आगामी 50 वर्षों को दिमाग में रखकर जनसंख्या नीति बने और सब पर लागू हो: भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की समीक्षा करने और उसका पुन: सूत्रीकरण करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, आगामी 50 वर्षों को दिमाग में...
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की समीक्षा करने और उसका पुन: सूत्रीकरण करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, आगामी 50 वर्षों को दिमाग में रखकर जनसंख्या संबंधी एक नीति बनाई जानी चाहिए और यह सभी पर एक समान रूप से लागू होनी चाहिए, क्योंकि जनसंख्या समस्या बन सकती है और उसमें असंतुलन भी समस्या बन सकता है। भागवत ने विजयादशमी पर वार्षिक संबोधन के दौरान आरएसएस कार्यकर्ताओं से कहा कि हमारा युवाओं का देश है, जिसमें 56 से 57 प्रतिशत आबादी युवा है, जो 30 साल बाद बुजुर्ग हो जाएगी और उसकी देखभाल के लिए ढेर सारे लोगों की जरूरत होगी।
घुसपैठ रोकने के लिए जरूरी
आरएसएस प्रमुख ने भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में धार्मिक असंतुलन को देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा बताया। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) धर्मांतरण और घुसपैठ रोकने के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा कि विविध संप्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर है। विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की आबादी के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है। भागवत ने कहा, वर्ष 1951 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में धार्मिक अंतर के कारण देश की जनसंख्या में जहां भारत में उत्पन्न मत पंथों के अनुयायियों का अनुपात घटा है, वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात बढ़ा है। उन्होंने कहा, बाहर से आए सभी सम्प्रदायों को माननेवालों सहित सभी को यह समझना होगा कि हमारी आध्यात्मिक मान्यता व पूजा की पद्धति की विशिष्टता के अलावा हम सभी एक सनातन राष्ट्र, एक समाज, एक संस्कृति में पले-बढ़े समान हिन्दू पूर्वजों के ही वंशज हैं।
मादक पदार्थों के इस्तेमाल पर जताई चिंता
सरसंघचालक मोहन भागवत ने ओटीटी मंचों पर दिखाई जा रही ‘अनियमित’ विषय वस्तु, सभी देशों को अस्थिर करने की क्षमता रखने वाली ‘अनियंत्रित’ बिटकॉइन मुद्रा और समाज के सभी वर्गों में मादक पदार्थों के बढ़ते इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त की।
भागवत ने देश में कुछ मंदिरों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसी संस्थाओं के संचालन के अधिकार हिंदुओं को सौंपे जाने चाहिए। इनकी संपत्ति का उपयोग केवल हिंदू समुदाय के कल्याणार्थ किया जाना चाहिए। अपने संबोधन में भागवत ने कहा कि दक्षिण भारत के मंदिरों पर पूरी तरह राज्य सरकार का नियंत्रण है।