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निजी स्कूलों से सिर्फ शिक्षण शुल्क लेने के आदेश पर झारखंड सरकार से हाईकोर्ट का जवाब तलब

राज्य के निजी स्कूलों में शिक्षण शुल्क को छोड़ अन्य शुल्क लेने पर लगायी गयी रोक पर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है। सरकार को तीन सप्ताह में इस संबंध में जवाब दाखिल करने का निर्देश कोर्ट ने दिया...

निजी स्कूलों से सिर्फ शिक्षण शुल्क लेने के आदेश पर झारखंड सरकार से हाईकोर्ट का जवाब तलब
रांची। प्रमुख संवाददाताWed, 07 Oct 2020 10:04 PM
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राज्य के निजी स्कूलों में शिक्षण शुल्क को छोड़ अन्य शुल्क लेने पर लगायी गयी रोक पर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है। सरकार को तीन सप्ताह में इस संबंध में जवाब दाखिल करने का निर्देश कोर्ट ने दिया है। झरखंड अन एडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अभय मिश्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजेश शंकर की अदालत ने यह निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि यदि सरकार अपने आदेश में किसी प्रकार का संशोधन करना चाहती है तो अगली तिथि इसका शपथपत्र दाखिल कर सकती है। 

याचिका में कहा गया है कि झारखंड सरकार ने एक आदेश जारी कर निजी स्कूलों में सिर्फ शिक्षण शुल्क लेने का आदेश दिया है। बस फी समेत कई अन्य शुल्क लेने पर रोक लगायी गयी है। आदेश में शुल्क नहीं देने वाले किसी भी छात्र को स्कूल से नहीं निकालने और ऑनलाइन क्लास में शामिल करने से मना नहीं करने की भी बात कही गयी है। इसके अलावा स्कूल के सभी शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन भी नियमित देने का आदेश सरकार ने दिया है। 

निजी स्कूलों की तरफ से पक्ष रखते हुए वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार ने अदालत को बताया कि सरकार का यह आदेश विरोधाभाषी है। एक तरफ सरकार सिर्फ शिक्षण शुल्क ही लेने को कह रही है,दूसरी ओर सभी शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन भुगतान भी करने का आदेश दे रही है। सिर्फ शिक्षण शुल्क से ही शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन और अन्य खर्चे नहीं चलते। अदालत को बताया गया कि दिल्ली, चंड़ीगढ़ और दूसरे राज्यों में भी सरकार ने यह नियम बनाया था, लेकिन कई हाईकोर्ट में सरकार के इस आदेश को रद्द कर दिया गया है। सरकार के आदेश का लाभ उठा कर वर्ष 2019 का बकाया फीस भी कई छात्रों ने जमा नहीं किया है। इससे स्कूलों को परेशानी हो रही है। दूसरी ओर सीबीएसई और जैक बोर्ड परीक्षा और निबंधन शुल्क ले रहा है। समय पर इएसआई में पैजा जमा नहीं होने पर भी स्कूलों को नोटिस दिया जा रहा है। अदालत से सरकार के इस आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया गया। जबकि सरकार की ओर से इस पर पक्ष रखने के लिए समय की मांग की गयी। 

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