फोटो गैलरी

Hindi News कादम्बिनीवह अपने आपको चिट्ठियां लिखता है

वह अपने आपको चिट्ठियां लिखता है

खबर है कि भारत के एक राज्य में एक बड़े पुलिस अफसर को उसके वर्तमान विभाग के साथ एक और डिपार्टमेंट का कार्यभार भी सौंप दिया गया है। दोनों विभागों के कामकाज के दौरान एक अजीब सिचुएशन पैदा हो गई है। यह...

वह अपने आपको चिट्ठियां लिखता है
सत सोनीSat, 04 Apr 2020 06:19 PM
ऐप पर पढ़ें

खबर है कि भारत के एक राज्य में एक बड़े पुलिस अफसर को उसके वर्तमान विभाग के साथ एक और डिपार्टमेंट का कार्यभार भी सौंप दिया गया है। दोनों विभागों के कामकाज के दौरान एक अजीब सिचुएशन पैदा हो गई है। यह अफसर सरकार के दूसरे विभागों से पत्र-व्यवहार तो करता ही है, कभी-कभी अपने आपको भी चिट्ठियां लिखता है। हो यह रहा है कि वह पुलिस के दूसरे डिपार्टमेंट को पत्र लिखता है, तो वह खत, दूसरे विभाग के भी बॉस के नाते, इसी आला अफसर के पास पहुंच जाता है और उसका जवाब भी वह खुद ही देता है।
ये दो विभाग कौन-से हैं, खबर में यह नहीं बताया गया है (राज्य और अफसर का नाम न देने में ही मेरी भलाई है। फिलहाल यहां हम उन्हें श्री राय कहेंगे)।  सूत्रों का कहना है कि जिस दूसरे डिपार्टमेंट का इंचार्ज भी उन्हें बनाया गया है, वह है ट्रैफिक पुलिस। (यह जान लें कि मीडिया में सूत्र या सूत्रों का मतलब होता है लिखने या बोलनेवाले का खयाल, अनुमान या अफवाह)।
श्री राय ने हाल ही में अपने ट्रैफिक डिपार्टमेंट को लिखा - ‘प्रिय महोदय, गृह राज्यमंत्री ने पिछले सोमवार को विधानसभा में बताया कि ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के 4019 मामले राज्य की विभिन्न अदालतों में विचाराधीन हैं। मंत्री महोदय के इस वक्तव्य के बाद एक नागरिक ने, सूचना अधिकार  कानून के तहत, इसका कारण जानना चाहा है। यह भी पूछा है कि पिछले एक साल में क्या ऐसे चालान भी किए गए जिनके बारे में अदालत ने नाखुशी जाहिर की हो?’
ट्रैफिक पुलिस को भेजी गई यह चिट्ठी श्री राय के पास ही आनी थी, सो  घूम-फिरकर उन्हीं के पास लौट आई। दो दिन के बाद उन्होंने जवाब दिया-‘प्रिय महोदय, आपके पत्र के उत्तर में हम सूचित करना चाहेंगे कि हमारे रिकॉर्ड के अनुसार, ऐसे अनेक लोग थे जिन्होंने चालान कट जाने के बाद जुर्माना भरने से इनकार कर दिया। इस पर उन्हें जेल भेज दिया गया। बाद में हमें पता चला कि रोजमर्रा की  परेशानियों और झंझटों के चलते वे जेल ही जाना चाहते थे जहां न रोटी-कपड़े र्की ंचता है और न ही छत की। इन लोगों में एक महिला भी थी जो आए दिन की घरेलू खिचखिच से तंग आ चुकी थी और कुछ दिनों के लिए अमन-चैन से रहना चाहती थी।’
श्री राय ने आगे लिखा-‘हमारा सुझाव और सलाह है कि आरटीआई की इंक्वायरी के जवाब में इसका जिक्र न किया जाए। इससे लोगों को आइडिया  मिल सकता है। कहीं लोग ट्रैफिक नियमों का जान-बूझकर उल्लंघन करना शुरू न कर दें।’
‘हमारे रिकॉर्ड के मुताबिक, दो मामलों में अदालत ने पुलिस को हल्की-सी डांट लगाई थी। आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में इनका भी उल्लेख करना उचित नहीं होगा। इनके बजाय आप कुछ भी लिख सकते हैं। ये दो केस कुछ इस तरह से हैं-आज से दसेक महीने पहले ट्रैफिक टीम ने सुबह-सवेरे एक कार को रोका। दस-बारह किलोमीटर की रफ्तार से चली आ रही बाबा आदम के जमाने की इस खटारा गाड़ी के चालक (धन्नूमल नाम था उसका) के पास न तो ड्रार्इंवग लाइसेंस था और न ही गाड़ी के अन्य कागजात। जुर्माना भरने के पैसे भी नहीं थे। उसके गिड़गिड़ाने पर इंस्पेक्टर ने नाम और एड्रेस का सबूत लेकर उसे अदालत में हाजिर होने की तारीख दे दी। मगर वह कोर्ट में नहीं पहुंचा। पुलिस उसके घर पर पहुंची, तो वहां एक नया ही किराएदार मिला। धन्नूमल  चुस्त-चालाक निकला। कुछ दिनों के  बाद  उसकी कार एक कबाड़ी की दुकान के बाहर खड़ी मिली। धन्नूमल शायद जानता था कि कोर्ट में उसे कम-से-कम 12,000 रु. जुर्माना होगा, जेल भी हो सकती है। सोच-समझकर कार को पांच हजार रुपए में बेचकर वह शहर छोड़कर चला गया।’
‘दूसरा एक एक्सीडेंट केस है। एक लेडी छोटी कार में चली जा रही थी, पीछे से आ रही भारी-भरकम एसयूवी किस्म की गाड़ी उससे जा टकराई। पीछे के चालक ने ऐन वक्त पर ब्रेक लगाई थी, इसलिए छोटी कार को बड़ा नुकसान नहीं हुआ। लेडी ड्राइवर भी बाल-बाल बच गई। पुलिस जब मौके पर पहुंची, तो  भारी वाहन  के ड्राइवर ने पुलिस से कहा, ‘इसमें मेरा कोई कुसूर नहीं है। दरअसल, श्रीमतीजी ने चौराहे से पहले दाईं तरफ मुड़ने का सिग्नल दिया और दाईं ओर ही मुड़ गईं।’ इस पर भी पुलिस ने भारी गाड़ी का चालान काट दिया, हालांकि दोनों ने कहा था कि, ‘हम पति-पत्नी घर पहुंचकर मामला आपस में ही निपटा लेंगे।’ (कादम्बिनी, जुलाई, 2014)
 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें