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जैन हुए शांत तो आदिवासी भड़के, क्या है सम्मेद शिखर पर नया विवाद; सरकार को अल्टीमेटम

इस महाजुटान में ना केवल झारखंड के अलग-अलग जिलों से बल्कि आसपास के राज्यों से भी आदिवासी हजारों की संख्या में इकट्ठा हुए और मरांग बुरु को लेकर अपनी आवाज बुलंद की। सरकार को 25 जनवरी तक का अल्टीमेटम दिया

जैन हुए शांत तो आदिवासी भड़के, क्या है सम्मेद शिखर पर नया विवाद; सरकार को अल्टीमेटम
Suraj Thakurलाइव हिन्दुस्तान,रांचीTue, 10 Jan 2023 07:55 PM
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गिरिडीह स्थित पारसनाथ पहाड़ को लेकर जैन समाज और आदिवासियों के बीच विवाद गहराता जा रहा है। जहां जैन समाज ने सम्मेद शिखरजी को तीर्थस्थल घोषित कर वहां 50 किमी के दायरे में मांस और मदिरा के सेवन अथवा खरीद-बिक्री पर रोक लगाने की मांग को लेकर आंदोलन किया वहीं आदिवासियों ने पारसनाथ पहाड़ को मरांग बुरु घोषित करने की मांग को लेकर आंदोलन का शंखनाद कर दिया है। मंगलवार को इसी कड़ी में गिरिडीह के मधुबन स्थित थाना मैदान में मरांग बुरु सावंता सुसार बेसी के तत्वाधान में मरांग बुरु पारसनाथ बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले महाजुटान का आयोजन किया।

इस महाजुटान में ना केवल झारखंड के अलग-अलग जिलों से बल्कि आसपास के राज्यों से भी आदिवासी हजारों की संख्या में इकट्ठा हुए और मरांग बुरु को लेकर अपनी आवाज बुलंद की। आदिवासियों का कहना है कि हम जैन धर्म की आस्था का सम्मान करते हैं लेकिन वे यदि खुद को पारसनाथ के मालिक के तौर पर पेश करेंगे तो ये बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आदिवासियों ने कहा कि जैनी यहां आए और हम यहीं के हैं।

राज्य और केंद्र सरकार को आदिवासियों का अल्टीमेटम
कार्यक्रम की शुरुआत में आदिवासी संगठनों के लोगों ने सबसे पहले मरांग बुरु दिशोम मांझी थान में पूजा-अर्चना की। इसके बाद पारंपरिक हथियारों से लैस हजारों की संख्या में आदिवासी महिला-पुरुष नगाड़े और मांदर की थाप पर जुलूस की शक्ल में पारसनाथ पहाड़ी की तरफ बढ़े। इस दौरान इन्होंने राज्य और केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। आदिवासी प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गिरिडीह से झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू का पुतला भी फूंका। आरोप लगाया कि उनके हितों की अनदेखी की जा रही है। 

सालखन और लोबिन सहित कई नेताओं ने की शिरकत
गिरिडीह के थाना मैदान में आयोजित इस महाजुटान कार्यक्रम में झारखंड दिशोम पार्टी के अध्यक्ष सह सेलेंग आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू, झारखंड मुक्ति मोर्चा के वरिष्ठ नेता सह बोरियो विधायक लोबिन हेंब्रम और प्रदेश की पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव सहित कई अन्य आदिवासी नेताओं ने शिरकत की। इन सभी नेताओं ने अपने संबोधन के दौरान एक स्वर में कहा कि झारखंड सरकार के लिखित निर्देश से ऐसा लगता है कि जैसे पारसनाथ पहाड़ी जैनियों को सौंप दी गई हो। हम इसकी आलोचना करते हैं। 

जैन आस्था का सम्मान लेकिन वे हमारे मालिक नहीं हैं! 
सेलेंग आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संताल आदिवासी समुदाय से आने वाले सालखन मुर्मू ने कहा कि जैनियों की आस्था का सम्मान है लेकिन वे मालिक नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं के लिए अयोध्या में भव्य राममंदिर बन रहा है। ईसाइयों के लिए रोम में चर्च है। मुस्लिम समुदाय के लिए मक्का-मदीना है लेकिन आदिवासी कहां जाएंगे। उन्होंने कहा कि प्रकृति पूजक आदिवासियों के लिए पारसनाथ की पहाड़ी मरांग बुरु अर्थात सर्वोच्च ईश्वरीय शक्ति है। किसी भी पूजा अथवा विधि-विधान के समय मंत्रोच्चार मरांग बुरु शब्द से शुरू होता है।

उन्होंने कहा कि आदिवासी हजारों-लाखों वर्षों से पारसनाथ का हिस्सा हैं। जैन साधुओं को वहां तप करने दिया तो इसका अर्थ ये नहीं है कि वह मालिक बन गए। सालखन मुर्मू ने कहा कि हमने अपनी मांगों को लेकर राज्य की हेमंत सरकार को 25 जनवरी तक का अल्टीमेटम दिया है। 17 जनवरी को 5 प्रदेशों के कम से कम 50 जिलों में आदिवासी समुदाय के लिए धरना प्रदर्शन करेंगे। राष्ट्रपति के नाम उपायुक्त अथवा पुलिस अधीक्षक के हाथों ज्ञापन सौंपा जाएगा।

