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रांची: यात्रियों के खाने के लिए मुसीबत बनी भारतीय रेल की ये सेवा

राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेन भी में यात्रियों के लिए बेबसी का सबब बन गया है रेलवे का खाना। नई खान-पान नीति लागू होने के बावजूद व्यवस्था में जरा भी बदलाव नहीं आया है। राजधानी एक्सप्रेस में सफर के दौरान...

रांची: यात्रियों के खाने के लिए मुसीबत बनी भारतीय रेल की ये सेवा
संवाददाता,रांचीMon, 20 Nov 2017 06:55 AM
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राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेन भी में यात्रियों के लिए बेबसी का सबब बन गया है रेलवे का खाना। नई खान-पान नीति लागू होने के बावजूद व्यवस्था में जरा भी बदलाव नहीं आया है। राजधानी एक्सप्रेस में सफर के दौरान नो-फूड ऑप्शन वाले यात्रियों को पानी तक के लिए नहीं पूछा जाता। सफर में उन्हें किसी भी तरह की सेवा नहीं दी जाती। इस तरह यात्री रिजर्वेशन के समय फूड ऑप्शन लेने को मजबूर किए जा रहे हैं। 

पैंट्रीकार कर्मियों की इस मनमानी के कारण 12 नवंबर को दिल्ली जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस में नो-फूड ऑप्शन वाला एक भी यात्री नहीं था। हालांकि, जब राजधानी एक्सप्रेस में खाना न लेने का विकल्प लागू किया गया था बहुत से यात्रियों ने इस पर खुशी जताई थी। इस विकल्प को चुनने वाले यात्रियों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा था। रेल अधिकारियों के अनुसार शुरुआती दौर में हर दिन करीब 70 से 80 यात्री नो-फूड ऑप्शन वाले होते थे। 

राजधानी एक्सप्रेस में मिलने वाले खाने की गुणवत्ता में लगातार शिकायतें और इसको लेकर आये दिन होने वाले हंगामों के कारण रेलवे ने नो फूड का विकल्प शुरू किया। लेकिन पैंट्रीकार कर्मियों और खान-पान के बड़े वेंडरों (बड़े ठेकेदारों) की मिलीभगत से नो-फूड लेनेवाले यात्रियों को परेशान किया जा रहा है।

बदहाल है बेस किचन  
राजधानी के बेस किचन की हालत भी खराब है। खान-पान का जिम्मा IRCTC के हाथों में आने के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं दिख रहा। तंग बेस किचन में राजधानी एक्सप्रेस के यात्रियों का खान-पान तैयार किया जाता है। बेस किचन में अभी भी नंगे हाथों से खाना बनाया जाता है। रसोई के साथ बदबूदार नाली और वहां पसरी गंदगी किसी का भी मन खिन्न कर सकती है।

बदहाल पैंट्रीकार
राजधानी एक्सप्रेस में पैंट्रीकार की हालत भी नहीं सुधरी। इसमें चूहों ने बसेरा बना लिया है। पैंट्रीकार के ब्वायलर अक्सर खराब रहते हैं। रांची से प्रस्थान करने से ठीक पहले इसे चालू किया जाता है। इससे पानी देर से गर्म होता है। इसमें पानी गर्म करने के तीन ब्वॉयलर हैं। खराब ब्वॉयलर से पैंट्रीकार की सुविधाएं प्रभावित होती हैं। शिकायत होने पर भी कार्रवाई देर से होती है।

खाना बनाने के मानकों का पालन नहीं
डीआरएम ने 27 जुलाई को राजधानी के बेस किचन का निरीक्षण किया था। वहां की बदहाल व्यवस्था पर उन्होंने नाराजगी भी जताई थी। किचन के बगल में शौचालय देखकर वह धुब्ध हुए। उन्होंने बेस किचन में खाना बनाने में इस्तेमाल किए जा रहे पानी और कर्मचारियों के काम करने के तौर-तरीके देखकर काफी फटकार लगाई थी। इसके बाद लगातार 15 अगस्त तक रेल अधिकारियों ने बेस किचन का निरीक्षण किया। इसके बाद निरीक्षण का काम सुस्त पड़ गया और हालात फिर जस के तस हो गए।

खाना बनाने, परोसने और धोने का काम एक ही जगह
यहीं हाल स्टेशन के भोजनालय और हटिया स्टेशन के रेलवे कैंटीन का भी है। खराब खाने को लेकर कैंटीन की कई बार जांच हो चुकी है। हटिया में कैंटीन का किचन काफी तंग कमरे में है। यहां एक ही कमरे में खाना बनाने से लेकर बर्तन साफ-सफाई और खाना परोसने तक का काम होता है। कैंटीन संचालक रामजी तिवारी कहते हैं किचन को बड़ा करने के लिए कई बार गुजारिश की गई लेकिन हमेशा इसे अनसुना कर दिया जाता है।

ये हैं बेस किचन के मानक

> स्टेशन से एक किमी के कम दायरे में हो
> बेस किचन कम से कम 1500 वर्ग फीट का हो
> सभी रसोई कर्मी स्वस्थ हों
> उनका पुलिस वेरीफिकेशन हो
> बेस किचन हवादार हो
> रसोई कर्मी दास्ताने, टोपी और मास्क से लैस हों
> रसोई से नाली और पानी की समुचित निकास की व्यवस्था
> बायो डस्टबिन का प्रयोग

रांची मंडल के सीनियर डीसीएम एमआर आचार्या ने कहा, 'रेलवे में खान-पान की जिम्मेदारी आईआरसीटीसी है। हम लोग केवल इसका निरीक्षण कर इसकी रिपोर्ट आईआरसीटीसी को देते हैं। कार्रवाई हम कर नहीं सकते यह आईआरसीटीसी की जिम्मेदारी  है। वैसे पिछली बार रांची और हटिया स्टेशन में खान-पान और अन्य स्टॉलों को निरीक्षण कर स्टेशन में मेन्यू, खान-पान की रेट लिस्ट, रेल नीर और अन्य सुविधाओं के लिए हिदायत दी है। राजधानी के बेस किचन के खान-पान की जिम्मेवारी भी आईआरसीटीसी से जुड़ा है।'

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