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खेलकूद से बच्चे को ना करें दूर, स्टडी में सामने आए गजब के फायदे

माना जाता है कि खेलकूद से ज्यादा पढ़ाई बच्चों का भविष्य सुधारती है। लेकिन अध्ययन इससे उलट कहानी बताते हैं। बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास में खेलकूद की क्या होती है भूमिका, बता रही हैं स्वाति शर्मा

खेलकूद से बच्चे को ना करें दूर, स्टडी में सामने आए गजब के फायदे
Kajal Sharmaहिंदुस्तान,मुंबईTue, 21 Nov 2023 04:35 PM
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लो देखो, अब लूडो और सांप-सीढ़ी भी जनाब फोन पर ही खेलेंगे। अरे तुम क्या जानो गेंद तड़ी क्या होता है। विष अमृत, कबड्डी, खोखो कभी नाम भी सुने हैं इनके? लगातार कई घंटों से मोबाइल में आंखें गड़ाए बच्चे से मोबाइल छीनते हुए अभिभावक उसे अपने उम्र के खेलकूद वाले किस्से सुनाने लगते हैं। वे अकसर उस दौर को याद करने लगते हैं, जब छुट्टियों के दिन चिलचिलाती दुपहरी में चाचा घर से बाहर उन्हें ढूंढ़ने निकले थे और पार्क में चल रहे क्रिकेट मैच के बीच से ही कान पकड़कर घसीटते हुए घर ले आए थे। शाम होते ही आसमान पतंग से रंगीन हो जाता था और कई बार तो मम्मी खुद रस्सी कूदने बीच में कूद पड़ती थीं। संडे होता था पापा के साथ, जब अलमारी से निकलकर आता था लूडो और चेस, कैरम के तो कहने ही क्या! खेल कम, जंग का मैदान ज्यादा बन जाता था। ऐसा नहीं है कि तब जीवन में आगे बढ़ने की चिंता नहीं सताती थी, ऐसा भी नहीं है कि बढ़ती उम्र में दिल नहीं टूटता था। कंधे तब भी भारी बस्ते से दुखने लगते थे, क्लास में टीचर के आने से पहले उनका मोटा वाला डंडा दरवाजे से अंदर आता नजर आता था, रिपोर्ट कार्ड पिताजी के सामने लाते समय तब भी हाथ-पैर फूल जाते थे।

पता है, तब की सबसे अच्छी बात क्या थी? तब कम उम्र के बच्चों की आत्महत्या जैसी खबरें यूं नहीं सुनाई दिया करती थीं। तब डिप्रेशन नहीं, दिमाग खराब हुआ करता था। दोस्तों की लिस्ट इतनी लंबी थी कि मम्मी बर्थडे की पार्टी देने से मना कर देती थीं। तब हम खेल-कूद कर अपना समय नहीं बर्बाद कर रहे होते थे, बल्कि तब हम इसके जरिये अपने व्यक्तिव का भी निर्माण करते थे। आज के कुछ अध्ययन भी इस बात की पुष्टि करते हैं। अध्ययन बताते हैं कि खेलने-कूदने से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास बेहतर तरीके से होता है। खेलकूद अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों के व्यक्तिव को निखारते हैंऔर उन्हें जीवन के कठिन डगर पर मजबूती से आगे बढ़ने के लिए भी तैयार करते हैं। बढ़ती प्रतिस्पर्धा, मोबाइल गेम्स, सोशल मीडिया ने आज खेल के मैदान की रौनक कम कर दी है और इसके नतीजे हमें बच्चों की मानसिक और शारीरिक सेहत पर देखने को मिल रहे हैं।

खेल का यूं पड़ता है प्रभाव
खेलकूद को खेल में न लें और न ही अपने बच्चों को इनसे दूर करें। उनका स्क्रीन टाइम घटाकर उन्हें मैदान का रास्ता दिखाना बेहद जरूरी है। मनोचिकित्सक डॉ. स्मिता श्रीवास्तव कहती हैं कि खेलकूद से व्यक्ति की मानसिक सेहत दुरुस्त रहती है। इतना ही नहीं, एक व्यक्ति को समझने के लिए भी खेलकूद का सहारा लिया जा सकता है। खेल व्यक्ति के जीवन में एक थेरेपी की तरह होते हैं और जब बात बढ़ती उम्र की हो, तब ये और भी जरूरी बन जाते हैं क्योंकि तब ये शरीर में पोषक तत्व की तरह काम कर रहे होते हैं। खेल से बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ता है, उनमें स्वतंत्रता का भाव आता है, वे चुनौतियों का सामना करना सीखते हैं, लोगों से बात करने की हिचक खत्म होती है साथ ही हार के बाद खुद को समेटकर चुनौती का सामना करने का हुनर भी आ जाता है। फिटनेस कोच आशीष मिश्रा कहते हैं कि खेल से बच्चे सेहतमंद तो बनते ही हैं, साथ ही उनमें स्टेमिना भी बढ़ता है, वे ज्यादा मेहनत करना सीखते हैं और उन्हें जीवन में संतुलन बिठाना भी आता है। इतना ही नहीं, खेल के जरिये बच्चे अपने भाव प्रकट करना सीख जाते हैं, उनका भावनात्मक पक्ष मजबूत होता है और वे आत्मरक्षा के गुर भी सीखते हैं।

