नेताओं को रटने होंगे अपने ही चुनाव चिह्न के नाम
विधानसभा चुनाव से पहले सुदूर इलाकों में जनता से संवाद करने जा रहे नेताओं को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। सियासत के प्यारे बोल वहां समझ में नहीं आ रहे हैं। गुमला-लोहरदगा इलाके के गांवों में भी हिंदी...
विधानसभा चुनाव से पहले सुदूर इलाकों में जनता से संवाद करने जा रहे नेताओं को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। सियासत के प्यारे बोल वहां समझ में नहीं आ रहे हैं।
गुमला-लोहरदगा इलाके के गांवों में भी हिंदी में बताया गया भाजपा का कमल छाप न पल्ले पड़ रहा है और न ही झामुमो के तीर-धनुष पर बटन दबाने की अपील मतदाताओं तक सहज पहुंच रही है। ऐसे में भाजपा का स्थानीय कार्यकर्ता आगे बढ़कर कुड़ुख भाषा में पुरनी छाप पर और झामुमो का कार्यकर्ता कन्ना-धन्नी पर वोट देने की बात समझाता है।
सभी पार्टियों के प्रदेश नेतृत्व ने जनता से भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाने के लिए स्थानीय भाषा में संवाद के निर्देश दिए हैं। इस कारण नेताओं को प्रमुख भाषाओं के शब्द सीखने पड़ रहे हैं। यहां तक की अलग-अलग भाषाओं में अपनी ही पार्टी के चुनाव चिह्न का नाम याद करने पड़ रहे हैं। झारखंड की प्रमुख छह भाषाओं में चुनाव चिह्न वही होते हुए भी शब्द बदल जाते हैं। ग्रामीण इलाकों की सभाओं में अपना प्रभाव छोड़ने के लिए राज्य के प्रमुख नेता इस चुनौती से पार पाने में लग गए हैं।
कोल्हान के ग्रामीण इलाकों में तो भाषा की चुनौती और गहरी है। वहां तो हो भाषा में ही संवाद एक मात्र सहारा है। रांची, गुमला और लोहरदगा के उरांव बहुल इलाकों में कुडुख भाषा में अपील करना आजमाई हुई तरकीब है।
संताली, मुंडारी, खड़िया में बताने होंगे दल के छाप -
संताल के आदिवासी बहुल इलाकों में नेताओं की ओर से संताली भाषा में वोट देने की अपील करनी है। वहां भाजपा कार्यकर्ता कमल की जगह ओपलबाहा और झामुमो कार्यकर्ता तीर-धनुष की जगह आ-सार पर वोट देने की अपील करने पर जोर दे रहे हैं। इसी तरह खूंटी में भाजपा की ओर से उपल छाप और झामुमो की ओर से सर-अहसर छाप पर वोट देना समझाया जा रहा है। सिमडेगा के ग्रामीण इलाकों में भी इसी तरह भाजपा का टुबटुब छाप और झामुमो का बहस-क:कोम है।