झारखंड के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों से अब शिक्षक सीधे जुड़ सकेंगे, तो ये है तैयारी
झारखंड के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों से अब शिक्षक सीधे जुड़ सकेंगे। शिक्षक अब विषयवार छात्र-छात्राओं का व्हाट्सएप ग्रुप बनाएंगे और संबंधित विषयों में होने वाली समस्याओं का समाधान करेंगे। स्कूली...
झारखंड के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों से अब शिक्षक सीधे जुड़ सकेंगे। शिक्षक अब विषयवार छात्र-छात्राओं का व्हाट्सएप ग्रुप बनाएंगे और संबंधित विषयों में होने वाली समस्याओं का समाधान करेंगे। स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने इसकी तैयारी कर ली है।
शिक्षक छठी से बारहवीं तक के छात्र-छात्राओं का विषयवार व्हाट्सएप ग्रुप तैयार करेंगे। हर दिन छात्र-छात्रा डीजी-साथ के जरिए भेजे जाने वाले कंटेंट या फिर पाठ्यपुस्तक में हो रही समस्या से संबंधित प्रश्न इस ग्रुप में शिक्षक से पूछ सकेंगे। शिक्षक इसी ग्रुप में संबंधित प्रश्न को हल कर छात्र छात्राओं को समझाएंगे।
जिन छात्र-छात्राओं के पास एंड्राइड मोबाइल नहीं है और उन्हें डिजिटल कंटेंट नहीं मिल पा रहा है वैसे छात्र-छात्रा अपनी क्लास के दूसरे छात्रों के माध्यम से या फिर स्कूल के ड्रॉप बॉक्स में प्रश्नों को डालकर शिक्षकों से उत्तर प्राप्त कर सकेंगे। वर्तमान में हर क्लास का एक व्हाट्सएप ग्रुप है, जिसमें सभी विषयों के कंटेंट भेजे जाते हैं। छात्र छात्राओं के लिए अलग से प्रश्न पूछने के लिए फिलहाल व्यवस्था नहीं है। कंटेंट भेजने के बाद शिक्षक अलग से किन्ही 10 छात्रों को फोन कर उसके बारे में पूछते हैं। हर क्लास के हर विषय का व्हाट्सएप ग्रुप अलग अलग होने से छात्रों के विषय वार समस्याओं का समाधान हो सकेगा।
जिन्हें मिल रहा है कंटेंट, उनमें भी आधे नहीं देख रहे हैं : राज्य सरकार 46 लाख छात्र छात्राओं में से करीब 12 लाख छात्र छात्राओं को डिजिटल कंटेंट उपलब्ध करा रही है। इनमें से करीब छह लाख छात्र-छात्रा भेजे जा रहे कंटेंट और वीडियो को भी पूरा नहीं देख पा रहे हैं।
लॉकडाउन की शुरुआत और व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से भेजे जाने वाले कंटेंट छात्र-छात्रा नियमित रूप से देख पाते थे। अब व्यूवरशिप कम होने से शिक्षा विभाग ने विषयवार बच्चों से शिक्षकों को जोड़ने का निर्णय लिया है।
राज्य परियोजना निदेशक, झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद एसके चौरसिया ने कहा कि बच्चों और शिक्षकों को कनेक्ट करने के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जा रही है। डीजी-साथ के जरिए कंटेंट तो उपलब्ध कराए जा रहे हैं, लेकिन छात्र छात्राओं को कुछ पूछने का मौका नहीं मिल पा रहा है, ना ही उनकी समस्याओं का समाधान हो पा रहा है।