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कम और ज्यादा पसीना दोनों ही न करें नजरअंदाज, यहां जानें कारण और बचाव

मेहनत के पसीने की चमक अच्छी होती है। पर, बिना मौसम और बिना मेहनत किए भी लगातार पसीने से भीगे रहना कुछ समस्याओं के संकेत भी देता है। पसीने के सेहत से जुड़े पहलुओं के बारे में बता रही हैं शमीम खान

Kajal Sharma हिंदुस्तान, नई दिल्लीFri, 28 July 2023 06:45 AM
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गर्मी और उमस हो तो थोड़े से शारीरिक श्रम में ही पसीना आने लगता है। पर, कुछ लोगों को बहुत ज्यादा पसीना आता है। अचानक से ज्यादा पसीना आने लगना या फिर पसीने की गंध बदलना किसी स्वास्थ्य समस्या का संकेत भी हो सकता है। यों ज्यादा पसीना आमतौर पर बड़ी परेशानी नहीं होता। खानपान व दिनचर्या में सुधार से इसे कम कर सकते हैं। पर, कई बार डॉक्टर से मिलना जरूरी हो जाता है।

क्यों आता है पसीना?

हमारे शरीर की कई ग्रंथियां पसीने का निर्माण करती है, जो त्वचा के रोमछिद्रों से बाहर आता है। इनमें से दो ग्रंथियां प्रमुख हैं; एक्राइन ग्लैंड और एपोक्राइन ग्लैंड। एक्राइन ग्लैंड से निकलने वाला पसीना पानी जैसा होता है, इसमें बहुत थोड़ी मात्रा में नमक, प्रोटीन, यूरिया और अमोनिया भी होते हैं। ये ग्रंथियां पूरे शरीर में होती हैं, पर हथेलियों, पेशानी, बगलों और तलवों में अधिक होती हैं। एपोक्राइन ग्रंथि बगलों, पेट व जांघ के बीच का भाग और स्तनों के आसपास अधिक संख्या में होती हैं।

हमारे पसीने में पानी के अलावा सोडियम, क्लोराइड, पोटेशियम, कैल्शियम व मैग्नेशियम जैसे मिनरल्स भी होते हैं। पसीना शरीर के आकार, उम्र, मसल्स मास और सेहत पर भी निर्भर करता है। किशोर अवस्था में हार्मोनल बदलावों के समय शरीर की करीब 30 लाख स्वेट ग्लैंड्स क्रियाशील हो जाती हैं। जब पसीना बैक्टीरिया के संपर्क में आता है तो दुर्गंध आती है, जो कई लोगों में काफी तेज होती है।

हाइपरहाइड्रोसिस
अधिक पसीने की समस्या को चिकित्सकीय भाषा में हाइपरहाइड्रोसिस कहते हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में करीब 7-8 प्रतिशत लोग हाइपरहाइड्रोसिस से पीड़ित हैं। किसी को पूरे शरीर में बहुत पसीना आता है तो किसी को विशेष स्थानों जैसे हथेलियों, तलवों, बगलों या चेहरे पर। अगर ज्यादा पसीना किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण नहीं आ रहा हो तो इसे प्राइमरी हाइपरहाइड्रोसिस कहते हैं। यह तापमान में बढ़ोतरी या अधिक शारीरिक श्रम करने से ट्रिगर हो सकता है। अगर पसीना अधिक निकलने का कारण स्वास्थ्य समस्या है तो इसे सेकंडरी हाइपरहाइड्रोसिस कहेंगे। हाइपरहाइड्रोसिस में बॉडी का कूलिंग मेकेनिज्म इतना अधिक सक्रिय हो जाता है कि सामान्य से चार या पांच गुना अधिक पसीना उत्पन्न करता है।

हाइपरहाइड्रोसिस के कारण

●आनुवंशिक कारण 
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार इससे पीड़ितों में 50 प्रतिशत में यह आनुवंशिक कारणों से होता है। मोटे और बेडौल लोगों में ऐसा अधिक होता है।

●दवाओं के साइड इफेक्ट्स 
हार्मोन संबंधी गड़बड़ियों, हाई ब्लड प्रेशर, अवसाद, डायबिटीज और थायरॉइड में ली जाने वाली दवाओं से भी पसीना अधिक आता है।

●स्वास्थ्य समस्याएं 
कई तरह के कैंसर, हृदय और फेफड़ों के रोग, थायरॉइड, डायबिटीज या आंतरिक संक्रमण, मीनोपॉज व स्ट्रोक के लक्षणों के तौर पर भी पसीना ज्यादा आता है।

●भावनात्मक समस्याएं 
घबराहट, उत्तेजना और तनाव में स्ट्रेस हार्मोन सक्रिय हो जाते हैं। इससे शरीर का ताप और धड़कनें बढ़ जाती हैं। हमारे मस्तिष्क में हाइपोथेलेमस हिस्सा पसीने को काबू करता है, यह स्वेट ग्लैंड्स को शरीर ठंडा करने के लिए पसीना निकालने का संदेश देता है। ऐसे में सिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम भावनात्मक सिग्नल्स को पसीने में बदलता है।

●अन्य कारण 
निकोटीन, कैफीन, बहुत गर्म व मसालेदार भोजन खाना हाइपरहाइड्रोसिस को ट्रिगर कर सकता है। जो पहले से इससे जूझ रहे हैं, उनकी समस्या बढ़ जाती है।