उन्होंने कहा कि राम मंदिर के लिए जिस प्रकार हिंदुओं ने आंदोलन किया, हम उतना उग्र नहीं तो उससे कम भी नहीं करेंगे। उन्होंने मुख्यमंत्री पर हमला बोलते हुए उन्हें वोट के लिए आदिवासियों को बरगलाने का आरोप लगाया। 

सरकार ने पारसनाथ को जैन समाज के हाथों सौंपा! 
सभा में झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम ने कहा कि हमने इस दिन के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार नहीं बनाई थी। उन्होंने कहा कि हमें हमारी ही सरकार में भीख मांगना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि मुझे विधानसभा में बोलने नहीं दिया जाता। जैन समाज के हाथों पारसनाथ को सौंप दिया। झारखंड की मिट्टी को आखिर कौन बचाएगा।

उन्होंने कहा कि 2 फरवरी को संताल हूल के नायक सिद्धो-कान्हू की जन्मस्थली भोगनाडीह में धरना प्रदर्शन करेंगे। 9 फरवरी को उपराजधानी दुमका में विशाल रैली होगी। लोबिन हेंब्रम ने 24 फरवरी को झारखंड बंद का आह्वान करते हुए कहा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार को अल्टीमेटम दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी जो हो रहा है वो ट्रेलर है। पूरी फिल्म मोरहाबादी में दिखाएंगे। 

पारसनाथ आस्था ही नहीं आजीविका का भी प्रश्न है
युवा नेता जयराम महतो ने कहा कि पारसनाथ पहाड़ी केवल आदिवासियों की धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था से जुड़ा प्रश्न ही नहीं है बल्कि इससे गिरिडीह के 3 प्रखंडों के 50 गांवों की आजीविका भी जुड़ी है। उन्होंने कहा कि पारसनाथ पहाड़ी के आसपास पीरटांड़, तोपचांची और डुमरी प्रखंड के आदिवासी बहुल 50 गांवों के लोग पारसनाथ की पहाड़ी से लकड़ी, पत्ता और जड़ी-मुट्टी ले जाकर आसपास के हाट-बाजारों में बेचते हैं जिससे उनका परिवार चलता है। यदि पारसनाथ पहाड़ी में प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई तो इन गांवों में रहने वाले हजारों आदिवासियों का क्या होगा। स्थानीय आदिवासी नेताओं ने कहा कि जैन समाज पैसे और ताकत के बल पर हमारी परंपराओं पर कुठाराघात कर रहा है।

आदिवासी संस्कृति में मांस-मदिरा और पशुबलि अभिन्न हिस्सा
पारसनाथ की तलहटी में बसे गांवों के आदिवासियों का कहना है कि हमारा पूजा स्थल जैसे कि जाहेरथान और मांझी थान यहीं 5 किमी के दायरे में है। वंदना पर्व हो या सोहराय। इन त्योहारों को मनाने से पहले जाहेरथान और मांझी थान में हम पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा में मुर्गे, बकरी और भेड़ की बलि दी जाती है। पशुबलि हमारी सदियों पुरानी परंपरा है। प्रसाद के रूप में कुलदेवता को हड़िया (चावल से बनी शराब) अर्पित किया जाता है।

सरकार ने जैनियों के आंदोलन के बाद इन पर प्रतिबंध लगाने की बात की तो, हमारी परंपराओं का क्या? दरअसल, संताली भाषा में मरांग का अर्थ सबसे बड़ा होता है। वहीं बुरु का अर्थ पहाड़। ऐसे में झारखंड की सबसे ऊंची पहाड़ी श्रृंखला होने की वजह से उसे मरांग बुरु कहा जाता है। चूंकि आदिवासी प्रकृति पूजक हैं इसलिए उनके लिए पारसनाथ मरांग बुरु अर्थात सर्वोच्च ईश्वरीय शक्ति है। आदिवासी इसे मरांग बुरु घोषित करने की मांग कर रहे हैं। 

पारसनाथ पहाड़ी को लेकर क्यों उपजा है इतना विवाद
दरअसल, ये पूरा विवाद केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना से उपजा है। गौरतलब है कि राज्य सरकार की अनुशंसा पर केंद्र सरकार ने पारसनाथ की पहाड़ी को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया। फरवरी 2021 को झारखंड सरकार की तरफ से पारसनाथ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने संबंधी लेटर जारी किया गया।

जैन समाज का कहना है कि यदि सम्मेद शिखरजी पारसनाथ का विकास पर्यटन स्थल के रूप में विकास किया गया तो वहां व्याभिचार पनपेगा। जैनियों का पवित्र धर्मस्थल पिकनिक स्पॉट बन जाएगा। मांस और मदिरा की बिक्री होगी जिससे वहां की पवित्रता को नुकसान पहुंचेगा। पूरे 1 माह तक देशभर के अलग-अलग हिस्सों में जैन धर्मावलंबियों ने आंदोलन किया। पर्यटन स्थल घोषित करने के विरोध में अनशन पर बैठे 2 जैन मुनियों की मौत भी हो गई।

आखिरकार, पर्यावरण, वन एवं जलवायु मामलों के केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने पारसनाथ में पर्यटन संबंधी गतिविधियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। तब लगा था कि मामले का हल निकाल लिया गया है लेकिन आदिवासी समाज की तरफ से विरोध की सुगबुगाहट तेज हुई और अब आग भड़क गई। 

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