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इतिहास में उपेक्षित नायक की शौर्यगाथा

भारतीय स्वाधीनता संघर्ष का इतिहास बहुत गौरवपूर्ण है। अंग्रेजी शासन से संघर्ष की यह महागाथा 1857 के ‘प्रथम स्वाधीनता संग्राम’ से भी पहले से चली आ रही है। हालांकि अंग्रेजों के खिलाफ ये...

इतिहास में उपेक्षित नायक की शौर्यगाथा
नीरज भूषणMon, 04 May 2020 02:52 PM
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भारतीय स्वाधीनता संघर्ष का इतिहास बहुत गौरवपूर्ण है। अंग्रेजी शासन से संघर्ष की यह महागाथा 1857 के ‘प्रथम स्वाधीनता संग्राम’ से भी पहले से चली आ रही है। हालांकि अंग्रेजों के खिलाफ ये संघर्ष बहुत सुनियोजित व व्यवस्थित नहीं थे, लिहाजा कोई इनमें ठोस सफलता नहीं मिली। फिर भी अपने-अपने इलाकों में अंग्रेजों से लोहा लेने वाले बलिदानियों की कहानियां निस्संदेह आगे के सफल संघर्षों की प्रेरणा बनीं। 
इन संघर्षों के बहुतेरे नायकों का इतिहास में कोई खास उल्लेख नहीं मिलता। उनके बारे में बहुत थोड़ी-सी जानकारी मिलती है। बस संदर्भ के तौर पर। दुर्भाग्य से, जिन क्षेत्रों में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाइयां लड़ीं, वहां के क्षेत्रीय इतिहास में भी उनके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती। लेकिन भले ही इतिहास में वे उपेक्षित रहे, लोक में उनकी गाथाएं किंवदंतियों के रूप में जीवित रहीं। बुंदेलखंड के वीर योद्धा मधुकर शाह भी ऐसे ही एक नायक थे, जिन्होंने 1857 के स्वाधीनता संग्राम से डेढ़ दशक पहले 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था। बाद में अंग्रेजों ने चाल चलकर मधुकर शाह को उनके करीबियों द्वारा पकड़वा लिया और सागर की जनता के सामने फांसी दे दी।  
प्रख्यात रंगकर्मी और फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव का नाटक ‘मधुकर शाह : बुंदेलखंड का नायक’ बुंदेला विद्रोह के नायक इन्हीं मधुकर शाह की वीरगाथा को बयान करता है। यह कोई ऐतिहासिक नाटक नहीं है, बल्कि इतिहास में उपलब्ध थोड़े-से तथ्यों को आधार बनाकर लिखा गया है। ऐसे में इसमें बहुत ज्यादा ऐतिहासिकता की खोज करना या इसे ऐतिहासिक समझना इसके साथ अन्याय होगा। लेखक ने इस नाटक के जरिये अपनी जन्मभूमि बुंदेलखंड के एक नायक को श्रद्धांजलि दी है। गोविंद नामदेव लिखते हैं-‘...इस अदम्य साहसी चरित्र को हमारे बुंदेलखंड के इतिहास में भी समुचित स्थान न मिलना मेरे हृदय को व्यथित कर गया। उस व्यथा से मुक्ति का ही    एक लघु प्रयास है-प्रेरणा देने वाली उनकी यह शौर्य गाथा।’
यह नाटक पूरी तरह मंचन को ही ध्यान में रखकर लिखा गया है। इस नाटक की खासियत है इसकी भाषा। इसमें सूत्रधार नट और नटी की मानक हिंदी के साथ अंग्रेजों की हिंदी और ठेठ बुंदेली भाषा का सुंदर संयोजन है। बुंदेलखंड के लोकगीतों का इस्तेमाल इस नाटक को और विशिष्ट बनाता है। नाटक मधुकर शाह की वीरता को तो बयान करता ही है, तत्कालीन अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों के शोषण का भी दारुण चित्र पेश करता है। इसके साथ ही बुंदेलखंड की लोक-संस्कृति की मनोहर झलक भी इसमें आप पाएंगे।

मधुकर शाह (नाटक) 
लेखक : गोविंद नामदेव
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, 
नई दिल्ली-110002; मूल्य : 295 रुपये
 

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