Hindi Newsझारखंड न्यूज़Salute to martyrdom: Martyr Kundan could not even see the face of Dudhunmi daughter

शहादत को सलाम : दुधमुंही बेटी का चेहरा भी नहीं देख पाए शहीद कुंदन

चीनी सैनिकों से लद्दाख में मुकाबला करते हुए शहीद हुए साहिबगंज के लाल कुंदन कुमार ओझा इसी साल जनवरी में अपने गांव डिहारी आए थे। गांव में कुछ दिन रहने के बाद वे दो फरवरी को वापस ड्यूटी पर लेह चले गए...

शहादत को सलाम : दुधमुंही बेटी का चेहरा भी नहीं देख पाए शहीद कुंदन
rupesh साहिबगंज ।  मिथिलेश सिंह, Wed, 17 June 2020 01:10 AM
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चीनी सैनिकों से लद्दाख में मुकाबला करते हुए शहीद हुए साहिबगंज के लाल कुंदन कुमार ओझा इसी साल जनवरी में अपने गांव डिहारी आए थे। गांव में कुछ दिन रहने के बाद वे दो फरवरी को वापस ड्यूटी पर लेह चले गए थे। गांव में उनके दोस्तों ने बताया कि कुंदन काफी मिलनसार व हंसमुख स्वभाव का लड़का था। वे जब भी गांव आते, हमलोगों के साथ खूब मस्ती करते। 

इस बार ड्यूटी पर वापस जाने के क्रम में उसने दो-तीन महीने बाद दोबारा गांव लौटने की बात कही थी। इसी दौरान देश में लॉकडाउन लग जाने से वे घर नहीं नहीं आ सके। इस बीच मंगलवार को  उसके शहीद होने की खबर मिलने पर पहले तो यकीन ही नहीं हुआ है। साहिबगंज के लाल कुंदन के शहीद होने से हर कोई हतप्रभ है। 

पुत्री के जन्म लेने पर अंतिम बार हुई थी बात: लद्दाख में मोबाइल का नेटवर्क काम नहीं करने के चलते उसका मोबाइल सेना के हेडक्वार्टर में था। पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि लद्दाख में तैनात होने के बाद से 10-12 दिन के अंतराल पर कुंदन सेना के सेटेलाइट फोन से अपने परिवार वालों के साथ बात कर लिया करता था। परिवारजनों का कहना है कि बेटी के जन्म के दिन कुंदन से अंतिम बार बात हुई थी। उस दिन उसने कहा था कि लॉकडाउन व चीन सीमा पर विवाद कुछ थमने के बाद वह बेटी को देखने घर आएगा। हालांकि उसकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।

एनसीसी में उम्दा प्रदर्शन से सेना हुए थे बहाल : साहिबगंज कॉलेज से कुंदन कुमार ने ओझा इंटर व बीए किया था। इसी कॉलेज में कुंदन सत्र 2009-11 में एनसीसी का कैडेट भी रहा। उनके साथ एनसीसी में रहने विद्यार्थियों ने बताया कि बतौर कैडेट उसका प्रदर्शन बहुत ही अच्छा रहने से एनसीसी से उसे बी सर्टिफिकेट मिला था। इसी सर्टिफिकेट के कारण उसे सेना में बहाल होने में काफी सहायता मिली। ग्रामीणों के मुताबिक कटिहार में आयोजित सेना भत्र्ती रैली में उसका सेलेक्शन उसके सौम्य व कुशल व्यवहार को देखकर भर्ती अफसरों ने कर लिया था। लेह में उसकी पदस्थापना करीब तीन साल पहले हुई थी। 

वर्ष 2018 में हुई थी शादी:  सेना में योगदान के करीब छह साल बाद कुंदन का विवाह बिहार के सुल्तानगंज के पास स्थित मीरहट्टी गांव की नेहा के साथ वर्ष 2018 में हुई थी। पत्नी अभी डिहारी में ही है। करीब 16-17 दिन पहले ही पुत्री का जन्म हुआ है।

पुत्री के जन्म से काफी खुश थे कुंदन:  करीब 16-17 दिन पहले ही कुंदन की पत्नी ने साहिबगंज सदर अस्पताल में बच्ची को जन्म दिया है। उसकी सूचना कुंदन को पुत्री के जन्म के दिन ही मिल गई थी। पहली संतान पुत्री रूप में पाकर कुंदन काफी प्रसन्न था। वे पुत्री को देखने के लिए बेताब था। इसके लिए वे जल्द घर लौटना चाहते थे।
एनसीसी कैडेटों को है शहादत पर गर्व:  कुंदन की शहादत से डिहारी गांव में हरकोई गमगीन हैं। ग्रामीण, मित्र के अलावा सहपाठी सभी कुंदन के शहीद होने पर काफी गम में हैं । हालांकि उन्हें भारत माता की रक्षा के लिए कुंदन के वीर गति को प्राप्त होने पर गर्व भी हो रहा है। दोस्तों का कहना है कि कुंदन देश के लिए शहीद हो गया। साहिबगंज कॉलेज के एनसीसी के सीनियर व जूनियर कैडेटों ने उसकी शहादत को नमन करते हुए कुंदन के जज्बे को सलाम किया है। 

शहीद हुए कुंदन ओझा की ससुराल मिरहट्टी में मातम : सेना के जवान कुंदन ओझा की ससुराल मिरहट्टी गांव में भी मातम है। जवान के ससुर संजय दूबे की दूसरी पुत्री नेहा ओझा के साथ करीब ढाई वर्ष पहले कुंदन की शादी हुई थी। कुंदन की पत्नी अपने ससुराल में है और 21 दिन पहले उसने एक पुत्री को जन्म दिया है। परिजनों ने बताया कि शहीद जवान के ससुर दिल्ली में नौकरी में हैं। उनकी सास घर पर रह रही हैं। दामाद के शहीद होने की सूचना मिलते ही ससुराल में कोहराम मच गया।

 परिवार के चाचा विवेक कुमार दुबे ने बताया कि नेहा तीन बहनें हैं। बड़ी बहन निधि और छोटी निशा है। दो भाई हेमंत और लक्की है। घर पर जवान की सास पुतुल देवी एवं दादा सुरेन्द्र दूबे व दादी मनोरमा देवी हैं। शहीद का पार्थिव शरीर पहुंचने पर सभी सदस्य डिहारी जाएंगे। पड़ोसी ने बताया कि एक वर्ष पहले वे ससुराल आए थे। काफी मिलनसार प्रवृत्ति के थे। जब भी आते थे, सभी से मिलते-जुलते थे।  

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