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कैंसर से बचने के लिए ये 2 काम है जरूरी, जानें डॉक्टर्स ने दी क्या करने की सलाह

कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ी है। पर, बायोप्सी, कीमोथेरेपी, सर्जरी आदि इसके उपचार से जुड़ी आधी-अधूरी बातें और कई दफा विशेषज्ञों की अलग-अलग राय के बीच सही फैसला करना कठिन हो जाता है।

कैंसर से बचने के लिए ये 2 काम है जरूरी, जानें डॉक्टर्स ने दी क्या करने की सलाह
Kajal Sharmaशमीम खान, हिंदुस्तान,नई दिल्लीFri, 03 Feb 2023 05:14 PM
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कैंसर के कारण होने वाली मौतों से बचने के लिए दो चीजें सबसे जरूरी हैं, एक तो स्वस्थ जीवनशैली और दूसरा शरीर में कोई भी असमानता लगातार बनी हुई है तो उसे नजरअंदाज न करना। कैंसर जब प्राइमरी स्टेज (जिस भाग में विकसित हुआ है, वहीं तक सीमित रहता है) में होता है तो उपचार आसान होता है और जीवित रहने की संभावना भी बढ़ जाती हैं। सेंकेडरी स्टेज में यह मेटास्टैसिस होकर  बाकी भागों में भी फैलने लगता है, जिससे उपचार जटिल हो जाता है। मृत्यु का खतरा 90-95 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। भारत में कैंसर के 70-80 प्रतिशत मामले तीसरी व चौथी स्टेज पर सामने आते हैं। अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार, स्टेज-1 में कैंसर ठीक होने की संभावना 95 प्रतिशत तक होती है, जबकि स्टेज-4  में आते-आते स्थिति  ठीक होने की संभावना 5 प्रतिशत से भी कम रह जाती है।

जांच  व निदान 
चिकित्सक के पास जाएं: अगर कोई लक्षण असामान्य है, लंबे समय तक बना हुआ है तो सबसे पहले अपने डॉक्टर से जांच कराएं, सीधे कैंसर विशेषज्ञ के पास जाने की जरूरत नहीं है। कैंसर का संदेह होने पर वे आगे की जांच की सलाह देंगे।  

नॉन-इनवेसिव टेस्ट: नॉन-इनवेसिव जांचों में कोई सुई नहीं लगती न ही दूरबीन डाली जाती है। इसमें अल्ट्रा साउंड, सीटी स्कैन, एमआरआई आते हैं। 

इनवेसिव टेस्ट : इस टेस्ट से लोग डरते हैं कि सुई लगाने से कैंसर फैल सकता है या गांठ फट सकती है, लेकिन ऐसा नहीं होता है। ऊतक का टुकड़ा या कोशिकाओं के नमूना की जांच से ही पता चलता है कि कैंसर है या नहीं या कौन से प्रकार का कैंसर है। 

बायोप्सी: इससे कैंसर की पुष्टि होती है। जब ट्यूमर ऊपर ही दिख रहा होता है, जैसे स्तन, गर्दन आदि पर तो बायोप्सी के लिए टुकड़ा आसानी से लिया जाता है।  

एंडोस्कोपी : जब सीटी स्कैन में ट्यूमर या गांठ शरीर के अंदर दिखती है तो दूरबीन डालकर एंडोस्कोपी से ही बायोप्सी की जाती है। 

पेट (पीईट) स्कैन : कैंसर की स्टेज का पता चलता है।
इन सब जांचों के बाद ही डॉक्टर उपचार के विकल्प चुनते हैं। उपचार का कोई शार्टकट नहीं है, इसलिए मरीज और उसके परिवार को थोड़ा संयम रखना पड़ता है।  

उपचार के विकल्प
कैंसर के उपचार के लिए कई थेरेपियां उपलब्ध हैं। इनका चयन इस आधार पर किया जाता है कि कैंसर कौन से चरण में है, मरीज की सेहत और उम्र कैसी है। जिन मरीजों की उम्र 75-80 वर्ष है, कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी के साइड इफेक्ट्स को देखते हुए, टारगेट थेरेपी और इम्यून थेरेपी से उपचार करने का प्रयास किया जाता है। कई नए और एडवांस ट्रीटमेंट भी उपलब्ध हैं।

सर्जरी: कैंसर के इलाज में आज भी ऑपरेशन ही सबसे बड़ा और कारगर उपचार है। पहले और दूसरे चरण में ट्यूमर को सर्जरी से निकाल दिया जाता है। तीसरी स्टेज में भी जब कैंसर दूसरे अंगों तक नहीं फैला है, तब भी सर्जरी से उपचार संभव है। जब कैंसर दूसरे अंगों में फैल जाता है, तब दूसरे तरीके अपनाते हैं।  रोबोटिक तकनीक ने सर्जरी को पहले की तुलना में आसान और सफल बना दिया है। 
अत्याधुनिक टूल्स और कैमरे की सहायता से ट्यूमर तक पहुंचना आसान हो जाता है, ज्यादा खून नहीं बहता और दर्द कम होता है। रोबोटिक सर्जरी के द्वारा ब्लैडर कैंसर, किडनी कैंसर, ओवेरीज कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर व गले के कैंसर का उपचार किया जा सकता है। 

कीमोथेरेपी और टारगेटेड ड्रग थेरैपी: कीमोथेरेपी में साइटोटॉक्जिक ड्रग्स से अनियंत्रित कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। पर, इससे कई स्वस्थ कोशिकाएं भी प्रभावित हो जाती हैं। कीमोथेरैपी के साइड इफेक्ट्स को देखते हुए टारगेटेड थेरेपी को विकसित किया गया। इसके जरिये केवल कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। साइड इफेक्ट भी कम हैं। इस थेरेपी में शरीर के कुछ जीन्स, प्रोटीन और रक्त कोशिकाओं पर ध्यान दिया जाता है, जो कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ाने में सहायक होते हैं। 

रेडिएशन थेरेपी: इस नई तकनीक में कैंसर कोशिकाओं को रेडिएशन के जरिये खत्म करते हैं। इसमें कई नए तरीके हैं जैसे- इंटेंसिटी माड्यूलेटेड रेडियो थेरेपी (आईएमआरटी) इसमें कैंसर वाली जगह पर मशीन से रेडिएशन छोड़ा जाता है। इमेज गाइडेड रेडिएशन थेरेपी (आईजीआरटी) भी प्रभावी है। साथ ही  स्टीरियोटैक्टिक रेडियोसर्जरी में कैंसर प्रभावित शरीर के छोटे से हिस्से में भारी मात्रा में रेडिएशन छोड़ते हैं।

प्रोटॉन थेरैपी: यह रेडियोथेरिपी में सबसे नई तकनीक है। इसमें प्रोटॉन्स का इस्तेमाल किया जाता है, जोकि कैंसर कोशिकाओं को आसानी से खत्म कर देते हैं। शरीर के कई भागों जैसे मस्तिष्क, आंखें, गर्दन, सीने, हृदय, फेफड़े, प्रोस्टेट, आहारनाल, कोलोन में मौजूद ट्यूमर का उपचार इससे किया जाता है। 

बायलॉजिकल या इम्यूनो थेरेपी: यह थेरेपी अलग ही महत्व रखती है। इसमें कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए इम्यून तंत्र को स्टीम्युलेट किया जाता है। इस उपचार में मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज, चेकप्वाइंट इनहिबिटर्स, कैंसर वैक्सीन, साइटोकिन्स ट्रीटमेंट से मरीज को ठीक किया जाता है।

बचाव के उपाय
शोध कहते हैं कि पौष्टिक खानपान, सक्रिय जीवनशैली और नियंत्रित वजन रखकर कैंसर के जोखिम को काफी कम किया जा सकता है। इसके अलावा:  
- वसा, चीनी और लाल मांस का सेवन कम करें।
-  हरी सब्जियां, फल खाएं। नियमित व्यायाम करें। 
- अल्कोहल, धूम्रपान व तंबाकू सेवन से बचें। 
- तनाव मुक्त रहने के लिए जरूरी उपाय अपनाएं। 
- परिवार के किसी सदस्य को कैंसर रहा है तो नियमित जांच कराते रहें। 

गलत धारणाओं से बचना है जरूरी

मिथक: कैंसर से बचने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता।
तथ्य: यह गलत है। कैंसर से होने वाली कुल मौतों में से एक-तिहाई धूम्रपान से होती हैं। गलत खानपान, मोटापा और शारीरिक सक्रियता की कमी भी खतरा बढ़ाते हैं।   

मिथक: माइक्रोवेव में उपयोग किए जाने वाले लपेटने के प्लास्टिक और बर्तन कैंसर का कारण होते हैं।
तथ्य: प्लास्टिक माइक्रोवेव सुरक्षित है, तब कोई खतरा नहीं है। कैंसर करने वाला डाईऑक्सिन केवल तभी निकलता है, जब प्लास्टिक जलता है। 

