अनगड़ा में खनन लीज आवंटित करने में खनन सचिव पूजा सिंघल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। अनगड़ा में खनन पट्टा 88 डिसमिल में दी गई है। यह जानकारी ईडी ने हाईकोर्ट में गुरुवार को सीएम और उनके करीबियों को खनन लीज मामले में दायर शपथपत्र में दी है। ईडी ने कहा है कि पूजा सिंघल मनी लाउंड्रिंग से जुड़े मामलों में भी शामिल रही हैं। इसके साक्ष्य भी जांच एजेंसी को मिले हैं। इस पर चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत ने सभी प्रतिवादियों को 23 मई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
ईडी के सहायक निदेशक विनोद कुमार ने शपथपत्र दाखिल करते हुए कहा कि खूंटी में हुए मनरेगा घोटाले के कुछ मामलों की जांच की गयी है। यह मामला पूजा सिंघल के खूंटी डीसी रहने के दौरान का है। इस मामले में 16 प्राथमिकी दर्ज की गयी है। इसी मामले में हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका अरुण कुमार दुबे ने दायर की है। याचिका में भी पूजा सिंघल के खिलाफ जांच का आग्रह ईडी और सीबीआई से किया गया है।
कुछ शेल कंपनियों की भूमिका भी सामने आयी हैं
ईडी ने कहा है कि जांच में कुछ शेल कंपनियों की भूमिका भी सामने आयी है। ये कंपनियां झारखंड से बाहर की हैं। शेल कंपनियों की जांच को लेकर दायर जनहित याचिका में इनका नाम लिया गया है। शपथपत्र में ईडी ने कोर्ट से आग्रह किया है कि अदालत में जो प्रारंभिक जांच रिपोर्ट और दस्तावेज सौंपे गए हैं, वह झारखंड पुलिस और झारखंड सरकार के नियंत्रण वाले किसी प्राधिकार को नहीं सौंपे जाएं। अभी प्रारंभिक जानकारी दी गयी है। जरूरत पड़ने पर ईडी इस मामले में पूरक शपथ पत्र दाखिल करेगी।
सरकार ने किया विरोध, बिना दस्तावेज कैसे देंगे जवाब
सरकार की ओर से पक्ष रख रहे वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि ईडी जब तक दस्तावेज नहीं देगी, तब तक कैसे जवाब दाखिल किया जाएगा। उन्होंने अदालत से कहा कि ईडी ने जो सीलबंद रिपोर्ट दी है, उसे सभी पक्षों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। राज्य सरकार को ईडी का शपथ पत्र उपलब्ध नहीं कराया गया है, ऐसी स्थिति में वह अदालत की मदद नहीं कर पाएंगे। प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने के लिए रिपोर्ट की कॉपी दी जाए।
चार्जशीट तक रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जा सकता
सुनवाई के दौरान ईडी का पक्ष रख रहे वरीय अधिवक्ता तुषार मेहता ने पी. चिदंबरम केस का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में चार्जशीट दाखिल होने तक अदालत के सिवा दूसरी किसी एजेंसी को दस्तावेज नहीं दिया जा सकता है। सीलबंद रिपोर्ट मंगाने की परंपरा रही है। सीलबंद रिपोर्ट मंगाकर कोर्ट यह देखना चाहती है कि दस्तावेज सही है या नहीं। साथ ही इनके आधार पर आगे की जांच हो सकती है या नहीं।