
71 की हो चलीं एक्ट्रेस रेखा इस उम्र में भी चला रहीं फैंस पर जादू
संक्षेप: भारतीय सिनेमा के क्षितिज में दीप्तिमान अभिनेत्रियों की कमी नहीं है, लेकिन रेखा जैसी कुछ ही अभिनेत्रियां हैं, जिनका जादू, प्रभाव, महत्व अभी भी कायम है। वह समाज में आज भी प्रेरणा हैं। पेश है वरिष्ठ फिल्म पत्रकार-लेखक प्रदीप सरदाना की कलम से विशेष आलेख..
दिग्गज अभिनेत्री रेखा 10 अक्तूबर को अपने जीवन के 71 वें वसंत में प्रवेश कर रही हैं। हालांकि, पिछले 10 बरसों से उनकी कोई बड़ी फिल्म नहीं आई है। फिर भी फिल्म उद्योग में रेखा के व्यापक आभामंडल की अनुभूति सर्वत्र है।अपनी 71 की उम्र में, वह भी फिल्मों से दूर रहकर रेखा अपनी अस्मिता के अस्तित्व को बनाए हुए हैं। रेखा उम्र के इस पड़ाव पर भी एक परम सुंदरी बनी हुई हैं। जिनको देख आज भी, कोई भी यह कह सकता है, ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं’! रेखा की अब तक की यात्रा को देखें, तो इसमें उतार-चढ़ाव ही नहीं, कितने तनाव भी ऐसे रहे कि उस चक्र में उलझ कर कोई भी अपना आपा खो सकता है। यहां तक कि निराशा के कुचक्र में भी बुरी तरह फंस सकता है, लेकिन रेखा ने सब कुछ सहन करते हुए अपनी एकाकी जीवन में जिस तरह रंग भरे हैं, वे सभी के लिए एक बड़ी प्रेरणा हैं।

बेमन से फिल्मों में
10 अक्तूबर, 1954 को चेन्नई में जन्मी भानुरेखा ने होश संभालते ही अपने घर-परिवार में जो वातावरण देखा, वह तनावपूर्ण था। रेखा के पिता जेमिनी गणेशन और मां पुष्पावल्ली, दोनों दक्षिण सिनेमा के सितारे थे। जेमिनी की अधिकृत-अनधिकृत रूप से 4 पत्नियां रहीं, इसलिए पुष्पावल्ली कभी सहज नहीं रहीं। जेमिनी से उनके तल्ख रिश्ते परिवार की कलह का कारण बनते रहे। रेखा जब 4 साल की थीं, तभी पुष्पावल्ली ने बाल कलाकार के रूप में तेलुगु सिनेमा में उनका पदार्पण करा दिया। हालांकि, पिता नहीं चाहते थे कि रेखा फिल्मों में आए। उधर रेखा की बाल कलाकार के रूप में कुछ ऐसी धूम हुई कि 13 साल की उम्र तक पहुंचते ही उन्हें हिंदी फिल्मों में नायिका की भूमिका मिल गई। अफ्रीका से आए कुलजीत पाल और शत्रुजीत पाल, दो भाइयों ने रेखा को जब मुंबई का टिकट थमाया, तब उन्हें हिंदी बोलनी तक नहीं आती थी। हालांकि, रेखा को अभिनेता बिस्वजीत के साथ जो पहली फिल्म ‘सुहाना सफर’ मिली, वह विभिन्न कारणों से 1979 में ‘दो शिकारी’ के नाम से प्रदर्शित हुई। बिस्वजीत और रेखा के उस फिल्म के चुंबन दृश्य के चर्चे सात समंदर पार तक पहुंच गए थे। इसी दौरान रेखा की नवीन निश्चल के साथ आई मोहन सहगल की फिल्म ‘सावन भादों’ 1970 में प्रदर्शित हुई। अपनी इस पहली हिंदी फिल्म से 16 साल की रेखा हिट हो गईं। उनके पास फिल्मों का ढेर लग गया। रेखा सिर्फ मां का मन रखने और परिवार का खर्च उठाने के लिए फिल्में कर रही थीं। वह स्वयं स्कूल से आगे पढ़कर विमान परिचारिका बन ऊंची उड़ान भरने के सपने देखती थीं।
रेखा अभी तक 200 से अधिक फिल्मों में काम कर चुकी हैं। दिलचस्प यह है कि बी और सी श्रेणी की छोटी फिल्मों से अपनी शुरुआत करके रेखा ने शिखर की अभिनेत्री बनकर जो इतिहास रचा है, वह अविस्मरणीय है।
55 साल से फिल्मों में
रेखा ने अपनी अब तक की 55 वर्ष की फिल्म यात्रा में लगभग सभी बड़े निर्माताओं-निर्देशकों और नायकों के साथ काम किया है। खासकर, अमिताभ बच्चन के साथ 11 फिल्में करके रेखा ने जो धमाल किया, वह किसी से छिपा नहीं है।