मिथक: कृत्रिम स्वीटनर्स का सेवन कैंसर का कारण बनता है।
तथ्य:  हालांकि अभी शोध जारी हैं, पर कई कृत्रिम स्वीटनर्स जैसे सैक्केरिन और एस्पार्टम पर कई जगह रोक लगाई गई है। उन्हें ब्लैडर कैंसर का कारक माना गया।      

मिथक: कैंसर रोगी सामान्य जिंदगी नहीं जी सकते? 
तथ्य: कुछ ही कैंसर रोगियों को अस्पताल में रखने की जरूरत होती है। ज्यादातर मरीज कीमोथेरेपी के दौरान पहले की तरह काम कर सकते हैं। यात्रा व जिम पर जा सकते हैं। 

मिथक: धूम्रपान करने वालों को ही फेफड़ा कैंसर होता है।
तथ्य: फेफड़ा कैंसर पीड़ित लोगों में करीब 50 प्रतिशत धूम्रपान नहीं करते हैं। वायु प्रदूषण, रसायन, जीवनशैली, फेफड़ों से जुड़े रोग भी खतरा बढ़ाते हैं।

विश्व में कैंसर के मामले
स्तन कैंसर: 22 लाख 60 हजार
फेफड़ों का कैंसर:  22 लाख 10 हजार
कोलन और रेक्टम कैंसर: 19 लाख 30 हजार
प्रोस्टेट कैंसर: 14 लाख 10 हजार 
पेट का कैंसर: 10 लाख 9 हजार
(स्त्रोत : विश्व स्वास्थ्य संगठन,2020 में )

स्थिति को गंभीर होने से रोकें
हमारे शरीर में कोशिकाएं बनने और नष्ट होने की प्रक्रिया नियंत्रित तरीके से चलती रहती है। इस प्रक्रिया में किसी तरह की गड़बड़ी आने पर बीमार कोशिकाएं अनियंत्रित ढंग से बढ़ने लगती हैं, जो एक जगह जमा होकर ट्यूमर का रूप ले लेती हैं, जो एक उभार या गांठ के रूप में नजर आता है।

इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज 
कैंसर के कुछ लक्षण बड़े ही सामान्य होते हैं, जो दूसरे रोगों में भी दिखते हैं। इसलिए खुद से किसी नतीजे पर न पहुंचें। अगर कोई लक्षण लंबे समय से बना हुआ है और समय के साथ गंभीर हो रहा है तो उसे नजरअंदाज न करें।
-शरीर के किसी भी भाग में उभार या गांठ  -
-किसी भाग से बहुत खून बहना  
- खांसी व गले की खराश
- मल त्यागने की आदतों में बदलाव ल्ल मूत्र मार्ग से जुड़ी समस्याएं 
- तेज दर्द ल्ल वजन क
- बार-बार बुखार रहना 
- लगातार थकान व त्वचा में बदलाव 
- सांस फूलना  

वैकल्पिक चिकित्सा से भी मिलती है राहत
कीमोथेरेपी के उपचार के दौरान मरीज को कई तरह के लक्षण से गुजरना पड़ सकता है। ऐसे में उन लक्षणों से राहत पहुंचाने में विशेषज्ञों से सलाह लेकर कुछ वैकल्पिक चिकित्सा का भी लाभ उठाया जा सकता है।

बेचैनी: मसाज, ध्यान, संगीत थेरेपी, रिलेक्सेशन तकनीक
थकान: व्यायाम, मालिश, रिलेक्सेशन तकनीक, योग
चक्कर व उल्टी: एक्यूपंचर, एरोमाथेरेपी, संगीत थेरेपी
दर्द: एक्यूपंचर, एरोमाथेरेपी, मालिश, संगीत थेरेपी, 
नींद की समस्या:  कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी, व्यायाम, योग, रिलेक्सेशन तकनीक
तनाव: ऐरोमाथेरेपी, व्यायाम, मालिश, ध्यान, संगीत थेरेपी, योग 
                                                          
विशेषज्ञ : डॉ. अंशुमान कुमार, वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल।
 डॉ. शुभम गर्ग, कैंसर विशेषज्ञ, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा। डॉ. जे. बी. शर्मा, वरिष्ठ कैंसर विशेषज्ञ, एक्शन कैंसर हॉस्पिटल, दिल्ली।

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