यू- ट्यूबर गणित शिक्षक मनोज कुमार सिंह को राष्ट्रपति पदक, नक्सल इलाके में पेड़ के नीचे पढ़ाया
सिदगोड़ा हिन्दुस्तान मित्र मंडल के गणित के शिक्षक मनोज कुमार सिंह (49) को शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए राष्ट्रपति पदक दिया जाएगा। झारखंड से उनके नाम का चयन किया गया है। मनोज कुमार सिंह...
सिदगोड़ा हिन्दुस्तान मित्र मंडल के गणित के शिक्षक मनोज कुमार सिंह (49) को शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर काम करने के लिए राष्ट्रपति पदक दिया जाएगा। झारखंड से उनके नाम का चयन किया गया है। मनोज कुमार सिंह आदित्यपुर सहारा गार्डन इंद्रलोक अपार्टमेंट के रहने वाले हैं, जबकि मूल रूप से बिहार के गुरुआ थाना क्षेत्र के बिलौटी गांव के निवासी हैं। जब उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने का ऐलान हुआ तो वे भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि काश आज उनके माता-पिता जिंदा होते। चार महीनों के अंतराल में ही मनोज सिंह ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया। पिता का नाम स्व. इंद्रेश सिंह, जबकि मां का नाम शांति देवी है। मनोज के अनुसार सबसे ज्यादा खुशी उनके माता-पिता को होती कि उनके बेटे को यह सम्मान मिला। जब पुरस्कार के लिए नामित किया गया, तब से लेकर अब तक उनके मन में यह गम सालता था कि काश आज दोनों जिंदा होते।
पिता थे टाटा स्टील शीट मिल में:
उनके पिता टाटा स्टील की शीट मिल में थे, जहां से रिटायर हुए। वे बिहार के गया से जमशेदपुर आए थे। मनोज कुमार सिंह की प्राथमिक और हाईस्कूल की शिक्षा बिष्टूपुर स्थित केएमपीएम स्कूल में हुई। प्लस टू करने के बाद वर्ष 1994 में शिक्षा विभाग की वैकेंसी निकली और उसमें कामयाब होकर शिक्षक बने, लेकिन अपनी पढ़ाई जारी रखी। उनकी पत्नी का नाम सुनीता सिंह, बेटा अंशु कमार और बेटी पिंकी कुमारी है।
नक्सल इलाके में पेड़ के नीचे पढ़ाया:
उनकी पहली पदस्थापना नक्सल प्रभावित बोड़ाम के जगमोहनपुर प्राथमिक विद्यालय में हुई। वहां पेड़ के नीचे पढ़ाई होती थी। नक्सलियों का आना-जाना लगा रहता था, लेकिन वे डिस्टर्ब नहीं करते थे। उसके बाद उनका तबादला पोटका के नाचोसाई मध्य विद्यालय में कर दिया गया। वहां पर वर्ष 2000 तक रहे और शिक्षण कार्य पूरा किया। उसके बाद उन्हें हिन्दुस्तान मित्रमंडल स्कूल में भेजा गया, जहां कक्षा एक से आठवीं तक की पढ़ाई होती है।
वीडियो के हैं 1400 सब्सक्राइबर:
मनोज सिंह बताते हैं कि उनको अवार्ड मिलने के पीछे जो वास्तविक कारण है, वह उनकी पढ़ाने की प्रक्रिया है। नाचोसाई स्कूल में उन्होंने गणित को प्रायोगिक रूप में पढ़ाया। क्लासरूम के ब्लैक बोर्ड पर परिमाप और क्षेत्रफल बताने के बजाए वे छात्रों को लेकर खेत और मैदान में जाते थे। वहीं परिमाप और क्षेत्रफल का प्रश्न माप के आधार पर हल करते थे। साथ ही वे इस पूरी प्रक्रिया की मोबाइल से वीडियो रिकॉर्डिंग भी करवाते थे। इसका मकसद था कि बार-बार छात्रों को बाहर नहीं ले जाना पड़े। इस बीच मोबाइल में डाटा भरने लगा, तब किसी ने बताया कि आप यू-ट्यूब चैनल खोल दीजिए। वर्ष 2014 में क्रियेटिव लर्निंग विथ मनोज नामक चैनल शुरू किया। इसमें अभी 150 वीडियो और 1400 सब्सक्राइबर हैं।
उनके वीडियो के व्यूवर्स लाखों में हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना काल में अपने क्लासरूम को ही डिजिटल रूप में तब्दील किया। इसमें प्रधानाध्यापक ने वाईफाई उपलब्ध करा रास्ता सहज कर दिया। वहां से बच्चों को जूम एप में पढ़ाई कराते हैं। जिनके पास मोबाइल नहीं है, उन्हें अपने अन्य शिक्षक साथियों के साथ गणित के हल की हार्ड कॉपी उपलब्ध कराते हैं। उनकी शैक्षणिक प्रक्रिया को गणित के राज्य स्तरीय कंटेट भी बनवाने के लिए उपयोग किया गया। उनके वीडियो के लिंक को झारखंड सरकार के शिक्षा विभाग के जेसीइआरटी डीजी स्कूल एप के माध्यम से पूरे झारखंड के सरकारी विद्यालयों में नामांकित बच्चों तक पहुचाया जा रहा है। वे जेसीइआरटी के ई-कंटेन्ट डेवलपमेंट टीम के सदस्य भी हैं। गणित के पुस्तक लिखने वाली टीम में वे सदस्य हैं।