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Shoorveer Book Review: हथियारों से नहीं हौसलों से लड़े जाते हैं युद्ध

भारतीय सेना के जवान जब कोई युद्ध लड़ते हैं तो अपनी जान तक न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं लेकिन किताबों में लिखी उनकी जाबांजी के किस्से-कहानियां आमतौर पर घटनाओं का नीरस विवरण मात्र परोस देती हैं। ऐसी...

Shoorveer Book Review: हथियारों से नहीं हौसलों से लड़े जाते हैं युद्ध
लाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीMon, 27 Jan 2020 06:50 PM
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भारतीय सेना के जवान जब कोई युद्ध लड़ते हैं तो अपनी जान तक न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं लेकिन किताबों में लिखी उनकी जाबांजी के किस्से-कहानियां आमतौर पर घटनाओं का नीरस विवरण मात्र परोस देती हैं। ऐसी किताबों को पढ़कर लोग तथ्यों की जानकारी हासिल तो कर लेते हैं मगर देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की जवानों की भावना, हौसले और बहादुरी को समझने से वंचित रह जाते हैं। किसी युद्ध में सेना की संख्या, गोला बारूद और हथियारों के ढेर कोई मायने नहीं रखते, अगर लड़ने वाले योद्धा के मन में जाबांजी, हौसला और बहादुरी न हो।

रचना बिष्ट रावत की किताब ‘शूरवीर-परमवीर चक्र विजेताओं की कहानियां’ भारतीय सेना के वीर जवानों की वास्तविक गाथा है। इसमें भारत में वीरता के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सैन्य पदक परमवीर चक्र हासिल करने वाले 21 जांबाज फौजियों की हैरतअंगेज कहानियां हैं। किताब में भारत-पाक युद्ध (1947-48), कांगो, भारत-चीन युद्ध, दूसरा कश्मीर युद्ध (1965), भारत-पाक युद्ध(1971), सियाचिन (1987), ऑपरेशन पवन (1987-90) और कारगिल युद्ध के परमवीर चक्र विजेताओं की शौर्य गाथाएं शामिल है। लेखिका ने तत्कालीन परिस्थितियों एवं युद्ध के कारणों को भी संक्षेप में बताया है।

किताब में शामिल सेना के कारनामों का लेखिका ने सजीव चित्रण किया है। लेफ्टिनेंट जनरल, कर्नल, और युद्ध में साथ रहे साथियों ने लेखिका को आंखों देखा हाल सुनाया और उन्होंने ज्यों का त्यों उसे उतार दिया। रचना बिष्ट खुद लेफ्टिनेंट कर्नल की पत्नी हैं। इस कारण उन्हें युद्ध का सजीव विवरण प्रस्तुत करने में आसानी हुई है। ‘‘उन्हें उस वक्त तक नहीं पता था कि उनके शरीर में 14 गोलियां लगी हैं...हड्डियां मांस छीलकर बाहर की तरफ निकल आई थीं।...उनके पांव पर एक हथगोला फट गया था...एक हथगोला उनके चेहरे पर फटा था जिससे उनका माथा भारी जख्मी हो गया था।’’ 

जब बर्फ से ढंकी चोटियों, शून्य से कई डिग्री नीचे के तापमान और पहाड़ की चोटी पर बैठे दुश्मनों से युद्ध लड़ा जाता है तो सेना को कई मोर्चों पर जंग करनी पड़ती है। ठंड, बर्फबारी, बारिश, कठिन चढ़ाई और ऊपर की ओर से चलाई जा रही दुश्मन की गोलियों से भी लड़ना पड़ता है। उससे भी पहले भूख, थकान, नींद और रास्ते में लगी चोटों के दर्द पर विजय प्राप्त करनी होती है। पीने के लिए पानी की जगह बर्फ को चूसना पड़ता है। बारिश से गीली हुई जुराबों को निचोड़कर पहन लिया जाता है और पीठ पर गोला, बारूद लाद कर कठिन चढ़ाई कई-कई रात चढ़ी जाती है।

इन मुश्किल हालातों पर विजय और दुश्मनों को खदेड़ने, जीतने के कारनामों को लेखिका ने पूरी संवेदना एवं मार्मिक तरीके से लिखा है। युद्धों का इतनी सुरुचिपूर्ण तरीके से वर्णन कम ही पढ़ने को मिलता है। 

‘‘युद्ध भयानक होता है। ये सांस लेते, जिंदा, बहादुर नौजवानों को खून से सने मांस और हड्डियों के ढांचे में बदल देता है।...उनकी खाली मरी हुई आंखें उस दर्द की गवाह होती हैं जिनसे उन्हें गुजरना पड़ा है। यह सिपाहियों को, जिन्हें भावहीन किलिंग मशीन बनने का प्रशिक्षण मिला होता है, भावुक मलबे में बदल देता है।’’
अत्यंत सुगठित भाषा  एवं शैली में प्रभावकारी शब्दों के साथ सेना के नायकों को समर्पित एक मुकम्मल किताब लिखी गई है। किताब देर तक पाठकों को बांधे रखती है और इसका असर पढ़ने के बाद भी कायम रहता है।

किताब - शूरवीर-परमवीर चक्र विजेताओं की कहानियां
लेखिका - रचना बिष्ट रावत
प्रकाशक - प्रभात प्रकाशन 
कीमत - 500/-

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