क्यों जरूरी है पसीना आना

अलग-अलग लोगों की ‘स्वेट नीड’ अलग-अलग होती है, इसलिए पसीने की कोई एक तय मात्रा निर्धारित नहीं कर सकते हैं। पर, पसीने का शरीर से बाहर निकलना बहुत जरूरी है

●पसीना शरीर को ठंडा रखने की कुदरती प्रक्रिया है, शरीर की नमी बनाए रखता है।

●बाहरी संक्रमण से बचाता है। पसीना शरीर को हानि पहुंचाने वाले पदार्थों जैसे अल्कोहल, कोलेस्ट्रॉल व नमक को बाहर निकाल देता है।

●पसीने में प्राकृतिक रूप से एंटीमाइक्रोबियल पेप्टाइड होता है। अध्ययनों के अनुसार यह टीबी और दूसरे हानिकारक रोगाणुओं से लड़ता है।

कब डॉक्टर से संपर्क करें

●अगर पसीने में आसामान्य परिवर्तन आए या अत्याधिक पसीना आए या कम पसीना आए ●शरीर की गंध बदलना ●ठंडे स्थान पर आराम अवस्था में होने पर भी पसीना आना ●पसीने से नियमित दिनचर्या प्रभावित होने लगे, आप लोगों से मिलने-जुलने से बचें ●रात में सोते समय या सुबह उठते ही पसीना आने लगे

त्वचा रोग विशेषज्ञ से मिलें ...

बहुत पसीना आना कई बार रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डालने लगता है। जिन्हें हाथों में बहुत पसीना आता है, उन्हें पैन पकड़ने, हस्ताक्षर करने या पेपर पर कुछ लंबे समय तक लिखने में दिक्कत होती है। कई बार पसीना शर्मिंदगी का कारण बन जाता है। ऐसा है तो त्वचा रोग विशेषज्ञ से भी मिलें। कई बार कुछ समय तक लोशन लगाने से आराम आ जाता है। पर, जिन्हें आराम नहीं मिलता, तब हाथ-पैर और बगलों में, बोटोक्स के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। ये हर चार से छह महीने में लगाने पड़ते हैं। - डॉ. प्रतीक नागरानी, सुपर डर्म क्लीनिक, रोहिणी

बचाव के उपाय

●ट्रिगर को पहचानें कब पसीना अधिक आता है, इन ट्रिगर्स की पहचान कर उनसे बचें। तनावपूर्ण स्थिति में अल्कोहल, जंक फूड्स, कैफीन, मसालेदार भोजन से बचें।

●हाइड्रेट रहें पानी और दूसरे तरल पदार्थ अधिक पिएं। ये शरीर में गर्मी कम करते हैं, जिससे पसीना कम निकलता है।

●एंटीपर्सपिरेंट इस्तेमाल करें डियोडोरेंट से पसीने की बदबू कम होती है, पर एंटीपर्सपिरेंट में पसीने को ब्लॉक करने की क्षमता होती है। नर्वस, स्ट्रेस या एंग्जाइटी स्वेट की समस्या है तो परफ्यूम रहित एंटीपर्सपिरेंट लगाएं। रात में सोते समय हथेलियों व तलवों पर लगाएं।

●दो बार नहाएं सुबह और रात को सोने से पहले नहाएं। इससे ताजगी बनी रहेगी व रात में नींद अच्छी आएगी। नहाने में एंटीबैक्टीरियल साबुन का इस्तेमाल करें।

●पहनावे का ध्यान रखें सूती व हल्के रंग के ढीले कपड़े पहनें। पसीने के कारण कपड़ों पर लगने वाले धब्बों से बचने के लिए बगलों में पैड लगाएं।

●व्यायाम सप्ताह में 5 दिन 30 मिनट पसंदीदा व्यायाम करें। रिलैक्सेशन टेक्निक्स जैसे योग, मेडिटेशन या डांस करें। हर दिन इसका अभ्यास दिमाग को शांत व तनाव कम करता है, जो पसीने को ट्रिगर करता है।

●जांच कराएं अगर आराम नहीं आ रहा है तो डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर थाइरॉइड, लो ब्लड शुगर या हृदय से संबंधित कोई समस्या, खून व पेशाब की जांच के लिए कह सकते हैं।

खानपान में लाएं बदलाव
हमेशा ताजा और हल्का भोजन करें। मौसमी फल व सब्जियां अधिक खाएं। खीरा, पुदीना, नींबू, दही व छाछ का सेवन शरीर को ठंडक और पानी का स्तर सामान्य बनाए रखने में मदद करता है। मसालेदार और चिकनाई वाले भोजन से बचें। तीते स्वाद वाली चीजें जैसे फलियां, नाशपति, फूलगोभी, शलजम, बंदगोभी, कच्चा केला, अनार, भिंडी, दालें। तीता भोजन पानी का अवशोषण कर उतकों को ठोस बनाता है।

हमारे विशेषज्ञ डॉ. जयंता ठाकुरिया, इंटरनल मेडिसीन, एकार्ड सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, फरीदाबाद। डॉ. गजिंदर गोयल, हृदय रोग विभाग, मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद।

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