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जन्मदिन पर विशेष: उन दिनों जब नरेंद्र मोदी साधक हुआ करते थे

नरेंद्र मोदी को मैंने पहली बार एक साधक के तौर पर तब देखा, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री भी नहीं बने थे। वे ऋषिकेश स्थित हमारे परमार्थ आश्रम आए और 10-12 दिन तक साधनारत रहे। नित्य प्रात:काल समय पर उठते...

जन्मदिन पर विशेष: उन दिनों जब नरेंद्र मोदी साधक हुआ करते थे
स्वामी चिदानंद, परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश के अध्यक्ष। संस्कृत और दर्शनशास्त्र के विद्वान।Mon, 17 Sep 2018 01:09 AM
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नरेंद्र मोदी को मैंने पहली बार एक साधक के तौर पर तब देखा, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री भी नहीं बने थे। वे ऋषिकेश स्थित हमारे परमार्थ आश्रम आए और 10-12 दिन तक साधनारत रहे। नित्य प्रात:काल समय पर उठते और पद यात्रा करने के बाद पूरे दिन साधना में लीन रहते। उन्होंने यहां प्राकृतिक चिकित्सा न केवल ली, बल्कि सीखी भी। बेहद सरल, अनुशासित और साधारण व्यक्ति की तरह आश्रम में रहे। हमने तब अध्यात्म में डूबे एक साधक को देखा था। उस साधक को जो न केवल संन्यासी बनना चाहता था, बल्कि उत्तराखंड के जंगलों में लंबे समय तक रहकर संन्यास की दीक्षा लेने रामकृष्ण आश्रम भी पहुंच गया। लेकिन मोदी के भाग्य में विधाता ने देश सेवा लिखी थी।

साधना की शक्ति ही मोदी को आत्मबल प्रदान करती है। देश ही नहीं विदेश में भी उन्हें स्थापित करती है। मुझे याद है, दोपहर का वक्त था। खचाखच भरे अमेरिका के मेडिसन स्क्वायर पर हर नजर को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंतजार था। सुहावने मौसम के बीच जमीन पर बिछे रेड कार्पेट पर तेजी से मंच की ओर बढ़ते मोदी के चेहरे पर गजब का आत्मविश्वास दिख रहा था। अमेरिकी राष्ट्रगान की परंपरा निभाई जाने के बाद प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा- मैं उस देश से आया हूं, जहां गंगा बहती है। उस महान लोकतांत्रिक देश से आया हूं, जहां मुझ जैसा साधारण व्यक्ति भी प्रधानमंत्री बन सकता है। आप सब अमेरिका में रहने वाले भारतीय अपने पुरखों के गांवों को विकास के लिए गोद लें। गंगा और गांव की बात वहां मौजूद भारतवंशियों के दिलों को जैसे गहराई तक छू गई हो। अंदर से लेकर बाहर दूर सड़क तक ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदेमातरम’ के साथ ही मोदी-मोदी के नारे लगने लगे। विदेश की धरती पर प्रधानमंत्री के लिए भारतवंशियों के साथ ही उस देश के नागरिकों का आकर्षण हमारे लिए दिलचस्प था, जिस देश ने कभी उन्हें वीजा देने से इनकार कर दिया था। आज बाजी पूरी तरह पलटी दिखरही थी।  मैं नरेंद्र मोदी का तीसरा रूप देख रहा था। 

मेडिसन स्क्वायर से बरसों पहले मोदी का दूसरा रूप तब देखने को मिला था, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे। वह 2 अक्तूबर का दिन था। पोरबंदर में हम नरेंद्र मोदी जी के साथ सुबह नाश्ता कर रहे थे, लेकिन उन्होंने यह कहकर नाश्ता लेने से मना कर दिया कि नवरात्र का उपवास है। किसी ने कहा, आप इसीलिए फिट रहते हैं? मोदी ने तुरंत जवाब दिया- यह उपवास मन, मस्तिष्क और आस्था के लिए है, फिट रहने के तो और भी तरीके हैं। मेरी नजर में अब भी उनके अंदर अध्यात्म का गहरा भाव और एक समर्पित साधक मौजूद है। अमेरिका दौरे में भी इत्तफाक से उनका उपवास था। व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति के साथ रात्रिभोज में बड़े-बड़े लोगों के बीच नींबू पानी पीकर उपवास पर कायम रहे। मुझे याद है त्रिनिदाद की यात्रा पर तमाम सुख सुविधाएं रहने के बावजूद सुबह-सुबह सबको खुद चाय बनाकर पिलाई।

प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी 26 अप्रैल 2013 को हरिद्वार आए। तब तक भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनाए जा चुके थे। गंगा तट पर साधु-संतों की सभा में उन्हें प्रधानमंत्री बनाने का उद्घोष कर दिया गया। तब से अब तक साढ़े पांच वर्षों में गंगा में बहुत पानी बह चुका है। प्रधानमंत्री को सत्ता में जाकर भी गंगा याद रहीं। उन्हें गंगा ने बुलाया भी। स्वच्छ भारत का नारा अब जनांदोलन बन चुका है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच पर योग दिवस की मान्यता के बाद विश्व के कोने-कोने में योग होने लगा है। एक दिन भारत के सॉफ्ट पॉवर का प्रभाव पूरे विश्व में देखने को मिलेगा।

वर्षों पहले ऋषिकेश आए साधक और प्रधानमंत्री पद पर आसीन व्यक्ति में तुलना करते हुए मुझे दोनों में दृढ़-संकल्प दिखाई देता है। जो ठान लिया वो ठान लिया। यही संकल्प उन्हें नोटबंदी, जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे साहसिक और दूरगामी प्रभाव वाले फैसले लेने की प्रेरणा देता है। इसी संकल्प औरआत्मबल के दम पर वे चुनौतियों के बीच से समाधान चुन लेते हैं। मैं आज उनके 68वें जन्मदिन पर उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

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