रेखा ने अपने पहले छह बरस में सावन भादों, एक बेचारा, कहानी किस्मत की, अनोखी अदा, नमक हराम, धर्मा, प्राण जाए पर वचन न जाए, धरम करम और संतान जैसी फिल्मों से लोकप्रियता तो बहुत पाई, लेकिन रेखा की जिंदगी में बड़ा मोड तब आया, जब 1976 में अमिताभ बच्चन के साथ ‘दो अनजाने’ प्रदर्शित हुई। इससे पहले अमिताभ और रेखा फिल्म ‘नमक हराम’ में अलग-अलग भूमिकाओं में थे। इस फिल्म में अमिताभ का काम के प्रति अनुशासन और समर्पण देख रेखा इतनी प्रभावित हुईं कि फिल्मों में कुछ कर दिखाने को वह भी मचल उठीं।
जिंदगी एक ख्वाहिश
इसके बाद 1978 में जब विनोद मेहरा के साथ उनकी फिल्म ‘घर’ आई, तो रेखा ने अपने शानदार अभिनय से दर्शकों के दिलों में घर कर लिया। तब पहली बार लगा कि रेखा एक कमाल की अभिनेत्री है। इसके बाद रेखा ने जहां 1980 में फिल्म ‘खूबसूरत’ से सभी के दिल जीते, वहां 1981 में आई ‘उमराव जान’ ने तो उन्हें अमर कर दिया। ‘उमराव जान’ के लिए रेखा को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। उधर अमिताभ बच्चन के साथ आई रेखा की खून पसीना, मुकद्दर का सिकंदर, कसमे वादे, नटवरलाल, सुहाग जैसी फिल्मों ने जहां उन्हें बॉक्स ऑफिस पर नंबर वन हीरोइन बनाए रखा। वहीं अमिताभ-रेखा की प्रेम कहानी भी सभी की जुबां पर रही। हालांकि, अमिताभ ने इस प्रेम कहानी को कभी नहीं स्वीकारा, लेकिन रेखा तब से आज तक अमिताभ के साथ अपने निजी संबंधों और अपने दर्द को विभिन्न मंचों पर स्वीकार कर चुकी हैं। यहां तक उनकी मांग का सिंदूर भी बहुत कुछ कहता है।
हालांकि, मार्च, 1990 में रेखा ने उद्योगपति मुकेश अग्रवाल से शादी भी की, लेकिन चार महीने में ही तलाक की अफवाहों के साथ 2 अक्तूबर, 1990 को मुकेश अग्रवाल की आत्महत्या के बाद यह कहानी भी दम तोड़ गई। वैसे, अमिताभ और रेखा की कहानी आज 45 बरस बाद भी सदा सुर्खियों में रहती है। रेखा ने खुद को बहुत बेहतरीन ढंग से संभाला है। अमिताभ-रेखा की अंतिम फिल्म ‘सिलसिला’ 1981 में प्रदर्शित हुई थी, जिसमें जया बच्चन भी साथ थीं। मेरी रेखा से पहली मुलाकात जनवरी, 1981 में हुई थी, जब वह दिल्ली और आसपास ‘सिलिसिला’ की शूटिंग कर रही थीं। उन दिनों में रेखा और जया के मधुर संबंध देख मैं हैरान था। जब रेखा, जया को दीदी भाई कहती थीं।
आज भी युवाओं के बीच फैशन क्वीन
रेखा आज भी युवा हैं, तो इसका राज जहां उनका नियमित योग है, तो विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को प्रसन्नचित और व्यस्त रखना भी है। रेखा जब 28 साल की थीं, तब वह एक ऐसी योग शिक्षिका रमा बेंस के संपर्क में आईं कि उनकी काया ही पलट गई। मुंबई में अपने घर के निकट होटल सी रॉक में रेखा ने नियमित योग शुरू किया। बाद में, योग पर अपना ऑडियो कैसेट ‘रेखाज माइन्ड एंड बॉडी टेंपल’ निकालकर लोगों को भी योग के लिए प्रेरित किया। उन्हें भारत सरकार ने 2010 में पद्मश्री से सम्मानित किया, तो 2012 से 2018 तक वह राज्यसभा की नामांकित सदस्य रहीं। कभी मधुबाला, गीताबाली और राजश्री जैसी अभिनेत्रियों से प्रेरित रही रेखा आज कितनी ही नई और बड़ी अभिनेत्रियों की प्रेरणा हैं।
मैं कोई देवी या दीवा या ऐसा कुछ भी नहीं बनना चाहती, जिन नामों से लोग मुझे पुकारना चाहते हैं। मैं बस अपनी जिम्मेदारियां निभाना चाहती हूं।
मैं सपने देखने में विश्वास नहीं करती। असली जिंदगी मुझे कल्पना से भी ज्यादा अपनी ओर आकर्षित करती है।
मेरी कोई सीमा नहीं है। मेरे शब्दकोष में ‘नहीं’ शब्द नहीं है। मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
जब आप हर पल का आनंद लेते हैं, तो आप खुद को बचाकर रखने की कला सीख जाते हैं।

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