यूं लाएं मैदान तक
बच्चों को खेल में लगाने के लिए पहला कदम आपको ही उठाना होगा। इसके लिए जरूरी है, अनुशासन। स्मिता कहती हैं कि अकसर माता-पिता बच्चे के उद्दंड होने की शिकायत करते हैं। लोगों की बीच अकसर उन्हें शर्मिंदा भी होना पड़ जाता है। दरअसल हमारा खुद का तरीका ही गलत है। हम अपने बच्चे को खुद ही नहीं समझ पाते। जो बच्चा ज्यादा शरारत करता है, असल में उसमें ज्यादा ऊर्जा होती है और उसकी ऊर्जा जब सही जगह न लगाई जाए तो बच्चा दिशाहीन होने लगता है। वैसे तो बच्चों को उनके पसंद से खेल चुनने देना चाहिए, लेकिन अगर बच्चा घर में ज्यादा शैतानियां करता है, सामान तोड़ता है, मारता है तो ऐसे बच्चे को ऐसे खेल में डालने की जरूरत है, जिसमें ज्यादा ऊर्जा की खपत होती है। वहीं अगर बच्चा शांत और सरल है, तो उसे उसकी पसंद से खेलने दें। इंट्रोवर्ट बच्चे अकसर कलात्मक होते हैं। उनके हुनर को पहचानें और शारीरिक सेहत के लिए उन्हें कुछ देर घर से बाहर निकलकर खेलने के लिए प्रेरित करें।

लोगों को करें शामिल
बच्चों को सोशल मीडिया नहीं बल्कि उनके वास्तविक समाज से जोड़ने की कोशिश करें। इसके लिए आप उन्हें पड़ोस के बच्चों के साथ खेलने को कह सकती हैं। खुद समय निकालकर पड़ोसियों से मिलना-जुलना शुरू करें ताकि बच्चों में दोस्ती हो सके। अगर आप बच्चे को किसी खेल में दाखिला दिलवा रही हैं तो अपने क्षेत्र के और बच्चों को भी उसमें शामिल करने की कोशिश करें। इससे बच्चे को खेल जारी रखने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

स्क्रीन टाइम घटाएं
स्क्रीन से दूर करने पर ही बच्चे को आप मैदान की ओर भेज सकती हैं। डॉ. स्मिता कहती हैं कि बच्चे हमारी नकल करते हैं, इसलिए सबसे पहले हमें अपना स्क्रीन टाइम घटाकर उनके सामने खेलना शुरू करना होगा। आप स्क्रीन के लिए समय तय कर सकती हैं, साथ ही अपने गैजेट में इसकी र्सेंटग भी कर सकती हैं।

खुद भी खेलें
बच्चों को मैदान तक लाने के लिए खुद आपको भी मैदान पर उतरना होगा। ऐसा आप हर रविवार कर सकती हैं। अपने साथी और बच्चों के साथ पार्क या खेल के मैदान में जाकर बैर्डंमटन, फ्लाइंग डिस्क, रस्सी कूदना वगैरह खेलना शुरू करें। धीरे-धीरे बच्चों को इनमें शामिल करें। घर के भीतर आप बच्चों के साथ इंडोर खेल खेलकर समय बिता सकती हैं। हां, उन्हें फोन पर ऐसे खेल खेलने से रोकें।

उम्र के हिसाब से हों खेल
बच्चों की सीखने की शुरुआत उनके जन्म के शुरुआती महीनों से ही हो जाती है। इस समय का सही इस्तेमाल करें। छह महीने तक के बच्चे से आप बातें करके समय बिता सकती हैं। इस दौरान वह अपने आसपास के वातावरण को समझने की कोशिश करता है। उसके सामने उसकी नकल उतारें, उसके आगे चमकदार चीजें लेकर आएं या फिर उसे अलग- अलग जगह लिटाएं ताकि वह दुनिया देख सके।

7-12 माह
इतने छोटे बच्चे के साथ आप आईने से खेल सकती हैं ताकि वह अपने अलग-अलग भावों को देख सके। इसके अलावा लुका-छुपी भी एक अच्छा खेल है। साथ ही आप उसके किए काम पर प्रतिक्रिया देकर उसे समझाने वाले खेल खेल सकती हैं।

3 साल तक
एक से तीन साल तक के बच्चे के साथ आप डांसिंग, कूदना, एक पैर पर खड़ा होना जैसे खेल खेल सकती हैं ताकि वह अपने शरीर के मूवमेंट को समझ सके। आप उसे अधूरी कहानी सुनाकर उसे कहानी आगे बढ़ाने को कह सकती हैं। या फिर आप गाने को गुनगुनाकर उससे गाना पहचानने को कह सकती हैं।

6 साल तक
चार से छह साल तक के बच्चे को आप फ्री गेम के लिए प्रेरित कर सकती हैं ताकि वह अपनी पसंद को समझ सके। उसे दौड़ने भागने, कूदने जैसे खेलों के साथ घर के कामों में आपकी मदद के लिए भी कह सकती हैं। साथ ही उसे दोस्त बनाने और कुछ समय निकालकर दोस्तों से बात करने को भी बोल सकती हैं। 

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