल का खान ऐतिहासिक जामा मस्जिद के पास उर्दू बाजार रोड पर बंद पड़ी दुकानों के बाहर अपनी रात गुजारता है।
उसने कहा, “अगर मेरे कुछ बकरे भी बिक जाते और कुछ कमाई हो जाती तो मुझे पास में कहीं बसेरा मिल जाता।” खान के पास पहुंचे एक खरीदार ने कहा कि कोरोना वायरस वैश्विक महामारी ने कारोबारों और लोगों पर इस कदर असर डाला है कि जो पिछले साल तक चार बकरे खरीदते थे, इस बार एक बकरा भी नहीं खरीद पा रहे हैं। बहरहाल, इस खरीदार की भी बात नहीं बनी और वह भी बकरा खरीदे बिना ही चला गया।
खान ने बताया कि उसके मालिक ने एक जोड़े बकरों के लिए 30,000 रुपये की कीमत तय की है। हर बकरे का वजन करीब 40 किलो है। उसने कहा कि यह दाम बिलकुल ठीक है।पिछले पांच सालों से लगातार बकरा बाजार आ रहे खान ने कहा, ''पिछले साल मैंने आठ बकरे 1.6 लाख रुपये में बेचे थे- हर बकरे की कीमत 20,000 रुपये थी। इस साल एक भी खरीदार ने अब तक 10,000 रुपये से ज्यादा की पेशकश नहीं की है।” सफीना (53) और उनकी बहु त्योहार के लिए पुरानी दिल्ली के फिल्मिस्तान इलाके से एक बकरा खरीदने आए थे। उन्होंने कहा, “हम हर साल एक बकरा खरीदते हैं। इस साल, हमारी दुकान लगभग पूरे समय बंद रही।”
सफीना ने कहा, “यह मुश्किल वक्त है। हमने त्योहार के लिए कुछ पैसे बचाए थे लेकिन हम दिखावा करने का जोखिम नहीं उठा सकते।”
बहु, फारिया ने कहा कि उन्होंने पिछले साल 15,000 रुपये में एक बकरा खरीदा था। उसने कहा, “इस साल, हमारे पास बस 10,000 रुपये हैं। इस कीमत में अच्छा बकरा मिलना बहुत मुश्किल है।” कपड़े की दुकान के मालिक, जैद मलिक ने कहा कि प्रशासन ने कोरोना वायरस के डर के चलते बकरों की बिक्री की इजाजत नहीं दी है। उन्होंने कहा, “पिछले सालों की तुलना में, इस बार बाजार में कुछ भी नहीं है। पहले ये खचाखच भरे रहते थे और आपको कहीं खाली जगह नहीं मिलती। लेकिन अब, आप अंगुलियों पर लोगों को गिन सकते हैं।”
आम वक्त में, मोहम्मद इजहार कुर्बानी के त्योहार के लिए करीब 15-20 बकरे बेचता था। इस साल, वह केवल एक जोड़ा बेच पाया, और वह भी नुकसान उठाकर। 
उसने कहा, “हमने कीमत घटा दी है। हमने 18,000 रुपये तय किए थे लेकिन हमें मिले 15,500 रुपये।” इजहार ने कहा कि कोरोना वायरस नहीं होता तो एक जोड़े के कम से कम 30 से 35 हजार रुपये मिलते। आजादपुर के रहने वाले इजहार ने कहा, “एक बकरे को तैयार करने में 18 माह का समय लगता है। उसकी देखरेख में बहुत खर्च होता है। हम उसके खाने पर 10,000 रुपये खर्च करते हैं जिसमें गेहूं, चना, मक्का और जौ आदि शामिल है।” विक्रेताओं का कहना है कि अगर वे इस साल इन बकरे-बकरियां नहीं बेच पाए तो उन्हें अगले साल के लिए रखेंगे।
-गौरव सैनी

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