90 फीसदी एड्स संक्रमित माएं दे रही हैं स्वस्थ बच्चे को जन्म, रिपोर्ट में खुलासा
जाने-अनजाने एड्स की चपेट में आई गर्भवती महिलाओं के आंगन में स्वस्थ व हष्ट-पुष्ट संतान की किलकारी गूंज रही है। जिले में 90 फीसदी महिलाओं ने सेहतमंद संतानों को जन्म दिया है। मेडिकल कॉलेज के एआरटी सेंटर

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जाने-अनजाने एड्स की चपेट में आई गर्भवती महिलाओं के आंगन में स्वस्थ व हष्ट-पुष्ट संतान की किलकारी गूंज रही है। जिले में 90 फीसदी महिलाओं ने सेहतमंद संतानों को जन्म दिया है। मेडिकल कॉलेज के एआरटी सेंटर की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि सही समय पर जांच और इलाज इसमें काफी मददगार साबित हुआ है। गर्भस्थ शिशु में संक्रमण का प्रसार रोकने के लिए थेरेपी और लगातार फॉलोअप किए जाते हैं, जिससे गर्भ में पल रहे शिशु के चारों ओर सुरक्षा कवच बन जाता है। अधिकतर महिलाओं की संतानों में एचआईवी संक्रमण नहीं पाया गया है।
जागरूकता आई काम, चपेट में नहीं शिशु
गर्भवतियों से उनकी संतान में वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में जागरूकता काम आ रही है। समय रहते जांच और इलाज इसमें सहायक बन रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि निजी और सरकारी चिकित्सा केंद्रों पर गर्भवती महिलाओं की एचआईवी, हेपेटाइटिस की जांच अनिवार्य तौर पर करवाई जाती है। जांच रिपोर्ट में संक्रमित मिलने वाली महिलाओं की काउंसलिंग होती है, जिसके बाद इलाज की प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसमें एंटी रेट्रोवाइरल थेरेपी का उपयोग किया जाता है।
बिना इलाज संक्रमण फैलने का खतरा
इलाज के अभाव और लापरवाही की वजह गर्भवती से शिशु में एचआईवी का प्रसार होने का खतरा कई गुना होता है। एआरटी सेंटर की नोडल अधिकारी ने बताया कि एड्स के वायरस का ट्रांसमिशन खून के जरिए होता है। मां के संक्रमित खून से गर्भ में पल रहे शिशु के भीतर खून के जरिए वायरस पहुंच जाता है और जन्म के साथ ही संतान भी इससे संक्रमित हो जाती है। उन्होंने बताया कि थेरेपी न करवाने वाले लगभग सभी मामलों में यही स्थिति रहती है।
इस साल हुए 18 बच्चे
मेरठ एआरटी सेंटर में इस साल 22 गर्भवती महिलाएं पंजीकृत हुईं। इनमें से 18 के बच्चे स्वस्थ्य पैदा हुए। सेंटर प्रभारी के अनुसार इससे पहले के वर्षों में भी औसतन इतने बच्चे ही स्वस्थ्य पैदा हुए।
फॉलोअप जरूरी
एआरटी सेंटर द्वारा जन्म के बाद भी शिशुओं का करीब डेढ़ साल तक फॉलोअप किया जाता है। शिशु की जांच करवाकर उसमें एड्स की स्थिति का पता लगाया जाता है। अगर किसी नवजात में एड्स संक्रमण मिलता है तो उसे तुरंत ही एआरटी थेरेपी दी जाती है। इससे काफी हद तक वायरस से लोड को नियंत्रित कर लिया जाता है। हालांकि इसकी दवाइयां आजीवन लेनी होती हैं।
क्या है एड्स
एड्स यानी एक्वायर्ड इम्यून डेफिशियेंसी सिंड्रोम। ये ह्यूमन इम्यूनोडेफिशियेंसी वायरस से होता है। इसमें शरीर में प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता का स्तर बहुत कम हो जाता है और मरीज को अन्य घातक बीमारियां घेर लेती हैं। इससे मरीज का इलाज मुश्किल हो जाता है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। ये बीमारी संक्रमित खून के ट्रांसमिशन, एड्स पीड़ित के साथ असुरक्षित यौन संबंध, मां से संतान में और संक्रमित सूई से प्रयोग से हो सकती है।
डॉ. संध्या गौतम, (नोडल अधिकारी, एआरटी सेंटर मेडिकल कॉलेज) का कहना है कि जननी सुरक्षा योजना के चलते एड्स की जांच जरूरी है, जिससे समय रहते ही बीमारी का पता चल जाता है। संक्रमित गर्भवतियों को तुरंत ही इलाज उपलब्ध करवा दिया जाता है। इससे वायरल लोड बहुत कम हो जाता है और नवजात तक वायरस का प्रसार नहीं होता है। 90 फीसदी महिलाओं की संतान स्वस्थ हो रही है।
